से परे बहुत कुछ है । राजय समाजवाद की उनकी क्जिा यद्यक्प सवीकार नहीं की गई वाकई रिफलेशनरी थी । उत्हनोंिे देश की पूरी आक््थिक संरचना को संक्वधान के कानून के अंतर्गत लाने की बात कही, न क्क संसद द्ारा बनाए गए कानूिनों के अंतर्गत । उनका पूरी तरह मानना था क्क इसके क्बिा ' एक व्यक्त-एक मत ' को ' एक व्यक्त-एक मूलय ' में नहीं ढ़ाला जा सकता है । उनकी भाषा के आधार पर राज्यों की रचना की आलोचना अकादमीय रूप से काफी सारगक्भ्वत और महतवपूर्ण है । कई क्वद्वानों ने यह सामने लाया है क्क डा. आंबेडकर ने बहुत ही गहराई और तीव्रता के साथ गांधीजी के असपृशयता को क्मटाने के ऐक्तहाक्सक प्रयास को बड़े सतर पर
तीव्रता दान की ्यनोंक्क इससे सामाक्जक संबंधनों पर प्रक्तककूल प्रभाव पड़ रहा था । अपनी योगयता और राष्ट्र क्िर्माण में अपने योगदान के क्लए जाने जाने वाले डा. आंबेडकर को ततकालीन प्रधानमंरिी पंक्डत जवाहरलाल नेहरू ने प्रथम कैक्बिेट में कानून मंरिी का पद देने के क्लए आमंत्रित क्कया, क्जससे बहुत ही मुश्किल से हाक्सल की गई सवतंरिता को और सुदृढ़ क्कया जा सके । इस प्रकार, वह कानून मंरिी के पद तक पहुंचे और उन्हें ' मलॉड्टि मनु ' के रूप में जाना जाने लगा । अपने श्रम और मक्हला अक्धकारनों के प्रक्त वास्तविक योगदान के क्लए वह मानवीय सममाि के अग्दूत बने । उत्हनोंिे प्रक्तक्दि काम घंटनों को 12 घंटे से घटाकर 8 घंटे करने के संघर्ष का नेतृतव क्कया, उत्हनोंिे 1916 में मक्हला सशन््तकरण पर क्लखा और भारत के प्रथम कानून मंरिी होने के नाते अपने
पद का इसतेमाल करते हुए मक्हलाओं को क्वरासत और संपत्ति का अक्धकार देने वाला क्हंदू कोड क्बल को पेश क्कया ।
डा. आंबेडकर को बहुत आदर और सममाि के साथ याद क्कया जाता है । वह एक महान क्वचारक, एक उतसाही पाठक-जो सदा जरूरतनों के पर क्कताबनों को तरजीह देते थे, एक दूरदशशी क्वद्ाि और बहुमुखी प्रक्तभा के धनी लेखक, वह दक्लत वर्ग के सममाि और अक्धकारनों के अग्दूत थे, एक उललेखनीय नेता और क्वशव प्रक्सद्ध अर्थशासरिी क्जसे भारत के औपक्िवेक्शक इक्तहास के सामाक्जक, आक््थिक और राजनीक्तक प्रथाओं का गहन ज्ाि था । स्कूली क्शक्षा हाक्सल करने के क्लए अपने संघर्ष और अपने क्शक्षकनों
मौद्रिक अर्थशास्त्, प्ांतीय और सार्वजनिक वित्त, संघीय ढांचे और कृषि अर्थशास्त् पर उनके लेखन तथा कट्टरपंथी, सामाजिक-आर्थिक आधारषों पर उनके विचार और गदुणवत्तापूर्ण राजनीतिक नेतृति को विकास के परिपेक्य में रखना न केवल उनके दूरदरशी और अग्रणी कार्य हैं, बललक ऐतिहासिक रूप से प्ामाणिकता और मौलिकता में अहवितीय हैं । लेकिन भारतीय आर्थिक विचार में काफी समय तक इसकी अनदेखी की गई ।
की प्रेरणा को जीक्वत रखते हुए वैश्विक संस्थानों में उच्च क्शक्षा प्रापत करने की ललक और उसे हाक्सल करना तथा उनका अकादक्मक योगदान, ना क्सफ्क छात्रों, बल्कि क्शक्षकनों और नीक्त क्िर्माताओं के क्लए भी महान सबक है । उनके क्वशाल ज्ाि के साथ-साथ उनका क्वशलेषणातमक क्दमाग अपने तर्क गढ़िे और अग्णी देशनों के संक्वधािनों की उनकी समझ और ऐक्तहाक्सक बीच के प्रक्त उनकी उतसुकता उन्हें ' भारत के संक्वधान ' जैसे अद्भुत दसतावेज की रचना करने में मदद की, क्जससे उन्हें " संक्वधान के जनक " की उपाक्ध क्मली । अर्थशासरि उनका पहला पयार था( ऐसा महान अर्थशासरिी सी. रंगराजन ने क्टपपणी की थी), डलॉ अमबेडकर ने लगातार कड़ी मेहनत की और और एक सामाक्जक- राजनीक्तक प्रणाली और आक््थिक संरचनाओं, जो मानव क्षमता के पूर्ण क्वकास की अनुमक्त
देती है, और सभी नागरिकनों के क्लए एक स्थिर, सुरक्क्षत और सममािजनक अस्तितव सुक्िश्चित करती है, की नींव रखने के क्लए खुद को समक्प्वत क्कया । उनका मानना था क्क रचनातमक और संक्गक नीक्तगत क्िष्कषयों के क्लए अर्थशासरि का अधययन आवशयक है ।
मौक्द्रक अर्थशासरि, प्रांतीय और सार्वजक्िक वित्त, संघीय ढांचे और ककृक्ष अर्थशासरि पर उनके लेखन तथा कट्टरपंथी, सामाक्जक- आक््थिक आधारनों पर उनके क्वचार और गुणवत्ापूर्ण राजनीक्तक नेतृतव को क्वकास के परिपेक्य में रखना न केवल उनके दूरदशशी और अग्णी कार्य हैं, बल्कि ऐक्तहाक्सक रूप से प्रामाक्णकता और मौक्लकता में अद्वितीय हैं । लेक्कि भारतीय आक््थिक क्वचार में काफी समय तक इसकी अनदेखी की गई । ऐसा प्रतीत होता है क्क अन्य क्षेत्रों में उनका योगदान जैसे- कानूनी क्सद्धांत और वयवहार, सामाक्जक- सांस्कृक्तक दर्शन और राजनीक्त क्वज्ाि क्जससे उत्हनोंिे भारत के संक्वधान के वासतुकार होने की उपाक्ध अक्ज्वत की, अर्थशासरि में उनके लेखन पर भारी पड़ गया था । यह दुर्भागयपूर्ण है क्क हम उन्हें क्सफ्क दक्लत नेता के रूप में जानते हैं, जबक्क वह एक महान राष्ट्र क्िर्माता थे क्जत्हनोंिे दूरदक्श्वता के साथ बड़ी बुक्द्धमानी और समझदारी से भारत के संक्वधान सक्हत स्ागत ढांचनों का क्िर्माण क्कया । क्जसने भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराजय बनाने के क्लए पथ प्रदक्श्वत क्कया ।
उनके आक््थिक क्वचार हालांक्क क्बखरे हुए हैं, उन्हें नए क्सरे से अधययन करने की आवशयकता है ्यनोंक्क संक्वधान लागू होने के सात दशक बाद भी, उनके द्ारा ' भारत ' के बारे में देखा गया सपना अधूरा है और उनके क्दल के करीब न्याय, सवतंरिता, समानता और बंधुतव से जुड़े मुद्े अनसुलझे है । अतः आक््थिक सोच की वर्तमान गुणवत्ा को समृद्ध करने और सामाक्जक आक््थिक एवं राजनीक्तक अवयव के गुणातमक ज्ाि द्ारा शासन और नीक्त क्िर्माण में सुधार लाते हुए देश में परिवर्तन लाने की आवशयकता है । �
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