नाकारा नहीं जा सकता है कि दलितोतथान से समाज और देश का समग्र ठ्वकास संभ्व है । इस शाश्वत हकीकत के आलोक में हमारे संठ्वधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक , आर्थिक , शैक्ठणक ए्वं राजनीतिक क्ेत् में उनके हित और सरषकतकरण के लिए अनेक नियम , कानून , प्रा्वधान तथा कार्यक्रम ए्वं योजनाएं बनायीं गयी हैं । बाबा साहेब भीम रा्व अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सं्वैधानिक धरातल से सुदृढ़ करने का जो प्रा्वधान पेश किया , सही मायने में देखा जाये तो उस पर अम्लीकरण नहीं हो सका । ठनषशचत ही इसका श्ेय कांग्रेस पाटटी को
जाता है । इससे बड़ी ठ्वडम्बना कया हो सकती है कि कथनी में बाबा साहेब आंबेडकर की छठ्व को भुनाया गया और करनी में दलित आंदोलन की धार को " गोठिल " करने की भ्रामक चाल किसी से छिपी है । ऐसे दोहरेपन को लक्य कर बाबा साहेब अम्बेडकर ने कांग्रेस को जलता हुआ घर बताया था और दलित नेताओं को इसमें शामिल होने के खिलाफ आगाह किया था । अतीत के पृषिों पर यह हकीकत दर्ज है कि कांग्रेस ने यर्वंत रा्व चवहाण के माधयम से महाराषट में दलित नेतृत्व को हथियाने का कुषतसत खेल खेला । दलित नेता उसके इस चक्र्वयह में फंसते चले गए । उनका तर्क यह
था कि इससे ्वह दलित हितों का भला कर सकेंगेI लेकिन दलित समाज के समग्र ठ्वकास की बजाय दलित समाज के भीतरी जाठत्वादी पेंच को ऐसा फंसाया गया कि दलितों का ठ्वकास इसी में उलझ कर रह गया । अपनी-अपनी डफली पर अपना-अपना राज बजाया जाता रहा और दलित चिंतन और दलित ठ्वकास महज ्वोट बैंक का जरिया बन कर रह गया ।
स्वतंत्ता के बाद बाबा साहेब अम्बेडकर के चिंतन और आंदोलन से लेकर आजतक सामाजिक-राजनीतिक दलित आंदोलन के दृषषटपथ में दलितों का अंदुरुनी जाठत्वाद एक ठ्वकृत चुनौती बनकर खड़ा है । यह बात अलग है कि सैकड़ों जातियों में बटे दलित समाज की कुछ जातियां सामाजिक नयाय के सं्वैधानिक प्रा्वधानों के फलस्वरूप ठ्वकास फलक पर अपनी उपषसथठत दर्ज कराने में कामयाब हुई है , लेकिन उनका नजरिया भी समाज के ्वंचित दलितों के प्रति भेदभा्व और उपेक्ापूर्ण बना हुआ है । इस परिप्रेक्य में यह कदापि ठ्वसमृत नहीं किया जाना चाहिए कि बाबा साहब अम्बेडकर ने प्रतयेक पिछड़े और शोषित ्वगति के लिए आजी्वन संघर्ष किया था । ठ्वषमता और असपृसयता जैसी शर्मनाक कुरीतियों के ठ्वरुद्ध उनहोंने जिस बुलंदी के साथ आ्वाज उठायी , ्वह युगों-युगों तक इतिहास के पन्ों में अमर हो गयी । दलित समाज का समग्र ठ्वकास और एक समरस भारत बनाने की उनकी अपनी परिकलपना थी । देश की ठन्वातिचन व्यवसथा में दलित नेतृत्व को सुअ्वसर मुहैया कराने के मद्ेनजर लोक सभा , राजय सभा , ठ्वधान सभा और ठ्वधान परिषदों में दलित समाज के सदसयों को आरक्ण की व्यवसथा सुनषशचत की गयी । यह महज इसलिए नहीं की गयी थी कि इसका फायदा हासिल करके कोई दलित सांसद , ठ्वधायक या मंत्ी बनकर सिर्फ निजी और अपने परर्वार का हित साधन करे और अकूत धन सम्पति हासिल क्रीमी लेयर के मद में चूर होकर दलित और महादलित की ठ्वकासपरक चिंताओं को ठ्वसमृठत कर मात् ्वोट बैंक के दायरे में सीमित कर दे । आरक्ण की यह व्यवसथा लागू
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