Sohan Salil
(शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1)
गीत
कह दो इन नयनों से ना अब नीर बहाएं
बजा दुन्दुभी घूम रही है मेघ मंडली
अधर धरा के चूम रही है मेघ मंडली
कह दो इन अधरों से कोई गीत सुनाएँ
कह दो इन नयनों से ना अब नीर बहाएं
आज प्रकृति की गोद में बैठा नव बसंत है
कुसुम, कली, लतिका, तरुवर, पल्लव, बसंत है
अंग अंग से कह दो कि अब झूमे गाएं
कह दो इन नयनों से ना अब नीर बहाएं
शीतल पवन झकोरों की जब लहर चली है
काँप रहा तन लेकिन मन में आग लगी है
आज उमंगें नाचें मन को नाच नचाएं
कह दो इन नयनों से ना अब नीर बहाएं
~ सोहन सलिल