Basant 10 Feb 3013 | Page 18

Savita Agarwal

‎(शीर्षक----"बसंत " / सप्ताह 1) पर एक प्रयास

जीवन -ऋतु पर बस दो ऋतुये ही भारी है ।

या तो है वो पतझड़ ,या बसंत -कुमारी है ।

जब जीवन -साख पर आशाओ की कालिया खिलती है ।

उम्मीदों की पुरवाई चलती है ।

सपनो के जुगनो उड़ते है ।

जीवन - लताये मुस्कराती है ।

तो समझ लेना बसंत-कुमारी आती है ।

बांध के घुंघरु अपने पैरो में ।

वो मन को भरमाती हैं ।

पतझड़ में टूटे पत्तो को ।

वो गोद में अपने उठाती हैं ।

तो समझ लेना बसंत-कुमारी आती है ।

भर उठती हैं असीम वेदना से वो जब ।

पतझड़ में सूखे पेड़ो को वो सिसकता पाती है ।

डर उठती है उन सन्नाटो से वो जब ।

तो कोयल सा चहकाती हैं ।

भवरों को गुंजाती है ।

तो समझ लेना बसंत-कुमारी आती है ।

चाँद सी बिंदिया ।

सूरज के कुंडल ।

पहन धानी की सारी।

नवयोवना सी शर्माती है ।

तो समझ लेना बसंत-कुमारी आती है ।।।।।

......................सविता अग्रवाल