Basant 10 Feb 3013 | Page 24

Neelam Nagpal Madiratta

‎(शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1)

सृष्टि के सारे पुराने पत्तों ने,

निर्जला उपवास रखा है,

तुम्हारे आने के इंतज़ार में,

सब सूख से गए है,

अभी तेज हवा का कोई झोंका आएगा,

और इन्हें उड़ा कर ले जाएगा,

और तुम कहोगे,

कि पतझड़ है,

तय है, पुराने पत्तों का,

शाख़ से टूट कर गिरना,

इन में से, मै भी एक हूँ,

सभी प्रतीक्षारत है,

तुम्हारे आगमन हेतु,

पलकें बिछाए है,

सभी तुम्हारा अभिनन्दन करेंगे,

और मेरा अंतिम संस्कार कोई नहीं करेगा,

कोई बात नहीं,

मै स्वयं ही विलीन हो जाऊँगी इस धरा में,

ताकि खिल सके शाख़ पर,

नयी पत्तियां, नए पुष्प,

और तुम मुस्कुरा कर पहन सको,

पीले फूलों के हार,

हमारा बलिदान भूलोगे तो नहीं ऋतुराज,

हाँ भूलना नहीं !!

तुम्हारा ना भूलना ही,

मुझे देगा एक नया जन्म,

और फिर लिखूंगी मै,

एक दर्द भरी अभिव्यक्ति,

और बताऊँगी तुम्हें ,

कि जब शाख़ से टूटता है पत्ता,

तो कैसा लगता है?

.

मै आ रही हूँ लौट के,

पहचान सको तो पहचान लेना ....