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कम उम्र में उत्हनोंिे क्लखा भी । उनके काम को क्वशव के अर्थशान्सरियनों द्ारा मान्यता दी गई थी । डा. अमबेडकर ने एक तरफ भारत में सामाक्जक- राजनीक्तक ढांचे और अर्थवयवस्ा के बीच के संबंधनों और दूसरी तरफ भारत को बदलने में क्वकास परियोजनाओं की भूक्मका का अधययन क्कया । वह पहले भारतीय अर्थशासरिी थे, क्जत्हनोंिे वयापक रूप से सार्वजक्िक वित्त, कराधान और ब्रिक्टश भारत के मौक्द्रक मानकनों और स्ािीय वयापार पर आंतरिक और बाहरी दोिनों करनों के प्रक्तककूल प्रभावनों के बारे में बताया । उत्हनोंिे भारतीय मुद्रा, उधार के तरीके, क्वकास रणनीक्त, राजय समाजवाद और राष्ट्रीयकरण, जनसंखया
और परिवार क्ियोजन, मक्हला क्वकास, मानव संसाधन सक्हत अनेक जनसांख्यिकीय पहलू, क्हंदू अर्थवयवस्ा आक्द क्वषयनों पर क्लखा । उनका तर्क है क्क भारत में दक्लत, क्पछड़ों की गरीबी प्राककृक्तक संसाधिनों के अन्याय पूर्ण और असमान क्वतरण के कारण है, क्जिसे दक्लत और क्पछड़ों को वंक्चत रखा गया है । अमीर उच्च वर्ग के क्लए न्स्क्त अलग है । उत्हनोंिे जनसंखया वृक्द्ध को रोकने के क्लए एक राष्ट्रीय परिवार क्ियोजन नीक्त और क्शक्षा के पक्ष में तर्क क्दए । उनके अनुसार मौजूदा आक््थिक प्रणाली शोषण और असमानताओं को बढ़ावा देती है और कायम रखती है ।
डा. आंबेडकर ने सरकार की प्रशासक्िक वयवस्ाओं का अधययन क्कया और कागज के सीक्मत और आक््थिक उपयोग पर जोर क्दया । डा. आंबेडकर द्ारा जीवन के शुरुआती 32-33 वषयों तक क्कया गया शैक्षक्णक एवं पेशेवर लेखन अर्थशासरि से संबंक्धत था । उनकी मान थीक्सस, प्राचीन भारतीय वाक्णजय और भारत का राष्ट्रीय लाभांश, ईसट इंक्डया कंपनी का प्रशासन और वित्त पर शोध, भारत में छोटी जोत और उनकी उपचार, ब्रिक्टश भारत में प्रांतीय वित्त का क्वकास, रुपए रुपये की समसया, आक्द रिजर्व बैंक ऑफ इंक्डया की स्ापना के क्लए नींव बने । जेंडर सशन््तकरण, कार्य की न्स्क्त आक्द, समकालीन संदर्भ में एक समीक्षा के पारि हैं । इतनी कम उम्र में उनकी अकादक्मक उपलब्धियां क्वशव के अनेक देशनों से उन्हें आमंत्रित कर रही थी, लेक्कि उत्हनोंिे देश की सेवा करना पसंद क्कया । डलॉ. अंबेडकर ने इतना कुछ अर्थशासरि में अधययन और लेखन के उपरांत राजनीक्त में जाने का क्िर्णय क्कया और क्फर राजनीक्तक जीवन को सामाक्जक सक्रियता और मीक्डया से जोड़ा । उत्हनोंिे शायद महसूस क्कया क्क यह अंततः राजनीक्तक शन््त ही है जो लोगनों के भागय और उनकी सामाक्जक प्रगक्त को क्िर्धारित करती वासतव में उनके जीवन का लक्य और जुनून था ।
डा. आंबेडकर ने ईसट इंक्डया कंपनी के वित्त का आलोचनातमक क्वशलेषण क्कया और बड़े
करीने और क्िष्पक्ष रुप से सार्वजक्िक वित्त में सभी महतवपूर्ण परिवत्विनों को सामने लाए । सामूक्हक क्जममेदारी और सरकार की क्िष्पक्षता पर जोर क्दया । उनका मानना था क्क प्रांतीय घाटनों को सार्वजक्िक रूप से सरकार द्ारा उधार लेकर पूरा क्कया जाना उक्चत नहीं है । डा. आंबेडकर के क्डलीट के लघु शोध की एक तवरित समीक्षा ' रुपए की समसया ' दर्शाता है क्क उत्हनोंिे मौक्द्रक और क्वक्िमय मानकनों क्जिमें स्थापित सवण्व क्वक्िमय और सवण्व क्वक्िमय मानक के ऐक्तहाक्सक पृष्ठभूक्म( 1800-1893) का पता लगाया । महंगाई, वयापार घाटा, खर्च से सम्बंधित समसयाओं की समीक्षा की । प्रोफेसर कीन्स के भारतीय मुद्रा को क्फर से तैयार करने के बारे में कई प्रसताव से डा. आंबेडकर सहमत नहीं थे । उत्हनोंिे तर्क क्दया क्क फाउलर सक्मक्त की क्सफारिशनों को छोड़ क्दया जाए । उत्हनोंिे जोर क्दया क्क मूलभूत तथय क्जसे समझने और उजागर करने आवशयकता है, वह यह है क्क रुपए की स्थिरता तब तक सुक्िश्चित नहीं की जा सकती, जब तक क्क " सामान्य रिय शन््त " स्थिर न हो । उत्हनोंिे क्सफारिश करते हुए कहा क्क रुपए को सवण्व में प्रभावी परिवर्तनीयता प्रदान की जाए ।
अपनी पुसतक ' रुपए की समसया ' के पहले संसकरण की प्रसतावना में डा. आंबेडकर क्लखते हैं क्क भारतीय मुद्रा पर मौज उन पररन्स्क्तयनों की क्ववेचना नहीं करते हैं, क्जसके कारण से 1893 के सुधार हुए । मुझे लगता है क्क मुद्रा संकट के मुद्दों और प्रस्तावित समाधािनों करने के क्लए प्रारंक्भक इक्तहास आलोचनातमक अधययन काफी आवशयक है । इसी को धयाि में रखते हुए, मैंने भारतीय मुद्रा का अधययन क्कया । जोतनों के आकार और उतपादकता संबंध का क्वशलेषण करते हुए डा. आंबेडकर अन्य देशनों के अधययिनों की समीक्षा करते हैं, और सर हेनरी कलॉटन को उद्धृत करते हैं क्क भारत में बहुत अक्धक ककृक्ष का खतरा है । उत्हनोंिे एक महतवपूर्ण आयाम पर प्रकाश डाला जो बाद के वषयों में और आज भी भारत के क्वकास के संदर्भ में महतवपूर्ण बना हुआ है । उत्हनोंिे कहा क्क एक
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