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वयस्ततव

दलित समाज को शिक्क्षर होने का सन्ेश दिया डा. आंबेडकर ने ck

बा साहब डा. भीम राव आंबेडकर का समपूण्य जीवन भारतीय समाज में सुधार के लिए समर्पित था । असपृशरों तथा दलितों के वह ईशवर का अवतार थे । उनहोंने सदियों से पद-दलित वर्ग कमो सममानपूर्वक जीने के लिए एक सुस्पष्ट मार्ग दिया । उनहें अपने विरूधि हमोने वाले अतराचारों, शमोषण, अनरार तथा अपमान से संघर्ष करने की शक्त दी । उनके अनुसार सामाजिक प्रताड़ना राजर द्ारा दिए जाने वाले दणड से भी कहीं अधिक दुःखदाई है । उनहोंने प्राचीन भारतीय ग्नथों का विशद अधररन कर यह बताने की चेष्टिा भी की कि भारतीय समाज में वर्ण- वरवसथा, जाति प्रथा तथा असपृशरता का प्रचलन समाज में कालानतर में आई विकृतियों के कारण उतपन्न हुई है, न कि यह यहां के समाज में प्रारमभ से ही ववद्मान थी ।
उनहोंने दलित वर्ग पर हमोने वाले अनरार का ही विरमोध नहीं किया, अपितु उनमें आतम-गलौरव, सवावलमबन, आतमविशवास, आतम सुधार तथा आतम विशलेषण करने की शक्त प्रदान की । दलित उधिार के लिए उनके द्ारा किए गए प्रयास किसी भी दृषष्टिकमोण से आधुनिक भारत के निर्माण में भुलाए नहीं जा सकते । नेहरू के शबदों में‘ डा. आंबेडकर, हिनदू समाज की दमनकारी प्रवृवतियों के विरूधि किए गए ववद्रमोह का प्रतीक थे ।’
भारतीय आरगों के सामाजिक संगठन का आधार चतुर्वर्ण वरवसथा रहा है । इस आधार पर समाज कमो अपने कार्य के आधार पर चार भागों में विभाजित कर रखा था । डा. आंबेडकर ने इस वरवसथा कमो अवैज्ावनक अतराचारपूर्ण, संकीर्ण, गरिमाहीन बताते हुए इसकी कटिु आलमोचना की । उनके अनुसार यह श्रम के
विभाजन पर आधारित न हमोकर श्रमिकों के विभाजन पर आधारित था । उनके अनुसार भारतीय समाज की चतुर्वर्ण वरवसथा यूनानी विचारक पलेटिमो की सामाजिक वरवसथा के बहुत निकटि है । पलेटिमो ने वरष्त की कुछ वववशष्टि रमोगरताओं के आधार पर समाज का विभाजन करते हुए उसे तीन भागों में विभाजित किया । डा. आंबेडकर ने इन वरवसथाओं की जमोरदार आलमोचना की तथा स्पष्ट किया कि षिमता के आधार पर वरष्तरों का सुस्पष्ट विभाजन ही अवैज्ावनक तथा असंगत है । डा. आंबेडकर का मत था कि उन्नत तथा कमजमोर वगगों में जितना उग् संघर्ष भारत में है, वैसा विशव के किसी अनर देश में नहीं है ।
डा. आंबेडकर ने भारत में जाति-वरवसथा की प्रमुख विशेषताओं और लषिणों कमो स्पष्ट करने का प्रयास किया जिनमें प्रमुख निम्न हैं-
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