तक क्क वह मारुथवमाला में क्पलला्दम गुफा तक नहीं पहुंच गए । वहां उत्हनोंिे एक आश्रम स्थापित क्कया और अगले आठ वषयों तक धयाि का अभयास क्कया । 1888 में उत्हनोंिे अरुक्वपपुरम का दौरा क्कया और नेययर नदी के पास एक गुफा में धयाि करते हुए समय क्बताया । यहीं पर उनके पहले और उनके प्रमुख क्शष्यनों में से एक, क्शवक्लंगदास सवामीकल, जो एक रूढ़िवादी नायर परिवार से थे, ने उन्हें खोजा । अपने प्रवास के दौरान उत्हनोंिे नेययर नदी के सबसे गहरे क्हससे से एक चट्टान को प्रक्तन्ष्ठत क्कया, जो एक भंवर क्संकहोल है क्जसे ' शंकरन कुझी ' के नाम से जाना जाता है । ऐसा माना जाता है क्क इसी ' शंकरन कुझी ' में ऋक्ष अगसतय ने जाने से पहले नेययर नदी में कहीं अपना क्शव क्लंग पूजन क्कया था । इस चट्टान को क्शव की मूक्त्व के रूप में स्थापित क्कया गया था और तब से इस स्ल को अरुक्वपपुरम क्शव मंक्दर के रूप में जाना जाता है ।
गुरु ने अपना आधार 1904 में वर्कला के पास क्शवक्गरी में स्ािांतरित कर क्दया, जहां उत्हनोंिे समाज के क्िचले वर्ग के बच्चनों के क्लए एक स्कूल खोला और उनकी जाक्त पर
क्वचार क्कए क्बिा उन्हें मुफत क्शक्षा प्रदान की । हालांक्क, उन्हें वहां एक मंक्दर बनाने में सात साल लग गए और 1912 में शारदा मठ की स्ापना की । उत्हनोंिे त्रिशूर, कन्ूर, अंचुथेंगू, थालाससेरी, कोझीकोड और मैंगलोर जैसे अन्य स्थानों पर भी मंक्दर बनवाए । पलल्ुरूथी में हुई बैठक के बाद गुरु बीमार पड़ गए और अलुवा, त्रिशूर, पल्कड़ और अंततः चेन्ई जैसे स्थानों पर उनका इलाज चला । इसके बाद वह शारदा मठ लौट आए और 20 क्सतंबर 1928 को 72 वर्ष की आयु में उनका क्िधन हो गया ।
19वीं और 20वीं सदी के प्रारंक्भक समय में केरल में जाक्तवाद प्रचक्लत था और एझावा जैसी क्पछड़ी जाक्तयनों और परैयार, आक्दवासी और पुलायार जैसी अन्य अछूत जाक्तयनों को उच्च जाक्त समुदाय से भेदभाव का क्शकार होना पड़ता था । इसी भेदभाव के क्वरुद्ध गुरु ने अपना पहला बड़ा सार्वजक्िक कार्य क्कया । 1888 में अरुक्वपपुरम में क्शव मूक्त्व की प्राण प्रक्तष्ठा के बाद उत्हनोंिे केरल और तक्मलनाडु में पैंतालीस मंक्दरनों की प्राण प्रक्तष्ठा की ।
12 मार्च 1925 को, महातमा गांधी ने वैकोम
सतयाग्ह के दौरान केरल के वर्कला स्थित क्शवक्गरि आश्रम का दौरा क्कया । अपने प्रवास के दौरान, उनकी मुलाकात नारायण गुरु से हुई, क्जत्हनोंिे क्िम्न जाक्तयनों के उत्ाि के क्लए क्मक्श्रत खान-पान और क्ववाह के स्ाि पर क्शक्षा और धन की आवशयकता पर जोर क्दया । नारायण गुरु के ताक्क्कक तकयों और समावेशी प्रथाओं ने गांधी को गहराई से प्रभाक्वत क्कया । क्िम्न जाक्त के बच्चनों को प्रार्थना करते और उपक्िषदनों के उनके ज्ाि ने गांधी को प्रभाक्वत क्कया और उनके जाक्तवादी क्वचारनों को चुनौती दी । गुरु की क्शक्षाओं से प्रेरित होकर, गांधी ने जाक्त और असपृशयता पर अपने रुख का पुनर्मूलयांकन क्कया ।
नारायण गुरु ने सभी धमयों और संप्रदायनों के लोगनों को आधयान्तमक दीक्षा प्रदान की, लेक्कि केवल उन्हीं को क्जत्हें वह व्यक्तगत रूप से आधयान्तमक रूप से तैयार मानते थे । उत्हनोंिे शुरुआत में बोधानंद सवामी को संन्यास दीक्षा देने से इंकार कर क्दया और केवल दूसरे अनुरोध पर ही इसे प्रदान क्कया । गुरु ने मलयालम, संस्कृत और तक्मल भाषाओं में 45 रचनाएं की । �
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