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अधययन

डा. आंबेडकर की आर्थिक विचारधारा और भारत का उदय

हप्यंशा सिंह

सभयता, क्शक्षा, ज्ाि और नवाचार के अपने लंबे इक्तहास भारत

के क्लए जाना जाता है । सवतंरिता के बाद की अवक्ध में भारत ने अनेक जाक्त एवं सामाक्जक क्वषमताओं में भी अपने लोकतंरि को मजबूत क्कया और मानव क्वकास के मोचचे पर भी अचछा प्रदर्शन क्कया । यह मंगल पर रलॉकेट ललॉत्च करने वाला चौथा देश बना और सबसे बड़े वैश्विक बाजार के रूप में भी उभरा । इसके बाद भी जाक्तवादी पूवा्वग्ह, धाक्म्वक घृणा, असपृशयता, बंधुआ मजदूरी और दुखद रूप से मैला ढोने की प्रथा अभी भी कुछ हद तक क्वद्यमान है । राजनीक्त-नौकरशाही, वयापार- मीक्डया और गैर सरकारी संगठन के गठजोड़ कानून के शासन को हाईजैक करने के क्लए इतने बढ़ गए हैं क्क प्रतयेक समसया को राजनीक्त, धर्म और जाक्त के रंग में रंग कर लाभ उठाने की कोक्शश होती है । लेक्कि भारतरत्न डा. भीमराव रामजी आंबेडकर राष्ट्र-क्िर्माता के जीवन, संघषयों और उनके शैक्षक्णक काययों का मंथन करें, उससे पता चलता है क्क अर्थशासरि से संबंक्धत उनका लेखन अतयंत महतवपूर्ण, शैक्क्षक रुक्च और अकादक्मक मूलय का है जो लंबे समय तक दरक्किार रहा ।
डा. अमबेडकर मौक्लक रूप के एक आक््थिक क्सद्धांतकार थे, जो समकालीन शोध के प्रक्त पूर्णतः जागरूक थे और कई क्वषयनों पर इतनी
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