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के रूप में ही उपयोग किया गयाI
दलितों की जटिल समस्याएं
आज स्वतिप्रथम तो यह तय करने की जरुरत हैं कि दलित समाज की ्वास्तविक समसयाएं कया हैं और उन समसयाओं के समाधान के लिए किस तरह के कदम उठाये जाने की जरुरत है ? दलित समसया को गहराई से समझने के लिए ठ्वद्ानों , जिज्ासुओं ए्वं दलित संवर्गीय नेताओं , प्रतिनिधियों , नेतृत्वकर्ताओं इतयाठद को यह भी धयान रखना होगा कि लगभग आठ सौ वर्षों के मधय जब भारत के केंद्रीय शासन और सत्ा में हिनदू ्वगति के लोग थे ही नहीं , तो फिर ब्ाह्मण और क्ठत्य सं्वगति की जातियों को दलित समसया के लिए उत्रदायी ठहराना कहीं से भी उचित और प्रमाणित नहीं है । इसके उलट प्रशासन में मधयकाल में जिन ब्ाह्मणों ए्वं क्ठत्यों ने धर्माभिमान , स्वाभिमान ए्वं राषटाठभमान के कारण इसलाम को ठुकरा दिया था , उनके स्वाभिमान को भंग करने के लिए उनहें अस्वचछ यानी गंदे काम ( मैला ढोने या चर्म कर्म ) में लगाकर उनहीं को ही तल्वार की नोक पर दलित बना दिया । इसलिए ्वततिमान दलित सं्वगति की जातियां कोई और नहीं , अपितु ब्ाह्मण और क्ठत्य ही है । ठ्वसतृत अधययन के लिए आकसिोर्ड के प्रो , ऍम ए शेरिग की पुसतक " द हिनदू कासट एंड टाइबस " को देखा जा सकता है , जो अम्बेडकर के जनम से बीस ्वषति पू्वति प्रकाशित हुई थीI हिनदू समाज में पवित्रता की भा्वना पर आधारित असपृशयता का आधार अस्वचछ कार्य यानी मल-मूत् की सफाई और चर्म कर्म से है । इसलिए मधयकाल में बलपू्वतिक हिनदुओं को अस्वचछ कार्य में लगाना दलित समसया का मूल है और इसे समापत करने के लिए पूरे हिनदू समाज को ्वास्तविकता के धरातल पर कदम उठाने होंगे , तभी दलित समसयाओं के समाधान के लिए होने ्वाले आंदोलन ्वास्तव में सार्थक साबित हो सकेंगे I
स्वतंत्ता के बाद देश में पहली सरकार कांग्रेस की बनी और सत्ा चलाने की जिम्मेदारी ज्वाहरलाल नेहरू जी ने ली । पर नेहरू जी को
जिस समय सत्ा मिली , उस समय उनके मन- मषषतक में पषशचमी देशों पर आधारित ए्वं उनहीं की तरह देश को बनाने की मानसिकता थी । इसके साथ ही स्वतंत्ता के उपरांत बढ़ती उम्र के कारण सुख और आतम की तरफ भी उनका झुका्व था । कांग्रेस के नेता के रूप में उनहोंने दलितों की सभी समसयाओं का समाधान करने का दा्वा किया और उनका उपयोग ्वोट लेने के लिए करते रहे । कांग्रेस , ्वामपंथियों और मुषसलमों की चुना्वी और सत्ा सम्बनधी रणनीति पर अगर धयान दिया जाए तो कहना अनुचित नहीं होगा कि वर्षों से एक षड्ंत् के तहत देश की हिनदू जनता को बांटा गया और उसका उपयोग सत्ा हथियाने के लिए किया जाता रहा । कांग्रेस की हिनदू ठ्वरोधी रणनीति में भारतीय संसकृठत के सुपरिचित ए्वं कट्टर ठ्वरोधी ्वामदलों ने अपना भरपूर साथ दिया । परिणामस्वरुप देश के हर राजय में यानी उत्र से दठक्ण तक और पूरब से पषशचम राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने ्वाले अयोगय राजनेता , राजनीतिक दल ए्वं संघठन का एक ऐसा जमा्वड़ा लग गया , जिसने देश और जनता का नुकसान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी । कांग्रेस जब सत्ा में नहीं रही , उस दौरान भी-्वह चाहे 1977 से 1980 का कालखंड रहा हो या फिर 1989 से 1999 का कालखंड या 1998 की भाजपा की सरकार रही हो , उन गठबंधन की सरकारों को गिराकर सत्ा हथियाने की भूमिका में रही । जनता पाटटी , जनता दल की सरकारों को गिराकर अपनी सरकार भी बना ली । के्वल भाजपा सरकार को 1996 में गिराने में सफल तो हुए किनतु जनता उनहें समझ चुकी थी । इसलिए 1999 में भाजपा की ही सरकार बना दी । 1999 में भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेयी के सरकार का जब समय था तो उस समय राजनीति की दिशा बदलने के प्रयास तो शुरू हुए , पर कांग्रेस द्ारा ठ्वकास यानी इण्डया शाइनिंग का ठ्वरोध इस तरह से किया गया कि जनता भ्रमित हो गयी , परिणामस्वरूप अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के ठ्वकास सम्बनधी प्रयास भी जनता में कोई खास उम्मीद नहीं जगा
पाए । देश की सत्ा में अपने मुषसलम , ्वामपंथी और जातिगत आधार पर राजनीति में पैर ज़माने ्वाले नेताओं के सहारे कांग्रेस ने के्वल सत्ा का सुख नहीं भोगा , बषलक जनहितों के नाम पर देश की जनता के संसाधनों की निर्लज्जतापूर्ण ढंग से जमकर लूटने में कसर नहीं छोड़ी । सत्ा प्राषपत का उपकरण नहीं है दलित देश में रहने ्वाले दलित समाज के मतदाता कया सिर्फ सत्ा प्रापत करने के उपकरण के रूप में हैं ? इस प्रश्न का ज्वाब नहीं में दिया जा सकता है । किसी समय देश के समग्र ठ्वकास में अपनी अहम् भूमिका निभाने ्वाले दलित समाज पर यदि ्वास्तव में धयान दिया जाए तो यह कहना कहीं से भी गलत नहीं लगता कि यह ्वह समाज है जिसने लगभग आठ सौ सालों तक ठ्वदेशी मुषसलम आक्रांताओं को झेला , पर समझौता नहीं किया । इसके बाद अंग्रेजी शासकों ने दलितों का इसतेमाल अपने हितों के लिया किया । जब देश स्वतंत् हुआ तो दलितों का भागय लिखने का काम कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने अपने हाथों में ले लिया । कहने के लिए आरक्ण को एक ऐसे हथियार के रूप में देखा गया था , जिससे दलित अपने भागय और सामाजिक षसथठत का निर्णय
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