Aug 2024_DA | Page 25

स्वयं कर सकेंगे और अपने हालात को सुधार कर ठ्वकास की मुखय धारा के साथ कदम से कदम मिलकर चल पाएंगे । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । स्वतंत्ता के बाद आरक्ण तो मिल गया पर आरक्ण भी दलितों की षसथठत को सुधारने में पूरी तरह कारगर नहीं सिद्ध हो पाया । शिक्ा और अ्वसरों की कमी ने दलित समाज को राजनीतिक दलों के हाथ की कठपुतली बना कर रख दिया । कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी ने दलितों के हालात सुधारने के लिए एक नारा दिया था - " गरीबी हटाओ "। वर्षों तक इस नारे का बहुत ही खूबसूरती के साथ इसतेमाल तो किया गया पर न तो गरीबी हट पायी और न ही दलितों का कोई कलयाण हुआ । इसका कारण के्वल यही रहा कि दलित समाज को कभी भी ्वास्तव में समाज की मुखय धारा से जोड़ने के लिए गंभीर कदम नहीं उठाए गए और जो कदम उठाए भी गए , ्वह राजनीति और स्वःहितों की भेंट चढ़ गए । दलित समाज आज भी ्वही है जहां ्वह स्वतंत्ता के पहले था । यदि डलॉ अम्बेडकर द्ारा संरक्ण के रूप में संठ्वधान का सहारा नहीं मिला होता तो दलित समाज की षसथठत भया्वह ए्वं दयनीय होती । ऐसे में दलित समाज को यह समझना ही होगा कि
्वह महज ्वोट बैंक नहीं है और न ही उनका उपयोग के्वल चुना्व में जीत या हार अथ्वा सत्ा की ह्वस मिटाने के लिए किया जा सकता है । इसके अला्वा दलितों को उन अनेकों अ्वसर्वादी ए्वं स्वहित तक सीमित रहने ्वाले नेताओं से भी अब होशियार रहने की जरुरत है जो उनहें सपने दिखाकर अपने हितों की पूर्ति करते है और ऐसे ही नेता अब " दलित-मुषसलम गठजोड़ " का नया राग सुनकर दलितों का फिर से उपयोग करने के अ्वसर की प्रतीक्ा में हैं ।
समझरा िराए अब दलित आंदोलन को
दलित समाज को एकठत्त करने ए्वं उनका राजनीतिक ए्वं सामाजिक क्रांतियों में उपयोग करने की मानसिकता से देश में बड़े-बड़े आंदोलन चले । डलॉ भीम रा्व आंबेडकर को छोड़ दिया जाए तो राषटठपता महातमा गांधी का भी दलित आंदोलन स्वतंत्ता अथ्वा स्वसत्ा प्राषपत के उद्ेशय से अलग नहीं था । तदोपरांत जो भी आंदोलन हुए चाहे उत्र भारत का दलित आंदोलन , चाहे दठक्ण भारत का दलित आंदोलन अथ्वा राजनीतिक दलों का दलित आंदोलन , सब का एक ही उद्ेशय " सत्ा पलट या सत्ा की प्राषपत " था । डलॉ भीम रा्व आंबेडकर का अभी तक का एक मात्ा एक ऐसा दलित आंदोलन था , जो दलित ्वगति के ठ्वकास , उनहें मान्वाधिकार दिलाने ए्वं उनका आर्थिक ए्वं शैक्ठणक सरषकतकरण था । आज आ्वशयकता इस बात की है कि दलित आंदोलन का अभिप्रायः समझा जाए । यदि ऐसा नहीं हुआ तो दलित आंदोलन स्वतिदा भटकता रहेगा ए्वं कुछ लोग अपनी सत्ा की भूख मिटाते रहेंगे और दलित ्वगति की रषकत का दुरूपयोग होता रहेगा ।
दलित समाज के ्वास्तविक कलयाण और सरषकतकरण के लिए कोई भी आंदोलन या अभियान तभी सफल हो सकता है , जब आंदोलन या अभियान का लक्य दलित समाज का उतथान हो और इसके लिए एक ऐसे बलूठप्रंट की जरुरत है , जो दलित समाज की ्वास्तविक षसथठतयों को धयान में रखकर तैयार किया जाए । यह
बलूठप्रंट तभी बन सकता है , जब आंदोलन या अभियान चलने ्वाले लोग दलित समाज की ्वास्तविक पीड़ाओं को जनता और समझते हो । दलितों के समग्र ठ्वकास के लिए यह भी जरुरी है कि जो भी बलूठप्रंट प्रिंट बनाया जाए , ्वह दलित समाज की आर्थिक और शैक्ठणक प्रगति पर केंद्रित हो । कारण यह है कि दलित समाज का समग्र सरषकतकरण तभी संभ्व होगा , जब ्वह पूर्ण रूप से ठरठक्त होंगेI शिक्ा के माधयम से ही ्वह अपना आर्थिक ठ्वकास करने में भी समर्थ हो सकेंगे । इसलिए जरुरी है कि दलित समाज के ठ्वकास के लिए जो भी बलूठप्रंट बने , ्वह आर्थिक और शैक्ठणक श्ेठणयों में बांटकर बनाया जाए । इसमें यह भी धयान रखा जाए कि बलूठप्रंट राजनीति से प्रेरित न हो और सिर्फ दलित समाज के ्वास्तविक कलयाण की परिकलपना को साकार करने में सक्म हो ।
देखा जाए तो दलित ्वगति की तमाम समसयाओं के पीछे अशिक्ा एक बड़ा कारण हैI अशिक्ा से निपटने के लिए भी प्रभा्वी कदमों को ततकाल उठाने की जरुरत है । तमाम दा्वों के बा्वजूद यह एक कडु्वा सतय है कि दलित ्वगति के तमाम बच्चे प्राथमिक शिक्ा भी पूरी नहीं कर पाते और सकूल छोड़ कर बचपन से ही काम-धंधे में जुट जाते हैं । इसलिए यह आ्वशयक है कि दलित समाज में शिक्ा को प्रोतसाठहत तो किया ही जाए । साथ ही ऐसी व्यवसथा भी की जानी चाहिए जिससे सकूल को बीच में छोड़ देने ्वाले बच्चों पर भी निगाह रखी जा सके । दलित छात्ों को समय से छात्रवृठत् , उच्च ए्वं व्यावसायिक शिक्ा के समुचित प्रबंध के साथ ही सरकार और व्यवसथाकारों को देखना होगा कि शिक्ा के प्रबंध ऐसे हो , जो दलित ्वगति को एक नयी राह दिखाने और उस राह पर ले जाने में सहायक साबित हो । इसके लिए दलित ्वगति और दलित समाज के नेता एकजुट होकर अभियान या आंदोलन अगर चलते है तो ऐसे आंदोलन एक नयी राह और एक नया स्वेरा लेकर आएगा अनयथा राजनीति और सत्ा की दृषषट से किये जाने ्वाले आंदोलन कोई चमतकार दिखा पाने में सफल ही साबित होंगे । ` �
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