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परनतु यह लोग मनी्वाद का शिकार होकर धन से सत्ा और सत्ा से धन की परिक्रमा करने में जुटे रहते हैं । इसलिए दूर-दूर तक व्यवसथा परर्वततिन की आहट भी नहीं आने देते हैं और सिसटम का हिससा बन जाते हैं । डा . लोहिया का मानना था एक वयषकत एक रोजगार , खेती , नौकरी , राजनीति और वयापार । आज एक वयषकत अपने एक ्वारिस को संघर्ष के माधयम से राजनीति में रखे तो यह परर्वार्वाद की परिभाषा में नहीं आता । परनतु ठ्वडम्बना यह है कि वयषकतगत स्वार्थ इतना प्रबल हो गया है कि समाज का और देश का भला करना गौण हो गया है । राजशाही चलाने ्वाले राजनेता अपने सम्पूर्ण परर्वार के सदसयों को बिना संघर्ष किए राजनीति में दखल दिलाने में जी-जान से लगे हुए है । जबकि महान समाज्वादी नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर का मानना था कि मेरा पूरा पाटटी ही मेरा परर्वार है । बिहार में एक राजनेता का मानना है कि हमारा सम्पूर्ण परर्वार ही मेरी पाटटी है और ्वह अंधभकतों को जय-जयकार करने
आज बिहयार में अपने को समयाजवयादी कहने वयाले , लोग सत्ता शयासन कया किसी न किसी रूप में नहस्सया बने हरुए है । इनकया समयाजवयाद से कुछ लेिया-देिया नहीं है । क्ोंकि समयाजवयाद के रयाह पर चिलिया बड़या कठिन है , जबकि फिसलिया उतिया ही आसयाि है , जो जितिया चियाहे फिसल सकतया है । बिहयार में त्याकथित मरुखौियाधयारी समयाजवयादी एवं सयामयानजक न्याय के प्रणेतया अब परिवयारिक न्याय के परुरोधया बन चिरुके हैं ।
में लगाकर गुलामी की ओर ढकेलने में महारथ हासिल कर चुके है ।
• गयांधी जी वर्ण व्वस््था को परुष्ट नक्या और हरिजन वर्ग कया सृजन करके धर्म-कर्म की सया््णकतया को नसद करते हरुए ‘‘ रघरुपति रयाघव रयाजया रयाम , पतितपयावन सीतयारयाम ” की रट लगवया दी , इसे आप किस रूप में देखते है ?
महातमा गांधी ने राषट की आजादी के मकसद को पाने के लिए एक रणनीति के तहत सभी धमाति्वलम्बियों को एर लाने के उद्ेशय हरिजन ्वगति का सृजन किया और उसी समय गांधी जी ने यह गान चला दिया कि ‘‘ रघुपति राघ्व राजा राम , पतितपा्वन सीताराम ” और अपने चररत् के बल पर आजादी के संग्राम में हिनदू , मुसलमान , सिख , ईसाई सबको इकता के सूत् में बांधकर एक मंच पर लाकर खड़ा करने में कामयाब हो गए । लेकिन भारत को जो स्वतंत्ता मिली , ्वह के्वल राषटठपता गांधी की ही देन नहीं थी , बषलक लाखों स्वतंत्ता सेनानियों का बलिदान से आजादी हासिल हुई । आजादी के बाद महातमा गांधी का जो सपना था ‘ आजादी का सबूत गां्व हमारा हो मजबूत ’ और राजनीतिक दृषषटकोण से देश को आतमठनभतिरता ए्वं देश में ग्राम स्वराजय लाने का परिकलपना आज के ्वैश्विक सनदभति में असफल सिद्ध हो रही है । इसका कारण है कि राजनेता के्वल सामयिक यश में लगे रहे और ऐतिहासिक यश प्रापत करने की दिशा में कोई काम नहीं किया । सत्ा को सुख-सुठ्वधा का साधन मानकर चलने लगे है । जबकि यह राषट से्वा , समाज से्वा और जन से्वा का एक मात् साधन है ।
• बिहयार में अपने को समयाजवयादी कहने वयाले , समयानजक न्याय एवं धर्मनिरपेक्ष नसदयानत की वकयालत करने वयाले त्या सबकया सया्-सबकया विकयास , सबकया प्र्यास कया ियारया देने वयालों की अगले चिरुियाव में क्या रयाजनीति विसयात होगी ?
आज बिहार में अपने को समाज्वादी कहने ्वाले , लोग सत्ा शासन का किसी न किसी
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