समीक्षा
डा. विजय समोनकर शा्त्ी वंश परंपरा, चमार जाति के गमोत्र, चमार जाति के प्राचीन वंशों का राजवंशीय इतिहास, चमार जाति के वंशजों की प्राचीन पहचान, चमार जाति का मधरकालीन इतिहास, हिंदू संसकृवत एवं परंपरा के पूर्ण वाहक और वर्तमान चमार जाति एवं हिंदू समाज इतरावद के समबनध में विसतार से जानकारी दी गई है । डा. शासत्री का कहना है कि हिंदू संसकृवत एवं परंपरा का पूर्ण वाहक हिंदू चमार जाति निरंतर हिंदू रही है । वह कभी भी हिंदू विरमोधी प्रभावों से प्रभावित नहीं हुई । यह उसकी अद्भुत विशेषता किसी भी भारतीय हिंदू के लिए प्रेरणाश्रमोत रही है ।
पुसतक के छठें अधरार में महर्षि रैदास एवं हिंदू धर्म रषिा के अंतर्गत धर्म, संसकृवत एवं नैतिकता में अग्णी चमार जाति, इसलाम एवं ईसाईयत पूर्णरूपेण असवीकार्य, संत शिरमोमणि गुरु रैदास, गुरु रैदास के पदानुयायी समपूण्य हिंदू समाज, चमार जाति एवं रैदास मत, हिंदू धर्म के पुरमोधा संत रैदास, महाराणा सांगा और संत रैदास और भ्त शिरमोमणि मीरा के पुत्र रैदास के विषय में बताया गया है । इस अधरार में डा. समोनकर शासत्री ने लिखा है कि रैदास मत के
प्रवर्तक संत रैदास जी हिंदू धर्म के महान पुरमोधा के रूप में हिंदू चमार जाति के गलौरव कमो बढ़ाने के लिए एक उदहारण माने जाते हैं । संत रैदास कमो प्रापत यह सममान पूरे वर्तमान तथाकथित दमन एवं दलन करके मधरकाल में बनी दलित जातियों के साथ ही हिंदू चमार जाति के लिए गर्व का विषय है ।
पुसतक का सातवां अधरार हिंदू चमार जाति के राष्ट्रीय रमोगदान कमो बताता है । इस अधरार में हिंदू सामाजिक वरवसथा में चमार जाति, हिंदू धर्म की अभिन्न चमार जाति, हिंदू दलित जातियों से सहानुभूति के घड़ियाली आंसू, इसलाम असवीकार्य, सवतंत्रता संग्ाम में महतवपूर्ण भूमिका, सवतंत्र हिनदुसथान के आर्थिक ढांचे की मेरुदंड चमार जाति, हिनदुसथान की सांसकृवतक धरमोहर की संवाहक चमार जाति एवं हिंदू चमार जाति में अनेकानेक धर्म पुरमोधा की चर्चा की गई है । इस अधरार में डा. समोनकर शासत्री ने लिखा है कि हिंदू चमार जाति आरमभ से ही आर्थिक षिेत्र में अपनी सराहनीय भूमिका निर्वाह करती आ रही है । आज भी उसके बिना आर्थिक षिेत्र असहाय
प्रतीत हमोता है । इसी आधार पर उसकमो हिनदुसथान के आर्थिक ढांचे की मेरुदंड सवीकार किया है । इसके साथ ही हिंदू संसकृवत कमो सुरवषित रखने और उसका संवहन करने में भी यह जाति सदैव अग्णी रही है ।
पुसतक का आठवां एवं अंतिम अधरार हिंदू चमार जाति की वर्तमान षसथवत एवं सशक्तकरण कमो बताया है । इस अधरार में हिंदू समाज में अकारण कमजमोर पररषसथवत, कमजमोर भूमिका के सामाजिक सामाजिक पषि, कमजमोर सामाजिक पररषसथवत के आर्थिक आयाम, कमजमोर सामाजिक शक्त के राजनीतिक कारण, हिंदू चमार जाति का वर्तमान आर्थिक एवं राजनीतिक सवरूप, हिंदू चमार जाति एवं वशषिा, विकास का एकमात्र सूत्र सामाजिक सशक्तकरण एवं सशक्तकरण के वर्तमान अभिकरण एवं उनका वरावहारिक रूप इतरावद विषय पर केंद्रित है । डा. समोनकर शासत्री के अनुसार हिंदू चमार जाति की षसथत हिंदू समाज में अब किसी भी प्रकार से कमजमोर नहीं है । मधरकालीन उतपीड़न एवं शमोषण से उनकमो दुर्दिन अवशर देखने पड़े थे, किनतु सवतंत्रता प्राषपत के बाद से उनके प्रतरेक पषि के लिए विकासार्थ प्रारमोवजत संसाधनों का पर्यापत लाभ तमो नहीं, किनतु कुछ लाभ अवशर उनकमो मिल रहा है ।
350 पृष्ठों में समाहित पुसतक का आमुख राष्ट्रीय सवरंसेवक संघ की राष्ट्रीय समिति के सदसर एवं पूर्व सह कार्यवाह सुरेश जमोशी( भैयरा जी जमोशी) ने लिखा है Iभैयरा जी जमोशी ने वटिपणणी की है कि तथाकथित चर्म कर्म में लगे लमोगों के पूर्वज एवं उनके प्राचीन वंशों की खमोज, उनका गमोत्र तथा उन पर आधारित उपजावतरमो का विवरण इस पुसतक की विशेषता है । डा. विजय समोनकर शासत्री का यह प्रयास एवं चिंतन पाठक वर्ग कमो केवल उपयु्त जानकारी ही नहीं, बषलक एक नए चिंतन हेतु दिशा प्रदान करता है । अंत में कहना गलत नहीं हमोगा कि धर्म के मूलर पर बलपूर्वक चर्म कर्म में लगाई गई हिंदू चर्मकार जाति के सववण्यम गलौरवशाली राजवंशीय इतिहास की यह एक शमोधपरक प्रसतुवत है ।
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46 vizSy 2025