शीर्षक--बसंत सप्ताह--1
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मैंने बसंत से बिछड़कर महसूस किया,
खुद में एक पतझड़।
देखा है-
कलियों पे ठहरी ओस का समंदर होना,
और, हवा में घुली खुशबुओं का-
तेरी यादों का खंजर होना।
मुझे लगा कि-
जीवन की सारी रंगत सिमटकर
समा गई फूलों में।
* * *
तुमसे मिलकर
पतझड़ के मौसम में भी महसूस की
बसंत की आहट;
सूखे पत्तों पर रेत से लिखे
तुम्हारे नाम अनेको प्रेम-पत्र।
हृदय की बन्ध्या धरती में सहसा उग आई
चाहत की दूब।
* * *
तब पता चला कि-
तुम्हारे साथ मिलकर रच सकते हैं
बासंती जीवन ।
अगर तुम मेरे हृदय की धरती में
बसंत नहीं बोओगे,
तो पतझड़ खुद ही उग आएगा।
=>अभिषेक अग्निहोत्री