Aug 2025_DA-2 | Page 37

अंग्ेजी सरकार की नौकरी न करके सवतंरि रूप से कार्य करने का क्िशचय क्कया । सवामी क्ितयािंद के क्िदचेश पर अधयापक की नौकरी छोड़ कर उत्हनोंिे बड़ोदा जाकर दक्लत क्वद्याक््थियनों को क्शक्षा देने का क्िशचय क्कया । एक प्की सरकारी नौकरी को छोड़कर गुजरात के गांव- गांव में दक्लतनों के उद्धार के क्लए धूल खाने का क्िर्णय सवामी दयानंद के सच्चा भ्त ही कर सकता था ।
आतमाराम जी बड़ोदा नरेश से क्मले तो उनको दक्लत पाठशालाओं को खोलने का क्वचार महाराज ने बताया और उन्हें इन पाठशालाओं का अधीक्षक बना क्दया गया । मासटर जी स्ाि तलाशने के क्लए क्िकल पड़े । जैसे ही मासटर आतमाराम जी क्कसी भी स्ाि को पसंद करते तो दक्लत पाठशाला का नाम सुनकर कोई भी क्कराये के क्लए उसे नहीं देता । अंत में क्ववश होकर मासटर जी ने एक भूत बंगले में पाठशाला स्थापित कर दी । गायकवाड महाराज ने कुछ समय के बाद अपने अक्धकारी श्री क्शंदे जी को भेजकर पाठशाला का हालचाल पता कराया ।
क्शंदे जी ने आकर कहा क्क महाराज ऐसा दृशय देख कर आ रहा हूँ, क्जसकी कोई कलपिा भी नहीं कर सकता । दक्लतनों में भी अक्त क्िम्न समझने वाली जाक्त के लड़के वेद मंरिो से ईशवर की स्तुति कर रहे थे और दक्लत लड़क्कयां भोजन पका रही थी क्जसे सभी सवण्व-दक्लत क्बिा भेदभाव के ग्हण कर रहे थे । सुनकर महाराज को संतोष हुआ । पर यह कार्य ऐसे ही संभव नहीं हो गया । आतमाराम जी सवयं अपने परिवार के साथ क्कराये पर रहते थे, जैसे ही मकान माक्लक को पता चलता की वे दक्लतनों के उत्ाि में लगे हुए हैं वे उन्हें खरी खोटी सुनाते और मकान खाली करा लेते । इस प्रकार मासटर जी अतयंत कष्ट सहने रहे पर अपने क्मशन को नहीं छोड़ा । महाराज के प्रेरणा से मासटर जी ने बड़ौदा राजय में 400 के करीब पाठशालाओं की स्ापना की, क्जसमें 20 हजार के करीब दक्लत बच्चे क्शक्षा ग्हण करते थे । महाराज ने प्रसन् होकर मासटर जी के समपूण्व राजय की क्शक्षा वयस्ा का इंसपे्टर बना क्दया । मासटर जी जब भी स्कूलनों के दौरनों पर जाते तो सवर्ण जाक्त के लोग उनका क्तरसकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, पर मासटर जी चुपचाप अपने कार्य में लगे रहे । समपूण्व गुजरात में मासटर आतमाराम जी ने न जाने क्कतने दक्लतनों के जीवन का उद्धार क्कया होगा इसका वर्णन करना कक्ठि हैं । अपने बमबई प्रवास के दौरान मासटर जी को दक्लत महार जाक्त का स्ातक युवक क्मला जो एक पेड़ के नीचे अपने क्पता की असमय मृतयु से परेशान बैठा था । उसे पढने के क्लयें 25रूपए माक्सक की छारिवृक्त गायकवाड महाराज से क्मली थी, क्जससे वो स्ातक की पढ़ाई कर सका था । मासटर जी उसकी क़ाबक्लयत को समझकर उसे अपने साथ ले आये । कुछ समय पशचात उसने मासटर जी को अपनी आगे पढने की इचछा बताई । मासटर जी ने उन्हें गायकवाड महाराज के बमबई प्रवास के दौरान क्मलने का आशवासन क्दया । महाराज ने 10 मेघावी दक्लत छात्रों को क्वदेश जाकर पढने के क्लए छारिवृक्त देने की घोषणा करी थी । उस दक्लत युवक को छारिवृक्त प्रदान की गयी क्जससे वे अमेरिका जाकर आगे की पढाई पूरी कर सके ।
अमेरिका से आकर उन्हें बड़ौदा राजय की 10 वर्ष तक सेवा करने का कार्य करना था । अपनी पढाई पूरी कर वह लगनशील युवक अमेरिका से भारत आ गए और उत्हनोंिे महाराजा की अनुबंध अनुसार नौकरी आरंभ कर दी । पर सवणयों द्ारा दफतर में अलग से पानी रखने, फाइल को दूर से पटक कर टेबल पर डालने आक्द से उनका मन खट्टा हो गया । वे आतमाराम जी से इस नौकरी से मु्त करवाने के क्लये क्मले । आतमाराम जी के कहने पर गायकवाड महाराज ने उन्हें 10 वर्ष के अनुबंध से मु्त कर क्दया । इस बीच आतमाराम जी के कार्य को सुन कर कोहलापुर नरेश साहू जी महाराज ने उन्हें कोलहापुर बुलाकर सम्मानित क्कया और आर्यसमाज को कोलहापुर का कलॉलेज चलाने के क्लए प्रदान कर क्दया । आतमाराम जी का कोलहापुर नरेश से आतमीय समबत्ध स्थापित हो गया ।
आतमाराम जी के अनुरोध पर उन दक्लत युवक को कोलहापुर नरेश ने इंगलैंड जाकर आगे की पढाई करने के क्लए छारिवृक्त दी क्जससे वे पीएचडी करके देश वापस लौटे । उन दक्लत युवक को आज के लोग डलॉ. आंबेडकर के नाम से जानते हैं जो कालांतर में दक्लत समाज के सबसे लोक क्प्रय नेता बने और क्जत्हनोंिे दक्लतनों के क्लए संघर्ष क्कया । मौजदा दक्लत नेता डलॉ. आंबेडकर से लेकर पंक्डता रमाबाई तक( क्जत्हनोंिे पूने में 1500 के करीब क्वधवाओं को ईसाई मत में सन्ममक्लत करवा क्दया था) उनसे लेकर ज्योतिबा फुले तक( क्जत्हनोंिे सतय शोधक समाज की स्ापना की और दक्लतनों की क्शक्षा के क्लए क्वद्यालय खोले) का तो नाम बड़े सममाि से लेते हैं पर सवर्ण समाज में जन्मे और जीवन भर दक्लतनों का जमीनी सतर पर क्शक्षा के माधयम से उद्धार करने वाले मासटर आतमाराम जी अमृतसरी का नाम नहीं लेते । सोक्चये अगर मासटर जी के प्रयास से और सवामी दयानंद की सभी को क्शक्षा देने की जन जागृक्त न होती तो डलॉ. आंबेडकर महार जाक्त के और दक्लत युवकनों की तरह एक साधारण से व्यक्त ही रह जाते । मासटर जी के उपकार के क्लए दक्लत समाज को सदा उनका ऋणी रहेगा । �
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