अधययन
बड़ी ककृक्ष आबादी वास्तविक खेती में भूक्म के क्िम्नतम अनुपात के साथ का अर्थ है क्क ककृक्ष पर क्िर्भर जनसंखया का एक बड़ा क्हससा फालतू और बेकार है । ऐसी न्स्क्त में पूंजीवादी उद्योग के माधयम से समेक्कत और बढ़ी हुई ककृक्ष जोतें बेकार श्रम की समसया को और बढ़ाएंगी । अतः लोगनों की क्िर्भरता भूक्म पर कम करने के क्लए भारत का औद्योगीकरण ही भारत की ककृक्ष समसयाओं के क्लए सबसे सुगम उपाय है और भारत की दोषपूर्ण राजनीक्तक अर्थवयवस्ा को देखते हुए पर्यापत अक्धशेष उतपन् करने के क्लए भी । ग्ामीण गरीब, खेक्तहर मजदूर, बंधुआ मजदूर( क्जत्हें ' खोत ' कहा जाता था) और ' महारवतन ' एक क्वशेष समुदाय की एक सेवा है क्जसे क्कसी भी समय, क्दि या रात में लेने के क्लए मजबूर क्कया जाता है, के मामले को उठाने के बारे में डा. आंबेडकर का योगदान अमूलय है । डा. आंबेडकर पहले अर्थशासरिी थे, क्जत्हनोंिे उपखंडन की समसया का परीक्षण क्कया और आक््थिक जोतनों को वैज्ञानिक रूप से परिभाक्षत क्कया I
ककृक्ष सुधारनों के रिम में उत्हनोंिे समेकन के मुद्े की आलोचनातमक परीक्षण करते हुए पाया क्क संपत्ति क्वरासत और जनसंखया वृक्द्ध ककृक्ष समसयाओं का मुखय स्ोत है । वह आगे क्ववेचना करते हुए कहते हैं क्क अगर यह कहा जाए क्क भारतीय ककृक्ष छोटी और क्बखरी हुई जोतनों से ग्सत है तो हमें न केवल इन्हें समेक्कत करना चाक्हए, बल्कि उनका क्वसतार भी करना चाक्हए । यह धयाि रहना चाक्हए क्क चकबंदी द्ारा छोटी जोतनों की बुराइयनों को दूर क्कया जा सकता है । लेक्कि छोटी जोतनों की बुराइयनों को दूर करने के क्लए यह आवशयक है क्क चकबंदी द्ारा इन्हें बड़ी आक््थिक जोतनों में बदला जाए । प्रक्सद्ध ककृक्ष अर्थशासरिी प्रोफेसर जेवांस के क्वचारनों का आलोचनातमक परीक्षण करते हुए इस तथय की आलोचना की क्क प्रतयेक बड़ी जोत आक््थिक जोत होती है । वह प्रोफेसर जीवांस क्क उस परिभाषा का भी खंडन करते हैं जो आक््थिक जोत को उपभोग के आधार पर परिभाक्षत करती है और दृढ़ता के साथ तर्क देते हुए कहा है क्क
उतपादन को इसका आधार होना चाक्हए । इसके साथ ही उत्हनोंिे राजय पूंजीवादी वयवस्ा के अंतर्गत सामूक्हक ककृक्ष की अवधारणा का सुझाव संक्वधान सभा को क्दया था । लेक्कि वर्चसव वाले ग्ामीण जमींदार अक्भजात वर्ग के क्वरोध के कारण और भूक्म से जुड़ी जाक्तयनों के कारण इसे नकार क्दया गया ।
डा. आंबेडकर एक दूरद्रष्टा थे, उनकी सामाक्जक-आक््थिक गठजोड़ क्जसमें जाक्तवाद और राजनीक्तक कारण भी शाक्मल हैं, की गक्तशीलता के गहरे ज्ाि पर आधारित थी । उत्हनोंिे अनुसूक्चत जाक्त द्ारा सार्वभौक्मक वयस्कों के अक्धकारनों के माधयम से क्शक्षा, भूक्म सुधार और राजनीक्तक शन््त के अधिग्रहण को भारत में सामाक्जक आक््थिक और राजनीक्तक परिवर्तन के माधयम के रूप में देखा और माना क्क इसके द्ारा लोगनों को सवतंरिता और बराबरी का अवसर क्मलेगा । लेक्कि वह यहां पर ही नहीं रुके और भारतीय नेतृतव को याद क्दलाते रहे क्क भारत
को जाक्तवाद और समुदायवाद से छुटकारा क्दलाने के क्लए बहुत काम करना है, क्जससे समानता, सवतंरिता और बंधुतव प्रापत कर सामाक्जक बुराइयनों को दूर करते हुए एक सवस् भारतीय समाज का क्िर्माण क्कया जा सके । उत्हनोंिे भारतीय नेतृतव के आगे बहुत ही गंभीर प्रश् खड़े क्कए और कहा क्क ्या यह सरकार महसूस नहीं करती है क्क जमींदार जनता का शोषण करते हैं? ्या भारत की सरकार यह नहीं महसूस करती है क्क पूंजीवादी, मजदूरनों को एक सममािजनक वेतन और रहने की न्स्क्त नहीं प्रदान करते हैं? उन्हें इस बात का पूरा क्वशवास था क्क राजनीक्तक नेतृतव मौजूदा सामाक्जक और आक््थिक जीवन के ताने-बाने में दखलअंदाजी या सुधार करने से डर रहा था ्यनोंक्क इससे सामाक्जक प्रक्तरोध उतपन् होने का खतरा था ।
राष्ट्र क्िर्माण में उनका योगदान वयापक, अंतदृ्वन्ष्टपूर्ण और भारत के संक्वधान के क्िर्माण
10 vxLr 2025