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डा . आंबेडकर की दृष्टि में इस्ामिक सामाजिक व्यवस्ा

डया . शिव पूजन प्रसयाद पयािक

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रत का स्वाधीनता आंदोलन राजनीतिक आनदोलन के साथ- साथ एक सामाजिक आनदोलन था । साथ ही यह भारतीय समाज में आए सामाजिक ठ्वचलनों के सुधारने का एक प्रयास भी था । ठ्वसतृत और ठ्वराल भू-भाग होने के कारण अनके प्रकार की सामाजिक ठ्वठ्वधता भी थी , जिसमें धार्मिक ठ्व्वधता भी शामिल है । भारत की भूमि में हिनदू , बौद्ध जैन ए्वं अनय मता्वलम्बी भी थे । इसलाठमक आक्रानताओं ने भारत में इसलाम का प्रचार किया और लगभग आठ सौ वर्षों में मतानतरण के माधयम से इसलाम को अपना पंथ स्वीकार करने ्वालों की संखया बढ़ती चली गई I
स्वाधीनता आंदोलन के समय भारत की हिनदू सामाजिक व्यवसथा में परर्वततिन खोजा जा रहा था , लेकिन इसलाम पंथ की सामाजिक व्यवसथा इससे बाहर रही । इसलाम के राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व ने अपने समाज को बनधनों और जकडनों में ही रखा अर्थात इसलाम के अनदर की सामाजिक कुरीतियों पर नयूनतम या नहीं के बराबर ही चर्चा हुई I
भारत के संठ्वधान निर्माता डा . आंबेडकर ने भारत के इसलाठमक समाज में वयापत कुरीतियों के सम्बनध में बहुत कुछ लिखा है । यद्ठप डा . आंबेडकर इसलाम की सामाजिक व्यवसथा को ‘ भारत के ठ्वभाजन ’ के सनदभति में लिख रहे थे लेकिन उनकी कुछ बातें आज भी अक्रशः सतय है । ्वततिमान सनदभति में प्रधानमंत्ी मोदी पसमांदा मुषसलम समाज के ठ्वकास की बात कर रहे हैं तो समझना यह भी आ्वशयक है कि मुषसलम समाज में पसमांदा कौन है ? और ्वह कया चाहते हैं ? पसमांदा समाज की मूल अ्वधारणा कया है ?
डा . आंबेडकर कहते हैं कि हिंदू समाज के दोषों को वयकत करने ्वाली सामाजिक बुराइयां स्वतिठ्वठदत हैं । मिस मेयो द्ारा प्रकाशित ‘ मदर इंडिया ’ में इनका ठ्वसतार से ठ्व्वेचन किया गया है । परंतु ‘ मदर इंडिया ’ ने जहां इन बुराइयों को
सामने लाने का सोद्ेशय कार्य किया और इनके प्र्वततिकों को ठ्वश्व नयाय मंच के सामने अपने पापों का उत्र देने के लिए आहूत किया । इससे ठ्वश्व में यह धारणा भी बनी है कि हिंदू इन सामाजिक बुराइयों की कीचड़ में फंसकर
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