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समीक्षा

हिंदू चर्मकार जाति

पु्तक: तहंदू चर्मकार जाति
लेखक: डा. विजय
समोनकर शा्त्ी मूलय: 700 रुपए प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिलली

संजय दीक्षित fga

दी में एक शबद है- ' चर्मकार '। सामानर रूप से इसका अर्थ हमोता है-चमड़े का कार्य करने वाला, लेकिन चमड़े के कार्य करने वाले लमोगों कमो भारत में एक ऐसी जाति की सीमा में बांध दिया गया, जिसे दलित माना गया । इतना ही नहीं, चर्म-कर्म करने वाले लमोगों कमो चमार की संज्ा तक दे दी गई । ऐसे में यह प्रश्न उठना सवाभाविक है कि भारत में चर्म-कर्म करने वाले वरष्त दलित ्रों और कैसे हमो गया? भारत के प्राचीन इतिहास में न तमो चमार नाम का कमोई वर्ग था और न ही चर्मकार कमो दलित माना गया था, तमो फिर
आधुनिक भारत में चमार की संज्ा देकर लाखों लमोगों कमो दलित या अनुसूचित जाति में ्रों रखा गया? भारत के इतिहास का विसतृत अधररन करने पर चंवर वंश का स्पष्ट उललेख मिलता है, जमो राजवंश सूर्यवंशी षिवत्रर कुल से समबंवधत था । गुजरात षसथत चंवरावती नगरी इस वंश के प्रथम प्रतापी चंवरसेन की राजधानी थी । लेकिन सूर्यवंशी षिवत्रर कुल चंवर वंश
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