इतिहास
डा. आंबेडकर के सवर्ण मार्गदर्शक: मास्टर आत्ाराम अमृतसरी
डा. विवेक आर्य
20वीं शताबदी के आरंभ में हमारे देश में न केवल आज़ादी के क्लए संघर्ष हुआ अक्पतु सामाक्जक सुधार के क्लए भी बड़े-बड़े आन्दोलन हुए । इन सभी सामाक्जक आन्दालिनों में एक था क्शक्षा का समान अक्धकार । प्रसिद्द समाज सुधारक सवामी दयानंद द्ारा अमर ग्त्् सतया््व प्रकाश में उदघोष क्कया गया क्क राजा के पुरि से लेकर एक गरीब व्यक्त का बालक तक नगर से बाहर गुरुकुल में समान
भोजन और अन्य सुक्वधायनों के साथ उक्चत क्शक्षा प्रापत करे एवं उसका वर्ण उसकी क्शक्षा प्रापत करने के पशचात ही क्िर्धारित हो और जो अपनी संतान को क्शक्षा के क्लए न भेजे, उसे राजदंड क्दया जाये । इस प्रकार एक शुद्र से लेकर एक रिाह्मण तक सभी के बालकनों को समान परिस्थियनों में उक्चत क्शक्षा क्दलवाना और उसे समाज का एक क्जममेदार नागरिक बनाना क्शक्षा का मूल उद्ेशय था ।
सवामी दयानंद के क्रांतिकारी क्वचारनों से प्रेरणा
पाकर बड़ोदा नरेश शयाजी राव गायकवाड ने अपने राजय में दक्लतनों के उद्धार का क्िशचय क्कया । आर्यसमाज के सवामी क्ितयािंद जब बड़ोदा में प्रचार करने के क्लए पधारे तो महाराज ने अपनी इचछा सवामी जो को बताई क्क मुझे क्कसी ऐसे व्यक्त की आवशयकता हैं जो क्शक्षा सुधार के कार्य को कर सके । पंक्डत गुरुदत विद्यार्थी जो सवामी दयानंद के क्िधन के पशचात नास्तिक से आस्तिक बन गए थे से प्रेरणा पाकर नये नये स्ातक बने आतमाराम अमृतसरी ने
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