April 2025_DA | Page 8

जनमतदन पर विशेष

विचार । ्रा कमोई कानून या संविधान दमो या अधिक लमोगों कमो भाईचारे के साथ रहना सिखा सकता है? ्रा कमोई कानून मजबूर कर सकता है कि हम दूसरे नागरिकों के सुख और दुख में साझीदार बनें और साझा सपने देखें? ्रा इस देश में दलित उतपीड़न पर पूरा देश दुखी हमोता है? ्रा आदिवासियों की भूमि का जबरन अवधग्हण राष्ट्रीय चिंता का कारण हैं? दुख के षिणों में अगर नागरिकों में साझापन नहीं है, तमो भूमि के एक टिुकड़े पर बसे हमोने और एक झंडे कमो जिंदाबाद कहने के बावजूद हम लमोगों का एक राष्ट्र बनना अभी बाकी है । राष्ट्र बनने के लिए यह भी आवशरक है कि हम अतीत की कड़वाहटि कमो भूलना सीखें ।
अमूमन किसी भी बड़े राष्ट्र के निर्माण के क्रम में कई अप्रिय घटिनाएं हमोती हैं, जिनमें कई की श्ल हिंसक हमोती है और वे समृवतरां लमोगों में साझापन पैदा करने में बाधक हमोती हैं । इसलिए आवशरक है कि विशेष रूप से विजेता समूह, उन घटिनाओं कमो भूलने की कमोवशश करे । राष्ट्र जब लमोगों की सामूहिक चेतना में है, तभी राष्ट्र है । बाबा साहब चाहते थे कि भारत के लमोग, तमाम अनर पहचानों से ऊपर, खुद कमो सिर्फ भारतीय मानें, राष्ट्रीय एकता ऐसे सथावपत हमोगी । वर्तमान विवादों के आलमोक में, बाबा साहब के राष्ट्र संबंधी विचारों कमो दमोबारा पढ़े जाने और आतमसात किए जाने की आवशरकता है I
बाबा साहब ने कहा था कि अनूठे हैं भारत के राष्ट्रवादी और देशभ्त, भारत एक अनूठा देश है । इसके राष्ट्रवादी एवं देशभ्त भी अनूठे हैं । भारत में एक देशभ्त और राष्ट्रभ्त वह वरष्त है जमो अपने समान अनर लमोगों के साथ मनुष्य से कमतर वरवहार हमोते हुए अपनी खुली आंखों से देखता है, लेकिन उसकी मानवता विरमोध नहीं करती । उसे मालूम है कि उन लमोगों के अधिकार अकारण ही छीने जा रहे हैं, लेकिन उसमें मदद करने की सभर संवेदना नहीं जगती । उसे पता है कि लमोगों के एक समूह कमो सार्वजनिक जीवन से बाहर कर दिया गया है, लेकिन उसके भीतर नरार और समानता का बमोध नहीं हमोता । मनुष्य और समाज कमो चमोवटिल
करनेवाले सैकड़ों निंदनीय रिवाजों के प्रचलन की उसे जानकारी है, लेकिन वह उसके भीतर घृणा का भाव पैदा नहीं करते हैं । देशभ्त सिर्फ अपने और अपने वर्ग के लिए सतिा का आकांषिी हमोता है । मुझे प्रसन्नता है कि मैं देशभ्तों के उस वर्ग में शामिल नहीं हूं । मैं उस वर्ग में हूं, जमो लमोकतंत्र के पषि में खड़ा हमोता है और जमो हर तरह के एकाधिकार कमो धवसत करने का आकांषिी है. हमारा लक्र जीवन के हर षिेत्र ' राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक ' में ' एक वरष्त-एक मूलर ' के वसधिांत कमो वरवहार में उतारना है ।
19वीं सदी और 20वीं सदी के पहले दमो
दशकों तक हुए सामाजिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि में बाबा साहब डा. आंबेडकर का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश भारतीय समाज में सामाजिक क्रांति के मार्ग कमो निर्णायक मोड़ देनेवाला महतवपूर्ण ऊर्जा स्रोत रहा है । डा. आंबेडकर प्रखर चिंतक, कानूनविद और सामाजिक नरार की लड़ाई के योद्धा मात्र नहीं रहे, अपितु उनकी वैचारिक दृषष्टि में अनरार का प्रतिकार करने के साहस के साथ-साथ नैतिक पथ पर अविचल चलने की प्रतिबधिता भी दिखाई देती है, जमो मूलरों की पहचान ढूंढ़ते समाज कमो दिशा दिखाती है । भारतीय समाज में विविधता भी है और विषमता भी । विविधता सवाभाविक हमोती है, परंतु
8 vizSy 2025