Basant 10 Feb 3013 | Page 12

विश्वम्भर शुक्ल

शीर्षक -'बसंत' सप्ताह -१

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अतिथि रचना (अप्रकाशित और मौलिक )~~~

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बासंतिक मौसम तो आया है कई बार ,

सौरभ ने मुझको दुलराया है कई बार !

मन की गहराई में झांका है जब मैंने

तुमको ही अपने घर पाया है कई बार !

मदमाती गंध लिए बौराई बगिया ने

उपवन यह प्यासा महकाया है कई बार !

खिडकी से छुप-छुप कर देखा है चन्दा को

बादल की सीढ़ी से आया है कई बार !

एक तृषा पीने को सौ सौ सौगंध और

अकुलाए अधरों को तरसाया है कई बार !

पीत-वर्ण पुष्प हँसे ,भोर हंसी,सांझ खिली,

जीवन तो दिन-दिन मुसकाया है कई बार !

आँखों का सम्मोहन बाँध रहा मोहन को,

बंसी पर नेह-गीत गाया है कई बार !

मदिर,मस्त मौसम की देहरी पर व्याकुल है,

इस मन को प्रिय ने भरमाया है कई बार !

_____________________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल

लखनऊ