अपनी पदषसथवत से अवनति हमोकर आधुनिक भारत में चमार के रूप में कैसे सथावपत हमो गई? इस गूढ़ प्रश्न का उतिर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद डा. विजय समोनकर शासत्री की पुसतक " हिंदू चर्मकार जाति " का अधररन करके समझा जा सकता है ।
पुसतक पर विशेष वटिपणणी करते हुए बद्रिकाश्रम जरमोवतपथीठ के जगदगुरु शंकराचार्य सवामी वासुदेवानंद सरसवती कहते हैं कि भारतीय सांसकृवतक वागमर में वर्ण वरवसथा का परिप्रेक्र आर्थिकी है और आश्रम वरवसथा का परिप्रेक्र धर्म और आधराषतमकी है । जाति वरवसथा तमो वर्ण वरवसथा का विकृत रूप है । असपृशरता के समबनध में डा. समोनकर शासत्री की यह पुसतक अतरंत उपरमोगी है । वर्ण एवं जाति वरवसथा में औचितरहीन असपृशरता का कमोई सथान नहीं है । इस विषयों की वासतविकता ज्ात कर इसे समाज में लाने का प्रयत्न किया जाना ही चाहिए ।
आठ अधरार में विभ्त पुसतक हिंदू चर्मकार जाति का प्रथम अधरार हिंदू धर्म तथा जाति, वंश एवं गमोत्र पर केंद्रित है । इस अधरार में हिंदू धर्म का सनातन सवरूप, वैदिक काल एवं वर्तमान हिंदू जीवन पधिवत, हिनदुसथान में सभरता, संसकृवत, समृवधि एवं गमो-सेवा, हिंदू समाज में वर्ण, वंश, गमोत्र एवं जातियां, चंवर वंश का राजवंशीय इतिहास, इसलामिक काल में बानी हिंदू चमार जाति, चमार जाति में चंवर वंश और धर्मपरायण हिंदू चमार जाति पर विसतार से चर्चा की गई है । डा. समोनकर शासत्री का कहना है कि हिंदू समाज में वर्ण, वंश, गमोत्र और जातियों आदि के सापेषि मधरकाल और अंग्ेजों के काल के समय जमो विकृतियां उतपन्न की गई, उनकमो उखाड़ने और सुखाने का कार्य आरमभ हमो गया है और इसके लिए सतर तथ्यों पर आधारित साहितर भी सर्जित किया जा रहा है, ताकि प्राचीन वर्ण एवं जातिविहीन हिंदू समाज कमो पुनसथा्यवपत किया जा सके ।
पुसतक का दूसरे अधरार में विदेशी इसलावमक शासकों के उतपीड़न से बनी असपृशर, दलित और भातरीय मुसलमान जातियों का खुलासा किया गया है । यह अधरार विदेशी इसलामिक
आक्रमण, विदेशी मुसलिम आक्रांताओं कमो मुंहतमोड़ उतिर, लड़ाककू जातियों का उतपीड़न एवं युधिबंदियों से अमानवीय वरवहार, विदेशी इसलावमक उतपीड़न एवं अतराचार सवीकार्य किनतु इसलाम असवीकार्य, विदेशी इसलामिक शासकों के अतराचार से दर-ब-दर एवं जंगलों में पलायन, दर-ब-दर जीवन एवं दलित पहचान के जिममेदार इसलामिक शासक, इसलामिक उतपीड़न से बनी बहरतीय मुसलमान जाति एवं असपृशरता इसलामिक काल का सुवनरमोवजत षड़यंत्र पर केंद्रित है । डा, शासत्री के अनुसार इसलामिक उपतपीडन से बनी असपृशर और दलित जातियों में अधिकांशतः वह ही लमोग हैं, जिनकमो वर्तमान में हिंदू चमार जातियों की अलग-अलग वंश एवं गमोत्रवाली जातियों के रूप में जाना जाता है तथा जिनकमो हिनदुसथान में मधरकाल के पूर्व तक सममानजनक पद- पररषसथवत प्रापत थी ।
पुसतक के तीसरे अधरार में धर्म के मूलर पर चर्म-कर्म कमो बताया गया है । इस अधरार में मुसलिम संसकृवत एवं सभरता, इसलामिक काल में चमड़े की मांग अधिक और चर्मकमथी कम, युधिबंदियों से कराए गए निम्नकमोवटि के असवचछ कार्य, चर्म कार्य में सवावभमानी लमोगों एवं जातियों कमो बलपूर्वक लगाया गया, धर्म परिवर्तन या चर्म कार्य, धर्म की रषिा अंतिम इचछा, चर्म कार्य में भी गमोचर्म निकलना तथा मृत पशुओं कमो ढ़मोना और चमार बने चर्म कार्य से इतरावद शीर्षक के माधरम से चर्म कर्म चमार
जाति के उपन्न हमोने समबनधी कारगों कमो बताया गया है । डा. समोनकर शासत्री के अनुसार इसलाम सवीकार ने करने वाले हिनदुओं कमो चर्म कार्य में लगाया गया, जमो बाद में चमार जाति में बदल दी गईं । यही कारण है कि चमार जाति की संखरा आज तक मुसलमानों में नहीं के बराबर हैं ।
पुसतक का चलौथा अधरार चर्म वरवसाय आधारित भेदभाव( अछूत, अपवित्र, अपमानित एवं तिरसकृत जीवन) पर है । इस अधरार में हिंदू धर्म एवं पवित्रता, सामाजिक पतन का कारण: मृत पशुओं कमो ढ़मोना एवं गमोचर्म निकलना, गमो चर्म कार्य से हिनदुओं में घृणा, मुसलिम आक्रांताओं द्ारा बड़ी संखरा में गमो वध, सामाजिक घृणा एवं तिरसकार से गमो चर्म कमथी पड़े अलग-थलग, छुआछूत एवं अपवित्रता अलगाव का मुखर कारण, चर्म कार्य करने में लगी जातियों की अलग पहचान और विदेशी मुसलिम आक्रांताओं द्ारा उतपीवड़तों कमो दलित नाम देकर अंग्ेजों द्ारा दमोहरी मार पर विसतार से जानकारी दी गई है । इस अधरार में डा. समोनकर ने लिखा है कि चर्म कर्म में भी लगकर अपने हिंदू धर्म की रषिा करने में सफल हमोने वाले इन सवावभमानी, धर्माभिमानी एवं राष्ट्राभिमानी हिंदू चमार जाति का समपूण्य हिंदू समाज कमो नमन करना चाहिए ।
पुसतक का पांचवें अधरार में हिंदू चमार जाति के वंश, गमोत्र एवं राजवंशीय इतिहास कमो बताया गया है । इस अधरार में चंवर वंश एवं चमार जाति, चमार जाति के पूर्वज एवं प्राचीन
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