Basant 10 Feb 3013 | Page 17

शीर्षक--बसंत सप्ताह--1

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मैंने बसंत से बिछड़कर महसूस किया,

खुद में एक पतझड़।

देखा है-

कलियों पे ठहरी ओस का समंदर होना,

और, हवा में घुली खुशबुओं का-

तेरी यादों का खंजर होना।

मुझे लगा कि-

जीवन की सारी रंगत सिमटकर

समा गई फूलों में।

* * *

तुमसे मिलकर

पतझड़ के मौसम में भी महसूस की

बसंत की आहट;

सूखे पत्तों पर रेत से लिखे

तुम्हारे नाम अनेको प्रेम-पत्र।

हृदय की बन्ध्या धरती में सहसा उग आई

चाहत की दूब।

* * *

तब पता चला कि-

तुम्हारे साथ मिलकर रच सकते हैं

बासंती जीवन ।

अगर तुम मेरे हृदय की धरती में

बसंत नहीं बोओगे,

तो पतझड़ खुद ही उग आएगा।

=>अभिषेक अग्निहोत्री