Pramila Arya
(शीर्षक----"बसंत " / सप्ताह 1)
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रंग बिरंगे फूलों वाली ओढ के धानी चूनर प्यारी ।
धरती करती है श्रृंगार ।।
कूके कोकिल कुंजन कुंजन
भँवरे करते गुन गुन गुंजन
तितली का मनोहारी नर्तन
वन उपवन में छाई बहार
धरती करती है श्रृंगार ...
सन सन बहती पवन सुहानी ,
शीतल सुखद है और रूहानी ,
झंकृत मन वीणा के तार .
गायें राग बसन्त बहार ।।
धरती करती है श्रृंगार ....
रंग दे बसंती चोला कह कर ,
फांसी फंदा चूमा हँसकर ,
देश भक्ति का करता संचार ,
मातृभूमि पर प्राण निसार ।।
धरती कती है श्रृंगार ........
प्रमिला आर्य