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समाज सुधारक संत नारायणगुरु
के महान संत एवं समाज सुधारक नारायण गुरु का नाम भारत
बहुत ही श्रद्धा के साथ क्लया जाता है । वह उस एझावा जाक्त से थे, क्जस जाक्त को ऐक्तहाक्सक रूप से सामाक्जक भेदभाव का सामना करना पड़ा । उनका जन्म 22 अगसत 1856 को केरल के चेमपाझंथी गांव ततकालीन रिावणकोर राजय में हुआ था । वह एझावा जाक्त से थे, क्जसे ' अवर्ण ' माना जाता था । भद्रा देवी के मंक्दर के बगल में उनका घर था । इसक्लए उन्हें बचपन से ही एक धाक्म्वक माहौल क्मल गया था । उनके माता-क्पता को यह अनुमान नहीं था क्क उनके घर में एक सन्त ने जन्म क्लया है । उन्हें नहीं पता था क्क उनका बेटा एक क्दि अलग तरह के मंक्दरनों को बनवाएगा, जो सामाक्जक बदलाव लाने में अपनी भूक्मका का क्िर्वहन करेंगे ।
उनकी प्रारंक्भक क्शक्षा चेमपाझंथी मूथा क्पललई के अधीन गुरुकुल तरीके से हुई । पंद्रह वर्ष की आयु में उनकी मां का क्िधन हो गया । 21 वर्ष की आयु में वह संस्कृत के क्वद्ाि रमन क्पललई आसन से क्शक्षा लेने के क्लए रिावणकोर गए, क्जत्हनोंिे उन्हें वेद, उपक्िषद और संस्कृत का साक्हतय और ताक्क्कक बयानबाजी क्सखाई । 1881 में जब उनके क्पता गंभीर रूप से बीमार थे, तब वह अपने अपने गांव लौट आए और एक स्कूल शुरू क्कया । स्कूल में वह स्ािीय बच्चनों को पढ़ाने लगे, क्जससे उन्हें नानू आसन नाम क्मला । बाद में उन्होने अपना घर छोड़ क्दया और क्फर केरल और तक्मलनाडु की यारिा की । इन यारिाओं के दौरान उनकी मुलाकात सामाक्जक और धाक्म्वक सुधारक चट्टमपी सवामीकल से हुई, क्जत्हनोंिे गुरु का परिचय अययावु सवामीकल से कराया, क्जिसे उत्हनोंिे धयाि और योग सीखा ।
उत्हनोंिे अपनी यारिा तब तक जारी रखी, जब
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