शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1
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लावण्य झलकता यौवन से ,,
उस पर मादक अंगड़ाई ,,
बीत गया सावन बिन साजन ,,
बजी वियोग शहनाई ,,
ऐसे में आया बसंत फिर ,,
चलने लगी पुरवाई ,,
बैरन हो गयी गंध बसंती ,,
डसने लगी तन्हाई ,,
. . . मुकेश ठन्ना