Aug 2024_DA | Page 44

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ने निरनतर दलित मुषकत और मान्वाधिकार के मामले उठाकर सरकार ए्वं पूरे देश का धयान आकर्षित किया । महाड़ ए्वं कालाराम मंदिर प्रकरण , गोलमेज सम्मेलन , पूना पैकट , स्वतंत् मजदूर दल , अनुसूचित जाति संघ , संठ्वधान सभा से होते हुये देश के प्रथम कानून मंत्ी और उससे तयागपत् का सफर ठ्वपरीत हालात से गुजरताहुआ 14 अकटूबर 1956 को बौद्ध धर्मानतरण के साथ ही पूर्ण हुआ । उनहोंने कांग्रेस तथा महातमा गांधी की अछूतोद्धार सम्बनधी कार्यप्रणाली की धज्जियां उड़ाते हुए 1945 में ’’ कांग्रेस और गांधीजी ने अछूतों के लिए कया किया ’’ नामक पुसतक के प्रथम पृषि पर लिखा कि हमारा मालिक बनने से तुम्हे फायदा होगा पर तुम्हारा दास बनने से हमें कया फायदा हो सकता है । प्रसिद्ध इतिहासकार सुमित सरकार लिखते है कि इतिहास ग्वाह है कि
हरिजन आनदोलन का जनम ही दलित आनदोलन को दबाने के लिए हुआ था I लेकिन समय के प्र्वाह में दलित आनदोलन ने हरिजन आनदोलन के सामाजिक और धार्मिक प्रकृति के मुद्ों को गौण साबित करते हुए राजनीतिक ए्वं आर्थिक प्रतिनिधित्व के स्वालों पर अपने आनदोलन की बिसात तैयार की । एक तरह से डा . आंबेडकर के आतमसम्मान आनदोलन ने दलित ्वंचित समाज में एक चिंगारी का काम किया और इनमें राजनीतिक चेतना पैदाकी ।
सामाजिक हालात के ठ्वरोधाभास की वयाखया
करते हुए डा . आंबेडकर ने संठ्वधान सभा में कहा था कि भारतीय समाज में दो बातों का पूर्णतः अभा्व है । इनमें एक समानताहै । सामाजिक क्ेत् में देश का समाज वर्गीकृत असमानता के सिद्धानत पर आधारित है , जिसका अर्थ है कुछ लोगों के लिए उतथान ए्वं अनयों की अ्वनती । आर्थिक क्ेत् में देखते है कि समाज के कुछ लोगों के पास अथाह सम्पति है , जबकि दूसरी ओर असंखय लोग घोर दरिद्रता के शिकार है । 26 जन्वरी 1950 को हम लोग एक ठ्वरोधाभासी जी्वन में प्र्वेश करने जा रहे है । राजनीति के क्ेत् में हमारे बीच समानता होगी पर अपने सामाजिक ए्वं आर्थिक जी्वन में ्वततिमान सामाजिक ए्वं आर्थिक संरचना के चलते एक वयषकत एक मूलय के सिद्धानत को अस्वीकार करना जारी रखेंगें । हम कब तक इस ठ्वरोधाभासी जी्वन को जीते रहेगें , अपने
सामाजिक और आर्थिक जी्वन में समानता को अस्वीकार करते रहेगें ?
भारतीय समाज के निम्नतम सोपान पर जी्वन यापन करने ्वाले समुदाय की सामाजिक आर्थिक समसयायों का जाति व्यवसथा से प्रतयक् सम्बनध है कयोंकि यहीं व्यवसथा सामाजिक आर्थिक संरचना ए्वं संसाधनों से जुड़ी है । डा . आंबेडकर ने कहा था कि दुनिया के अनय देशों में सामाजिक क्रांति होती रही हैं , पर भारत में ऐसी सामाजिक क्राषनत कयों नहीं हुई ? इसके लिए उनहोंने जाति प्रथा की बुराईयों को जिम्मेदार माना । एक और
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जब दलितों की षसथठत का समाजशासत्ीय अधययन करते हैं तो इस निषकषति पर पहुंचते हैं कि दलित समुदाय सामाजिक अपमान , घुटन , ए्वं धृणा के प्रतिरोध में तथा अषसमता और आतमसम्मान के लिए ऐसे धर्म को स्वीकार करता है , जहां उसे समता , बंधुताए्वं स्वतंत्ता मिले । जिस तरह हिनदी का ठ्वपुल साहितय धर्मग्रनथों की घटनाओं के आधार पर लिखा गया है , ठीक उसी तरह अब दलित साहितय भी धर्म के मान्व ठ्वरोधी पक्ों को ठचठत्त करके सामाजिक जागरण का अभियान चला रहा है ।
भारतीय समाज की संरचना बहुआयामी होने के साथ-साथ जटिल है । इस सामाजिक संरचना में कुछ ऐसे तत््व हैं , जो शोषित ्वगति के ठ्वरुद्ध जाते हैं । जाति प्रथा एक ऐसा ही तत््व है , जो सामाजिक एकता , सामाजिक समरसता और सार्थक सामाजिक सरोकारों के ठ्वरुद्ध जाता है । भारतीय समाज की धार्मिक परंपराओं में जाति- व्यवसथा को जिस प्रकार महिमामंडित किया गया है , उसके कारण समाज में कुछ ऐसी बद्धमूल धारणा ठ्वकसित हो गई हैं , जो सामाजिक सद्भाव में बाधक हैं । जाति-भेद के कारण समाज का एक ठ्वरेष ्वगति , जो बहुसंखयक है , ्वह आज के ्वैश्वीकरण के दौर में भी असमानता , शोषण , उपेक्ा और अपमान को झेल रहा है । यह ्वगति आर्थिक शोषण का शिकार तो हैं ही , सामाजिक उपेक्ा और अपमान का दंश भी झेल रहा है । सपषट है , अभी भी दलित चिनतन को विभिन्न झंझा्वतों से होते हुए ठ्वकसित होना है । दलितों में यदि स्वाभिमान है , मुषकत का जजबा है तो अपनी सामाजिक और आर्थिक सतर को उच्चतम सोपान तक पहुंचाने का हर संभ्व प्रयास करेंगें । इस कार्य में मीडिया और साहितय को भी सकारातमक रुख अपनाना होगा और लोक कलयाण की अ्वधारणा के तहत् जनमानस में यह चेतना फैलानी होगी कि एक समता मूलक समाज और नागरिक समाज की सथापना में ही राषट का हित निहित है और जिसके फलस्वरुप देश की बहुत सी समसया अपने आप दूर हो जाएगी ।
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