April 2025_DA | Page 9

विषमता नैसर्गिक नहीं है, इसलिए इस पर विचार आवशरक है ।
बाबा साहब के नैतिक साहस ने अपने समाज की विषमतामूलक वरवसथा का मात्र विरमोध ही नहीं किया, उनहोंने इसके कारण, समाज और राष्ट्रीय एकता पर इसके दुष्प्रभाव और सतर, अहिंसा तथा मानवता के विरुधि इसके सवरूप कमो भी उजागर किया । आधुनिक भारत के निर्माणकर्ताओं में डा. आंबेडकर की समाज पुनर्रचना की दृषष्टि कमो मात्र वर्ण आधारित जाति वरवसथा के विरमोध एवं अछूतोद्धार तक ही सीमित करके देखा जाता है, जमो उनके साथ अनरार है । जाति वरवसथा का विरमोध एवं जाति
आधारित वैमनसर, छूआछूत का प्रतिकार मधरकालीन संतों से लेकर आधुनिक विचारकों तक द्ारा किया गया, परंतु अधिकतर संतों, राष्ट्रनायकों ने वेद एवं उपनिषद् की द‍ ृषष्टि से सामाजिक पुनर्रचना के कार्य में सहरमोग दिया, जबकि बाबा साहब ने महातमा बुधि के संघवाद एवं धमम के पथ से सवरं कमो वनदनेवशत किया I
गलौतम बुधि का कथन‘ आतमदीपमोभव’ कमो बमोवधसतव डा. आंबेडकर ने अपने जीवन में न सिर्फ उतारा, बषलक इससे पूरे समाज के लिए नैतिकता, नरार एवं उदारता का पथ आलमोवकत किया । बाबा साहब का मानना है कि जब हम किसी समुदाय या समाज में रहते हैं, तमो जीवन
के मापदंड एवं आदशगों में समानता हमोनी चाहिए । यदि यह समानता नहीं हमो, तमो नैतिकता में पृथकता की भावना हमोती है और समूह जीवन खतरे में पड़ जाता है । यही चिंतन है, जिसके आधार पर उनका निष्कर्ष था कि हिंदू धर्म ने दलित वर्ग कमो यदि शसत्र धारण करने की सवतंत्रता दी हमोती, तमो यह देश कभी परतंत्र न हुआ हमोता ।
बात शसत्र की ही नहीं, शासत्रों की भी है, जिनके ज्ान से वंचित कर हमने एक बड़े हिससे कमो अपनी भलौवतक एवं आधराषतमक संपदाओं से वंचित कर दिया और आज यह सामाजिक तनाव का एक प्रमुख कारण बन गया है ।
डा. आंबेडकर जाति वरवसथा का जड़ से उनमूलन चाहते थे, ्रोंकि उनकी तीक्ण बुवधि देख पा रही थी कि हमने कर्म वसधिांत कमो, जमो वरष्त के मूलरांकन एवं प्रगति का मार्गदर्शक है, भागरवाद, अकर्मणरता और शमोषणकारी समाज का पमोषक बना दिया है । उनकी सामाजिक नरार की दृषष्टि यह मांग करती है कि मनुष्य के रूप में जीवन जीने का गरिमापूर्ण अधिकार समाज के हर वर्ग कमो समान रूप से मिलना चाहिए और यह सिर्फ राजनीतिक सवतंत्रता एवं लमोकतंत्र से प्रापत नहीं हमो सकता । इसके लिए आर्थिक एवं सामाजिक लमोकतंत्र भी चाहिए । एक वरष्त-एक वमोटि की राजनीतिक बराबरी हमोने पर भी सामाजिक एवं आर्थिक विषमता लमोकतंत्र की प्रक्रिया कमो दूषित करती है, इसलिए आर्थिक समानता एवं सामाजिक भेदभाव विहीन जनतांत्रिक मूलरों के प्रति वे प्रतिबधिता का आग्ह करते हैं ।
डा. आंबेडकर की लमोकतांत्रिक मूलरों में अटिूटि आसथा थी । वह कहते थे कि जिस शासन प्रणाली से र्तपात किए बिना लमोगों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जाता है, वह लमोकतंत्र है । वह मनुष्य के दुखों की समाषपत सिर्फ भलौवतक व आर्थिक शक्तरों के आधिपतर से नहीं सवीकारते थे । डा. आंबेडकर ज्ान आधारित समाज का निर्माण चाहते थे, इसलिए उनका आग्ह था- ' वशवषित बनमो, संगठित हमो और संघर्ष करमो '। �
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