Aug 2024_DA | Page 23

दलित कौन ?
्वैसे दलित का शाषबदक अर्थ है ' दलन किया हुआ ' अर्थात ्वह कोई जो शोषित है , पीड़ित है , जिसे कुचला गया है , उसे दलित कहा जाता है । यानी मधयकाल में बारह्वीं सदी के बाद ठ्वदेशी मुषसलम आक्रांता शासकों द्ारा बड़ी संखया में
हिनदुओं को अतयाचार , वयठभचार , उतपीड़न , दमन और दालान के उपरांत दलित बनाया गया । डलॉ अम्बेडकर का ठ्वचार था कि अगर भारत का ्वास्तविक ठ्वकास करना है , तो उनहें यानी दलितों को मुखय धारा से जोड़कर उनको सशकत बनाना होगा । ्वह दलित-आंदोलन के लक्य के रूप में दलित समाज के सामाजिक सरषकतकरण , आर्थिक सरषकतकरण ए्वं स्वातिठधक महत्वपूर्ण शैक्ठणक सरषकतकरण को देखते थे । दलितों के सामाजिक सरषकतकरण का अर्थ है दलितों को जागरूक करना , उनहें शिक्ा को अपनाने के लिए प्रेरित करना , उनहें स्वचछता का महत्व समझाना , उनमें एकता को सथाठपत करना इतयाठद । इसी प्रकार आर्य के सरषकतकरण का तातपयति है कि दलित ्वगति अस्वचछ पेशे को छोड़कर अनयानय पेशों ए्वं व्यवसाय में लगे । शिक्ा प्रापत करके नौकरी-धंधों के साथ से्वा क्ेत् में यदि दलित समाज लगेगा , तभी आर्थिक सरषकतकरण हो सकेगा । सामाजिक और आर्थिक सरषकतकरण की नीं्व शैक्ठणक सरषकतकरण है । इसलिए शैक्ठणक सरषकतकरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । इनमें से उकत लक्यों को प्रापत करने में दलित आंदोलन ने आंशिक सफलता ही पाई और ऐसा लगता है कि डलॉ अम्बेडकर के बाद दलित आंदोलन लगातार दिशाहीन होकर शासन और सत्ा प्राषपत के लक्य के आसपास धूमते हुए अपने मूल लक्य को भूलता चला गया । ्वततिमान समय में दलित आंदोलन के्वल हिनदू धर्म की बुराइयों को गिनाने , आधुनिकता को अपनाने , हिनदू धर्म के आसथा केंद्र दे्वी-दे्वताओं पर चोट करने के साथ ब्ाह्मणों की आलोचना मात् तक ही सीमित रह गया है । ्वततिमान दलित आंदोलन में दलित ्वगति को ्वैदिक या प्राचीनकालीन शूद्र के रूप में सथाठपत करके के्वल शूद्रों के उदाहरणों पर टिका हुआ है । शायद दलित चिंतकों या आंदोलनकारियों ने डलॉ बी आर अम्बेडकर द्ारा लिखित पुसतक " शूद्र कौन ..?" को ठीक से पढ़ा नहीं गया है । जिसके प्राककथन के प्रथम पृषि के तीसरे पैराग्राफ में सपषट लिखा गया है कि भारत के ्वततिमान दलित , प्राचीन या ्वैदिक
कालीन शूद्र नहीं हैं । दलितों का ्वैदिक कालीन शूद्रों से कोई लेना-देना नहीं है । ऐसे में प्रश्न यह भी है कि कया हिनदू धर्म का ठ्वरोध करने से दलित आंदोलन से जुड़े लक्य प्रापत हो जाएंगे ? ्वास्तव में भारत में अब तक दलित समाज का कोई भी ऐसा आंदोलन सामने नहीं आया है , जो ्वास्तव में दलित समाज का सर्वांगीण ठ्वकास करने में सक्म साबित हुआ हो । इसके ठ्वपरीत अंग्रेजों के ठ्वरोध के लिए हुए स्वंत्ता संग्राम के दौरान जयोठतबा फुले ने सामाजिक हाशिए के लोगों के और सम्पूर्ण राषट के निर्माण के लिए आंदोलन चलाया । जिसे बाद में बाबा साहेब आंबेडकर डलॉ बी आर अम्बेडकर , ई . ्वी . रामास्वामी पेरियार , संतगाडगे , ललई सिंह याद्व , जगदे्व कुर्वाहा आदि ने अपने-अपने सतर पर चलाया ।
्वततिमान में भारत एक परमाणु संपन् महारषकत के रूप में ठ्वश्व मंच पर सथाठपत है । लेकिन अभी भी भारत की छठ्व को क्ठत पहुंचाने के लिए योजनाबद्ध रूप से मिथया और भ्रमातमक ठ्वषयों तथा अनुसूचित जातियों ए्वं जनजातियों की समसयाओं के नाम पर अधिक दुषप्रचार किया जा रहा है । दलित समाज के सनदभति में बड़ी प्रमुखता से यह प्रचार किया जा रहा है कि उनकी दीन और दयनीय दशा के लिए तथाकथित हिनदू समाज की कुछ जातियां ( ब्ाह्मण और क्ठत्य ) ही मुखय रूप से जिम्मेदार हैं । इतना ही नहीं , प्रायः तथाकथित ्वामपंथी और हिनदू ठ्वरोधी ठ्वद्ान यह ठ्वचार प्रकट करते हैं कि दलित जातियां हजारों वर्षों से हिनदू समाज में हैं और इसके पीछे ्वणति व्यवसथा का हाथ हैI जबकि ्वास्तविकता में भारतीय समाज में मुसलमान ्वगति और दलित जातियों का उदय एक साथ हुआ । अरब के ठ्वदेशी मुषसलम आक्रांता शासकों के छह सौ वर्षों के शासन काल से लेकर अंग्रेजों के 190 वर्षों के शासनकाल तक , दमन ए्वं दालान के उपरांत दलित बनाए गए लोगों की षसथठत एक श्ठमक , कामगार या नौकर से जयादा नहीं थी और स्वतंत्ता के उपरांत भी दलित समाज को देश के अंदर सिर्फ सत्ा हासिल करने के माधयम
vxLr 2024 23