मिलकर देखा जाए तमो बाबा साहब के कारगों और रमोगदानों की सूची बेहद लंबी है I
लेकिन, इन सबकमो जोड़ कर बाबा साहब की जमो समग् तसवीर बनती है, वह निससंदेह एक राष्ट्र निर्माता की है । बाबा साहब का भारतीय राष्ट्र कैसा है? ्रा वह राष्ट्र एक न्शा है, जिसके अंदर ढेर सारे लमोग हैं? ्रा राष्ट्र किसी झंडे का नाम है, जिसे कंधे पर लेकर चलने से कमोई राष्ट्रवादी बन जाता है? ्रा भूगमोल ने पहाड़ और नदियों ने अपनी प्राकृतिक सीमाओं से घेर कर जमीन के एक टिुकड़े कमो राष्ट्र का
रूप दे दिया है? या फिर, ्रा हम इसलिए एक राष्ट्र हैं कि हमारे सवाथ्य और हित साझा हैं? बाबा साहब का राष्ट्र इन सबसे अलग है । धर्म, भाषा, नसल, भूगमोल या साझा सवाथ्य कमो या फिर इन सबके समुच्र कमो, बाबा साहब राष्ट्र नहीं मानते । बाबा साहब का राष्ट्र एक आधराषतमक विचार है । वह एक चेतना है । हम एक राष्ट्र हैं, ्रोंकि हम सब मानते हैं कि हम एक राष्ट्र हैं । इस अर्थ में यह किसी सवाथ्य या संकीर्ण विचारों से बेहद ऊपर का एक पवित्र विचार है । इतिहास के संरमोगों ने हमें एक साथ जोड़ा है, हमारा
अतीत साझा है, हमने वर्तमान में साझा राष्ट्र जीवन जीना तय किया है और भविष्य के हमारे सपने साझा हैं, और यह सब है इसलिए हम एक राष्ट्र हैं । राष्ट्र की यह परिकलपना बाबा साहब ने यूरमोपीय विद्ान अननेस्ट रेनलॉन से ली है, जिनका 1818 का प्रवसधि व्तवर‘ ह्वाट इज नेशन’ आज भी सामयिक दसतावेज है I
संविधान सभा में पूछे गए तमाम प्रश्नों का उतिर देने के लिए जब बाबा साहब 25 नवंबर, 1949 कमो खड़े हमोते हैं, तमो वह इस बात कमो रेखांकित करते हैं कि भारत सवतनत्र हमो चुका है, लेकिन उसका एक राष्ट्र बनना अभी बाकी है । बाबा साहब कहते हैं कि भारत एक बनता हुआ राष्ट्र है । अगर भारत कमो एक राष्ट्र बनना है, तमो सबसे पहले इस वासतविकता से रूबरू हमोना आवशरक है कि हम सब मानें कि जमीन के एक टिुकड़े पर कुछ या अनेक लमोगों के साथ रहने भर से राष्ट्र नहीं बन जाता । राष्ट्र निर्माण में वरष्तरों का मैं से हम बन जाना बहुत महतवपूर्ण हमोता है । वह चेतावनी भी देते हैं कि हजारों जातियों में बंटिे भारतीय समाज का एक राष्ट्र बन पाना आसान नहीं हमोगा । सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में घनघमोर असमानता और कड़वाहटि के रहते यह काम मुमकिन नहीं है । अपने बहुचर्चित, लेकिन कभी न दिए गए भाषण‘ एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ में बाबासाहब जाति कमो राष्ट्र विरमोधी बताते हैं और इसके विनाश के महतव कमो रेखांकित करते हैं । बाबासाहब की संकलपना का राष्ट्र एक आधुनिक विचार है । वह सवतंत्रता, समानता और बंधुतव की बात करते हैं, लेकिन वह इसे पषशचमी विचार नहीं मानते । वह इन विचारों कमो फांवससी क्रांति से न लेकर, बुधि की वशषिा या बौद्ध परंपरा से लेते हैं । संसदीय प्रणालियों कमो भी वह बौद्ध वभषिु संघों की परंपरा से लेते हैं ।
सवतंत्रता और समानता जैसे विचारों की सथापना संविधान में नियम-कानूनों के माधरम से की गई है । इन दमो विचारों कमो मूल अधिकारों के अधरार में शामिल करके इनके महतव कमो रेखांकित भी किया गया है । लेकिन इन दमोनों से महतवपूर्ण या बराबर महतवपूर्ण है बंधुतव का
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