11 माह एवं 18 दिन समय लगा और 24 जनवरी 1950 कमो संविधान सभा के 284 सदसरों ने संविधान पर हसताषिर किए, जिसमें 15 महिलाएं भी सषममवलत थी । भारत का संविधान विशव के किसी भी संप्रभु देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है । भारतीय संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्ेजी दमोनों में ही हसतवलवखत थी । भारत के संविधान कमो संसकृवत धर्म और भलौगमोवलक की दृषष्टि से सबसे अचछा लमोकतांत्रिक देश का संविधान माना जाता है और अब तक संविधान में 106( सितंबर 2023) संशमोधन हमो चुके हैं ।
भारतीय संविधान की सबसे महतवपूर्ण विशेषताओं में से एक, भारतीय लमोकतंत्र की आधारशिला है । यह अधिकार नरार, समानता और बंधुतव कमो बढ़ावा देने एवं राजर की मनमानी कार्रवाइयों के विरुधि वरष्त की सुरषिा के लिए महत्वपूर्ण हैं । मलौवलक अधिकार ऐसे अधिकारों का समूह है जमो किसी भी नागरिक के भलौवतक( सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक) और नैतिक विकास के लिए आवशरक हैं । साथ ही मलौवलक अधिकार किसी भी देश के संविधान द्ारा प्रतरेक नागरिक कमो दी गई आवशरक सवतंत्रता और अधिकारों के एक समूह कमो संदर्भित करते हैं । यह अधिकार वरष्तगत सवतंत्रता की आधारशिला कमो भी निर्मित करते हैं तथा नागरिकों की राजरों के मनमाने कारगों एवं नियमों से सुरषिा प्रदान करते हैं । साथ ही यह अधिकार बुनियादी मानवाधिकारों एवं सवतंत्रताओं कमो सुवनषशचत करते हैं । एक राष्ट्र के भीतर लमोकतंत्र, नरार और समानता कमो बनाए रखने के लिए यह अधिकार संविधान का अभिन्न अंग हैं । इनकमो मलौवलक अधिकार माना जाता है ्रोंकि यह वरष्तरों के सवाांगीण विकास, गरिमा और कलराण के लिए आवशरक हैं । इनके असंखर महतव के कारण ही उनहें भारत का मैनिा काटिा्य भी कहा गया है । भारतीय संविधान में छह मलौवलक अधिकारों का प्रावधान किया गया है, जिनमें समानता का अधिकार( अनुचछेद 14-18), सवतंत्रता का अधिकार( अनुचछेद 19-22), शमोषण के विरुधि अधिकार( अनुचछेद 23-24), धर्म की सवतंत्रता
का अधिकार( अनुचछेद 25-28), सांसकृवतक और शैवषिक अधिकार( अनुचछेद 29-30) और संवैधानिक उपचारों का अधिकार( अनुचछेद 32) शामिल है । मूल रूप से, संविधान में सात मलौवलक अधिकारों का प्रावधान था, जिसमें उपरोक्त छह अधिकार और संपवति का अधिकार शामिल । लेकिन 1978 के 44वें संशमोधन से संपवति के अधिकार कमो मलौवलक अधिकारों की सूची से हटिा दिया । इसे एक कानूनी अधिकार बना दिया गया ।
डा. आंबेडकर ने स्पष्ट किया है कि भारत एक संघ है, किसी भी राजर कमो संघ से अलग हमोने का अधिकार नहीं है । संविधान के प्रथम अनुचछेद के अनुसार भारत राजरों का संज्ा है । 26 जनवरी 1950 कमो जब भारत का संविधान लागू हुआ, तब एक तर्क प्रसतुत हुआ था कि ्रा भारत एक संघ है या महासंघ है? उस समय डा. आंबेडकर ने प्रारूप तैयार करने के चरण में भारत कमो मजबूत एकतावादी बनाने के लिए महासंघ कहा था । सहरमोगी संघवाद शबद जलद ही लमोकप्रिय हमो गया था जिसमें राजर और केंद्र की दमोहरी राजनीति के बारे में बात की गई थी । भारत के संविधान की प्रसतावना है कि भारत एक सर्वश्रेष्ठ समाजवादी धर्मनिरपेषि लमोकतांत्रिक गणराजर है । समाजवादी शबद संविधान के 42 में संशमोधन अधिनियम 1976 के माधरम से वर्ष 1976 के पशचात सषममवलत किया गया था ।
संवैधानिक दृषष्टिकमोण से भारत के प्रतरेक नागरिकों कमो मलौवलक अधिकार प्रापत है जमो कि भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता है । समानता का अधिकार अनुचछेद 14 से 18 तक भारत के संविधान में वर्णन मिलता है । अनुचछेद-14 के अंतर्गत विधि के समषि और विधियों का समान संरषिण से किसी कमो वंचित नहीं किया जा सकता है ।
भारतीय संविधान के मलौवलक अधिकारों की अवधारणा, जमो संविधान के मूल वसधिांतों में से एक है, कुछ कमियों और आलमोचनाओं के साथ ववद्मान है । कई मलौवलक अधिकारों में अपवाद, प्रतिबंध और रमोगरता जुड़ी हुई हैं, जिससे उनकी परिधि और प्रभावी कार्यानवरन सीमित हमो जाता
है । मलौवलक अधिकारों की सूची में सामाजिक सुरषिा, रमोजगार, विश्राम, अवकाश आदि मलौवलक सामाजिक और आर्थिक अधिकारों कमो शामिल नहीं करती है, जिससे इसकी वरापकता प्रभावित हमोती है । कुछ शबदों कमो स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है, जिससे अस्पष्टता उतपन्न हमोती है । उदाहरण के लिए,‘ सार्वजनिक वरवसथा’,‘ अलपसंखरक’,‘ उचित प्रतिबंध’ आदि । संसद इन अधिकारों कमो सीमित या समापत कर सकती है, जिससे इनकी सथावरतव पर प्रश्न उठता है ।
उदाहरण के लिए, 1978 में संपवति के मलौवलक अधिकार कमो समापत कर दिया गया था । इसी तरह राष्ट्रीय आपातकाल के समय मलौवलक अधिकारों कमो निलंबित किया जा सकता है, जमो लमोकतंत्र के मूल वसधिांतों के विपरीत है और लाखों लमोगों के अधिकारों के लिए खतरा बन सकता है । केवल अनुचछेद-20 और 21 कमो छोड़कर अनर सभी अधिकार निलंबित किये जा सकते हैं । इन अधिकारों की रषिा का बमोझ नरारपालिका पर हमोता है, लेकिन नरावरक प्रक्रिया काफी महंगी है, जिससे जन सामानर के लिए इन अधिकारों का उपरमोग करना मुषशकल हमो जाता है । निवारक निरमोध( अनुचछेद-22) का प्रावधान वरष्तगत सवतंत्रता का हनन करता है और राजर कमो अतरवधक शक्त प्रदान करता है । मलौवलक अधिकारों के अधरार में एक स्पष्ट और सुसंगत दर्शन का अभाव है । सर आइवर जेनिंगस के अनुसार यह अधिकार किसी सुसंगत दर्शन पर आधारित नहीं हैं, जिससे उनकी वराखरा में नरारपालिका कमो चुनलौवतरों का सामना करना पड़ता है ।
इन आलमोचनाओं और सीमाओं के बावजूद, मलौवलक अधिकार भारतीय लमोकतंत्र की आतमा है । राजरों के मनमाने कारगों के विरुधि सुरषिा प्रदान और नागरिकों के संरषिण और सश्तीकरण कमो सुवनषशचत मलौवलक अधिकारों की आलमोचनाएँ अस्पष्टता, सीमित दायरा, सामाजिक और आर्थिक अधिकारों की कमी, सथावरतव का अभाव, आपातकाल के दलौरान निलंबन, महंगा उपाय, निवारक निरमोध और सुसंगत दर्शन के अभाव कमो इंगित करती हैं ।
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