को अपने हितों की रक्ा के लिए ठ्वधायी कायगों को अपने पक् में प्रभाठ्वत करने के लिएं राजनीतिक सत्ा में पर्यापत प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए । अत : उनका सुझा्व था कि केनद्रीय तथा प्रानतीय ठ्वधान मंडलों में दलितों की भागीदारी हेतु पर्यापत प्रतिनिधित्व के लिए कानून बनाया जाना चाहिए । इसी प्रकार उनका मानना था कि ठन्वातिचन कानून बनाकर यह व्यवसथा की जानी चाहिए कि प्रथम दस ्वषति तक दलित ्वगति के ्वयसक मताधिकारियों द्ारा पृथक ठन्वातिचन के माधयम से अपने प्रतिनिधि का ठन्वातिचन किया
जाना चाहिए तथा बाद में दलित ्वगति हेतु आरठक्त सथानों पर सम्बषनधत ठन्वातिचन क्ेत् के सभी ्वयसक मताधिकारियों द्ारा ठन्वातिचन किया जाना चाहिए ।
डा . आंबेडकर का मत था कि दलित ्वगति के उतथान के लिए यह भी आ्वशयक है कि उनहें सरकारी से्वाओं में पर्यापत प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए । उनके अनुसार इसके लिए दलित ्वगति हेतु आरक्ण की व्यवसथा की जानी चाहिए । उनके अनुसार दलित ्वगति को से्वाओं में पर्यापत सथान दिलाए जाने के लिए सरकार को ठ्वरेष सं्वैधानिक तथा कानूनी प्रा्वधान करने चाहिए । डलॉ . आंबेडकर का मानना था कि दलित ्वगति को नीति निर्माण के कायगों में उचित अ्वसर के लिए मंठत्म्डलों में भी पर्यापत प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए । उनको भय था कि बहुमत के शासन में दलित ्वगति के हितों तथा अधिकारों की उपेक्ा होने की संभा्वना हो सकती है । किनतु यदि दलित ्वगति को कार्यपालिका में जब पर्यापत प्रतिनिधित्व मिलेगा तो ्वह अपने अधिकारों तथा हितों के प्रति होने ्वाली उपेक्ा को समापत करने में सक्म होगा तथा अपने ठ्वकास के लिए ठ्वरेष नीतियों का निर्माण कर रचनातमक कार्यक्रमों को शासन के माधयम से सफलतापू्वतिक क्रियान्वित किया जा सकता है ।
डा . आंबेडकर को असपृशय लोगों के प्रति हिनदू समाज के व्यवहार से काफी ठेस लगी । अत : ्वह इस निषकषति पर पहुंचे कि दलितों को अपने सम्मान को बचाए रखने के लिए हिनदू धर्म को अषनतम हथियार के रूप में तयाग देना चाहिए । किनतु उनका मानना था कि भारत में इसलाम और ईसाई धमगों का भी दलितों के प्रति दृषषटकोण नयायपू्वतिक नहीं है , अत : दलितों को भारत में प्रचलित एक अनय धर्म बौद्ध धर्म को अपना लेना चाहिए । उनका ठ्वश्वास था कि बौद्ध धर्म सामाजिक असमानता को समापत कर भ्रातृत्व की भा्वना ठ्वकसित करता है । यही कारण था कि डा . आंबेडकर ने स्वयं अपने जी्वन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था । इस संदर्भ में डा . आंबेडकर के ठ्वचार महातमा गांधी के ठ्वचारों से मेल नहीं
खाते थे । महातमा गांधी का यह दृढ़ ठ्वश्वास था कि धर्म परर्वततिन करने मात् से दलित वर्गों की षसथठत में ्वास्तविक सुधार होगा ही , इसकी कोई ठनषशचतता नहीं है ।
डा . आंबेडकर भारतीय समाज में षसत्यों की हीन दशा से काफी क्ुबध थे । उनहोंने उस साहितय की कटु आलोचना की जिसमें षसत्यों के प्रति भेद-भा्व का दृषषटकोण अपनाया गया । उनहोंने दलितों के उतथान ए्वं प्रगति के लिए भी नारी समाज का उतथान आ्वशयक माना । उनका मानना था कि षसत्यों के सम्मानपू्वतिक तथा स्वतंत् जी्वन के लिए शिक्ा बहुत महत्वपूर्ण है । डा . आंबेडकर ने हमेशा सत्ी- पुरूष समानता का वयापक समर्थन किया । यही कारण है कि उनहोंने स्वतंत् भारत के प्रथम ठ्वठधमंत्ी रहते हुए ‘ हिंदू कोड बिल ’ संसद में प्रसतुत करते समय हिनदू षसत्यों के लिए नयाय सम्मत व्यवसथा बनाने के लिए इस ठ्वधेयक में वयापक प्रा्वधान रखे । भारतीय संठ्वधान के निर्माण के समय में भी उनहोंने सत्ी-पुरूष समानता को सं्वैधानिक दर्जा प्रदान कर्वाने के गम्भीर प्रयास किए ।
डा . आंबेडकर के सामाजिक चिनतन में असपृशयों , दलितों तथा शोषित ्वगति के उतथान के लिए काफी दर्शन झलकता है । ्वे उनके उतथान के माधयम से एक ऐसा आदर्श समाज सथाठपत करना चाहते थे जिसमें समानता , स्वतंत्ता तथा भ्रातृत्व के तत्व समाज के आधारभूत सिद्धांत हों । डलॉ . आंबेडकर एक महान सुधारक थे जिनहोंने ततकालीन भारतीय समाज में प्रचलित अनयायपूर्ण व्यवसथा में परर्वततिन तथा सामाजिक नयाय की सथापना के जबरदसत प्रयास किए । उनहोंने दलितों , पिछड़ों , असपृशयों के ठ्वरूद्ध सदियों से हो रहे अनयाय का न के्वल सैद्धांतिक रूप से ठ्वरोध किया अपितु अपने कार्य कलापों , आनदोलनों के माधयम से उनहोंने शोषित ्वगति में आतमबल तथा चेतना जागृत करने का सराहनीय प्रयास किया । इस प्रकार डा . आंबेडकर का जी्वन समर्पित लोगों के लिए सीखने तथा प्रेरणा का नया स्ोत बन गया । �
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