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रूप में हिससा बने हुए है । इनका समाज्वाद से कुछ लेना-देना नहीं है । कयोंकि समाज्वाद के राह पर चलना बड़ा कठिन है , जबकि फिसलना उतना ही आसान है , जो जितना चाहे फिसल सकता है । बिहार में तथाकथित मुखौठाधारी समाज्वादी ए्वं सामाजिक नयाय के प्रणेता अब परर्वारिक नयाय के पुरोधा बन चुके हैं । शुरू में सत्ा शासन में भा्वनाओं की सौदागिरी करने हेतु 113 चर्वाहा ठ्वद्ालय की सथापना हुई थी । आज बिहार में एक भी चर्वाहा ठ्वद्ालय जमीन पर नजर नहीं आता है । अरबों रूपयों ठ्वश्व बैंक से लेकर इस पर खर्च हुआ , परनतु आज भी बिहार में गुण्वत्ापुर्ण शिक्ा लागू नहीं हो पायी । धर्म-निरपेक्ता सियासत करने का मजबूत नारा बन कर रह गया । मेरा मानना है कि बिहार में सभी जातियों में अंधभकतों की संसकृठत पनपा दी गई है । आज राजनीति में मुखौटाधारी समाज्वादी ए्वं जातीय गोलबंदी के प्रणेता तथा िजटी राषट्वादी ए्वं धर्मिक प्रणेता के बीच बिहार में आगामी ठ्वधानसभा चुना्व की जंग छिड़ चुकी है । सबका साथ-सबका ठ्वकास का नारा पूरी तरह खोखला है । बिहार में आज दो ध्रुवी राजनीति से लोगों का मन उचटता जा रहा है । गत लोकसभा चुना्व में कई लोकसभा क्ेत् में नोटा को तीसरा ठ्वकलप में रूप में पसंद किया गया कयोंकि अंधभषकत से न देश का , न समाज का और न किसी समुदाय का भला हो सकता है । देश और समाज का के्वल चररत् और ठ्वश्वास से भला हो सकता है । आज बिहार राजनीतिक चालाकी , धोखा , धूर्तता का पर्याय बन गया है । जबकि पू्वति में राजनीति तयाग , समर्पण , जनसे्वा और चररत् निर्माण का पर्याय होती थी । आगामी ठ्वधानसभा चुना्व में अभी की पररषसथठत के अनुसार किसी एक दल को बहुमत नहीं मिलने की संभा्वना दिख रही है । यदि लोकसभा के चुना्व में आयतित उम्मीद्वारों को लाकर चुना्व मैदान में खड़ा करने की जो परिपाटी चल पड़ी है , यदि उसे दोहराया गया तो परिणाम भी स्वतः दोहरा जा सकता है और ठनषशचत जनाधार अठनषशचत हो सकता है । �
मनु , मनुस्मृति और मनुवादी शब्दों पर है पुनर्चतन की आवश्यकता
मनु , मनुसमृठत और मनु्वाद की बात करने ्वाले लोगों का हम धयान आकर्षित करते हुए बस इतना कहना चाहूंगा कि ्वह कुछ इन तथयों को भी धयान में रखें कि 1927 में डा . बी . आर . आंबेडकर ने मनुसमृठत का दहन किया था । मनुसमृठत दहन करते समय उनहोंने मनुसमृठत पर यह आरोप लगाया था कि इसमें एक खास ठ्वरेष ्वगति के ठ्वरुद्ध अपमानजनक टिपपठणयां हैं । हम सब लोग यह इसलिए जानते हैं कयोंकि डा . आंबेडकर द्ारा अभिवयकत यह एक नकारातमक प्रतिक्रिया थी ।
डा . भीमरा्व अंबेडकर द्ारा ही इसी संदर्भ में की गई एक साकारातमक प्रतिक्रिया जो हम सब शायद जानते नहीं हैं अथ्वा जानबूझ कर चालाकी से उसकी अनदेखी करते हैं । कया हम सब में से कोई यह जानता है कि डा . आंबेडकर ने मनु को लिखित कलीन चिट दी है । उस लिखित कलीन चिट का संदर्भ उनकी 1948 में लिखित पुसतक ' अछूत कौन और कैसे ..?' में देखा जा सकता है । उस पुसतक के पृषि संखया 100 पर उनहोंने यह लिखा है कि मनु कालखंड में छुआछूत नहीं थी । यहां तक कि शुद्र या अंतयज भारत में कभी भी असपृशय नहीं थे । लेकिन आज दलित आंदोलनकारी अथ्वा दलित नेतृत्वकर्ता यदि दलितों के अधिकार की बात करते हैं तो ्वह अपनी बात यहीं से प्रारंभ करते हैं कि मनु ने शुद्रों का अपमान किया है । मनु ने ततकालीन समय में शुद्रों केलिए
घोर आपठत्जनक बातें मनुसमृठत में लिखी हैं । जबकि डा . आंबेडकर जैसे ठ्वद्ान वयषकत ने यह लिखकर अपने ठ्वचार की अभिवयषकत किया कि भारत में शुद्र अथ्वा अंतयज कभी भी असपृशय नहीं थे । इससे सपषट होता है कि मनु , मनुसमृठत और मनु्वाद अथ्वा मनु्वादी इतयाठद टिपपठणयां करने की आ्वशयकता ही नहीं है ।
डलॉकटर बी आर अंबेडकर के ठ्वचारों के बारे में एक बात में और ततथय का संदर्भ देना चाहूंगा । यह मेरे ठ्वचार नहीं है डलॉकटर बी आर अंबेडकर के ही हैं । उनहोंने अपनी एक महत्वपूर्ण पुसतक " हू ्वेयर शूद्राज यानी शूद्र कौन ?" नामक पुसतक के प्राककथन के प्रथम पृषि के तीसरी पैराग्राफ में लिखा है कि ्वततिमान भारत में जो दलित है ये प्राचीन या ्वैदिक कालीन शूद्र नहीं हैं । शूद्रों का ्वततिमान दलितों से कोई लेना देना नहीं है । यहां तक उनहोंने आगे उसी में लिखा है कि शूद्रों के लिए जो मनुसमृठत में नियम कानून बताए गए हैं , ्वह दुर्भागय से ्वततिमान दलितों पर लागू होने लगा है । आगे उनहोंने और भी सपषट किया कि यदि भारत के इतिहासकारों को भारतीय इतिहास का समुचित ज्ान होता तो शताषबदयों से चले आ रहें इन नरसंहारों को भी रोका जा सकता था ।
इसलिए मेरा मानना है कि डा भीमरा्व अंबेडकर के ठ्वचारों के आलोक में हमें ्वततिमान मनु , मनुसमृठत ए्वं मनु्वाद अथ्वा मनु्वादी शबदों का उपयोग सोच-समझकर करने की आ्वशयकता है । जहां तक मनु या मनुसमृठत का प्रश्न है , इस बारे में भी हमें निषपक् होकर अधययन करने और अपने ठ्वचार को अभिवयकत करने की आ्वशयकता है ।
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