April 2025_DA | Page 43

का मत था कि दलितों के अतराचार तथा उतपीड़न सहन करने तथा वर्तमान पररषसथवतरों कमो सन्तोषपूर्ण मानकर सवीकार करने की प्रवृति का अनत करने के लिए उनमें वशषिा का प्रसार आवशरक है । वशषिा के माधरम से ही उनहें इस बात का आभास हमोगा कि विशव कितना प्रगतिशील है तथा वह कितने पिछड़े हुए है । उनका मानना था कि दलितों कमो अनरार, अपमान तथा दबाव कमो सहन करने के लिए मजबूर किया जाता है । वह इस बात से दुखी थे
कि दलित इस प्रकार की पररषसथवतरों कमो बिना कुछ कहे सवीकार कर लेते हैं । वह संखरा में अधिक हमोने के बावजूद उतपीड़न कमो सहन कर लेते हैं, जबकि यदि एक अकेली चींटिी पर भी पैर रख दिया जाए तमो वह प्रतिरमोध करते हुए काटि डालती है । इन पररषसथवतरों कमो समापत करने के लिए डा. आंबेडकर दलितों में वशषिा के प्रसार कमो बहुत महतवपूर्ण मानते थे । उनहें केवल औपचारिक वशषिा ही नहीं अपितु अनलौपचारिक वशषिा भी दी जानी चाहिए ।
डा. आंबेडकर का मानना था दलित वर्ग कमो अपने हितों की रषिा के लिए विधायी कारगों कमो अपने पषि में प्रभावित करने के लिएं राजनीतिक सतिा में पर्यापत प्रतिनिधितव मिलना चाहिए । अत: उनका सुझाव था कि केनद्रीर तथा प्रानतीर विधान मंडलों में दलितों की भागीदारी हेतु पर्यापत प्रतिनिधितव के लिए कानून बनाया जाना चाहिए । इसी प्रकार उनका मानना था कि निर्वाचन कानून बनाकर यह वरवसथा की जानी चाहिए कि प्रथम दस वर्ष तक दलित वर्ग के वयसक मताधिकारियों द्ारा पृथक निर्वाचन के माधरम से अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन किया जाना चाहिए तथा बाद में दलित वर्ग हेतु आरवषित सथानों पर समबषनधत निर्वाचन षिेत्र के सभी वयसक मताधिकारियों द्ारा निर्वाचन किया जाना चाहिए ।
डा. आंबेडकर का मत था कि दलित वर्ग के उतथान के लिए यह भी आवशरक है कि उनहें सरकारी सेवाओं में पर्यापत प्रतिनिधितव दिया जाना चाहिए । उनके अनुसार इसके लिए दलित वर्ग हेतु आरषिण की वरवसथा की जानी चाहिए । उनके अनुसार दलित वर्ग कमो सेवाओं में पर्यापत सथान दिलाए जाने के लिए सरकार कमो विशेष संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधान करने चाहिए । डा. आंबेडकर का मानना था कि दलित वर्ग कमो नीति निर्माण के कारगों में उचित अवसर के लिए मंत्रिमणडलों में भी पर्यापत प्रतिनिधितव मिलना चाहिए । उनकमो भय था कि बहुमत के शासन में दलित वर्ग के हितों तथा अधिकारों की उपेषिा हमोने की संभावना हमो सकती है । किनतु यदि दलित वर्ग कमो कार्यपालिका में जब पर्यापत प्रतिनिधितव मिलेगा तमो वह अपने अधिकारों तथा
हितों के प्रति हमोने वाली उपेषिा कमो समापत करने में सषिम हमोगा तथा अपने विकास के लिए विशेष नीतियों का निर्माण कर रचनातमक कार्यक्रमों कमो शासन के माधरम से सफलतापूर्वक क्रियाषनवत किया जा सकता है ।
डा. आंबेडकर भारतीय समाज में षसत्ररों की हीन दशा से काफी षिुबध थे । उनहोंने उस साहितर की कटिु आलमोचना की जिसमें षसत्ररों के प्रति भेद-भाव का दृषष्टिकमोण अपनाया गया । उनहोंने दलितों के उतथान एवं प्रगति के लिए भी नारी समाज का उतथान आवशरक माना । उनका मानना था कि षसत्ररों के सममानपूर्वक तथा सवतंत्र जीवन के लिए वशषिा बहुत महतवपूर्ण है । डा. आंबेडकर ने हमेशा सत्री-पुरूष समानता का वरापक समर्थन किया । यही कारण है कि उनहोंने सवतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री रहते हुए‘ हिंदू कमोड बिल’ संसद में प्रसतुत करते समय हिनदू षसत्ररों के लिए नरार सममत वरवसथा बनाने के लिए इस विधेयक में वरापक प्रावधान रखे । भारतीय संविधान के निर्माण के समय में भी उनहोंने सत्री-पुरूष समानता कमो संवैधानिक दर्जा प्रदान करवाने के गमभीर प्रयास किए ।
डा. आंबेडकर के सामाजिक चिनतन में असपृशरों, दलितों तथा शमोवषत वर्ग के उतथान के लिए काफी दर्शन झलकता है । वह उनके उतथान के माधरम से एक ऐसा आदर्श समाज सथावपत करना चाहते थे जिसमें समानता, सवतंत्रता तथा भ्रातृतव के ततव समाज के आधारभूत वसधिांत हों । डा. आंबेडकर एक महान सुधारक थे जिनहोंने ततकालीन भारतीय समाज में प्रचलित अनरारपूर्ण वरवसथा में परिवर्तन तथा सामाजिक नरार की सथापना के जबरदसत प्रयास किए । उनहोंने दलितों, पिछड़ों, असपृशरों के विरूधि सदियों से हमो रहे अनरार का न केवल सैधिांवतक रूप से विरमोध किया अपितु अपने कार्य कलापों, आन्दोलनों के माधरम से उनहोंने शमोवषत वर्ग में आतमबल तथा चेतना जागृत करने का सराहनीय प्रयास किया । इस प्रकार डा. आंबेडकर का जीवन समर्पित लमोगों के लिए सीखने तथा प्रेरणा का नया स्रोत बन गया । �
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