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डा आंबेडकर और डा हेडगेवार

दोनदों का लक्ष्य था दलित कल्ाण

श जब गुलामी की जंजीर तोड़कर ns

एक लम्बी जदोजहद के बाद
स्वतंत् हुआ था , तब देश के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हुई थीं । उच नीच , भेदभा्व , अशिक्ा , गरीबी , बेरोजगारी , बेगारी , रोटी-कपडा और मकान जैसी कई समसयाएं देश के बेहतर भठ्वषय निर्माण के पथ पर बाधक बन कर सामने मौजूद थीं । एक और स्वतंत्ता का जश्न में डूबा परर्वेश और दूसरी तरफ समसयाओं सी ग्रसत संक्रांति काल । यह एक ऐसा ठ्वद्रूप सच था , जिससे निजात पाना वयषकत पैमाने की अहम प्राथमिकता थीं । इस उच्च-निम्न भेदभा्व के खिलाफ मोहनदास करमचंद गांधी ने न सिर्फ अपनी चिंताओं को ्वकत के पन्ों पर अंकित किया , बषलक दलितों-्वंचितों के सम्मान और समृद्धि की दिशा उनहोंने संकलपरील अभियान भी शुरू किया । गांधी जी के अला्वा डलॉ भीम रा्व अम्बेडकर , डलॉ राजेंद्र प्रसाद , लोकमानय तिलक , सरदार बललभ भाई पटेल , चिंतक और ठ्वचारक पंडित दीन दयाल उपाधयाय , जयोठतबा फूले आपने अनेक ठ्वभूतियों ने देश की दीन-दशा मजबूत करने की दिशा में अपनी चिंताओं और अपने प्रयासों को पूरी ठरद्त के साथ मूर्त रूप दिया । यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ साथ दलित समाज महज ्वोट बैंक बन कर रह गया ।
समय के पैमाने से इस सच को कदापि
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