समरसता
गिधग्ाम में स्थत गिधे्वर शिव मंदिर
र्रीि सदियों बाद मंदिर में दलितों को मिला प्रवेश
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षशचम बंगाल के एक शिव मंदिर में करीब साढ़े करीब सलौ साल बाद पहली बार दलितों कमो प्रवेश का अधिकार मिला है । पूर्व बर्दवान जिले के गिधाग्ाम षसथत गिधेशवर शिव मंदिर में गांव में रहने वाले करीब 130 दलित परिवारों कमो प्रवेश की अनुमति नहीं थी । वहां यह परंपरा जमींदारों के जमाने से ही चली आ रही थी । बीच में कई बार दलितों ने मंदिर में प्रवेश की मांग उठाई, लेकिन उनहें इसकी अनुमति नहीं दी गई थी ।
मीडिया में आए समाचारों के अनुसार सदियों बाद गत माह शिवरात्रि के बाद दलितों ने एकजुटि हमोकर प्रशासन से गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति फीस मांगी । उसके बाद सथानीय प्रशासन की पहल पर बैठकों और बातचीत के लंबे सिलसिले
के बाद आखिर इस सपताह सदियों पुराना रिवाज बदल गया । गत 11 मार्च कमो इस मुद्े पर हुई अंतिम बैठक में सथानीय विधायक भी मलौजूद थे । प्रशासन की मधरसथता के बाद आख़िरकार दलितों कमो मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिल गई । उसके बाद बड़ी संखरा में पुलिसकर्मियों की तैनाती के बीच गांव के पांच दलितों ने मंदिर में पूजा-अर्चना की । इनमें शामिल पूजा दास का कहना था कि अब हमारे पुरखों के दलौर से चल रहा भेदभाव खतम हमो गया है । यह हमारे लिए एक ऐतिहासिक दिन है ।
जानकारी के अनुसार पूर्व बर्दवान जिले में षसथत गिधाग्ाम की जनसंखरा लगभग दमो हजार है । इनमें दलितों की जनसंखरा छह प्रतिशत है । गिधग्ाम गिधेशवर शिव मंदिर है, जिसे लगभग
200 साल पुराना माना जाता है । मंदिर के बाहर लगे एक पट्टिका पर लिखा है कि 1997 में इसका नवीनीकरण किया गया था । दासपाड़ा के लमोग ममोची समाज से हैं और अनुसूचित जाति के हैं । उनहें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाता । मंदिर में प्रवेश के अधिकार की मांग दलित समाज के लमोग दशकों से करते आ रहे थे ।
शिवरात्रि के अवसर पर सभी ने जिला प्रशासन कमो पत्र भी भेजकर अनुरमोध किया था कि उच् वर्ग के लमोग उनकमो सदियों से छमोटिी जाति का और अछूत मानते हैं और उनहें मंदिर में यह कह कर प्रवेश नहीं करने देते हैं कि उनके प्रवेश से मंदिर अपवित्र हमो जाएगा । अंततः सथानीय प्रशासन की पहल पर बैठकों और बातचीत के लंबे सिलसिले के बाद आखिर सदियों पुराना रिवाज बदल गया ।
गांव में रहने वाले दास( दलित) समुदाय के शंभू दास के अनुसार उनके पूर्वजों कमो कभी इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली थी । लेकिन अब हम पढ़े-लिखे हैं और इस नीति में बदलाव जरूरी था । इसलिए हमने आवाज उठाई । पुलिस और प्रशासन के सहरमोग से आखिर हमें अपना अधिकार मिल गया है । उममीद है कि यह बिना किसी समसरा के जारी रहेगा । वह कहते हैं कि उनहोंने सथानीय प्रशासन की ओर से सहरमोग नहीं मिलने पर मुखरमंत्री ममता बनजथी कमो पत्र भेज कर इस मामले में हसतषिेप करने की अपील की थी । उसके बाद बैठकों का सिलसिला तेज हुआ ।
मंदिर में दलितों के प्रवेश का विरमोध करने वाले समुदाय के एक सदसर शांतनु घमोष का कहना है कि यह परंपरा हमारे पूर्वजों ने बनाई थी । उनहोंने हर समुदाय के लमोगों की जिममेदारी तय कर दी थी । लेकिन गर्भगृह में रिाह्मणों के अलावा किसी दूसरे समुदाय के वरष्त का प्रवेश निषेध था । हम तमो उसी परंपरा का पालन कर रहे थे । फिलहाल अब दलितों कमो मंदिर में पूजा करने का अधिकार मिल गया है । इस निर्णय से गांव के सभी दलितों में हर्ष और ख़ुशी का भाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । यह समाज में हमो रहे सकारातमक बदलाव कमो भी दर्शाता है ।
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36 vizSy 2025