April 2025_DA | Page 23

था । संविधान की उद्ेषशरका, जिसके डा. आंबेडकर रचियता थे, इन सभी सवतंत्रताओं कमो समाहित करने वाला एक अति महतवपूर्ण दसतावेज है ।
डा. आंबेडकर कमो अर्थशासत्र के वसधिांतों की गहरी समझ थी । वह देश के तेजी से औद्योगीकरण के हामी और ग्ाममोद्योग एवं खादी आंदमोलन जैसी गांधीवादी परिकलपनाओं के कठमोर आलमोचक थे । औद्योगीकरण पर ज़ोर देने के साथ-साथ उनका यह भी कहना था कि कृषि कमो नजऱअंदाज नहीं किया जाना चाहिए ्रोंकि कृषि से ही देश
की बढ़ती जनसंखरा कमो भमोजन और उद्योगों के लिए आवशरक कच्े माल की उपलबधता सुवनषशचत हमो सकेगी । जब देश का तेजी से औद्योगीकरण हमोगा, तब कृषि ही वह नींव हमोगी, जिस पर आधुनिक भारत की इमारत खड़ी की जाएगी । इस लक्र की प्राषपत के लिए उनहोंने कृषि षिेत्र के पुनर्गठन के लिए क्रांतिकारी कदम
उठाए जाने की वकालत की । वह कृषि रमोगर भूमि के राष्ट्रीयकरण के पषि में थे । यहां यह महतवपूर्ण है कि वह किसानों की जमीन की जबती की बात नहीं कर रहे थे । उनका कहना था कि कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण किया जाए और जमीन के मालिकों कमो उनकी जमीन के एवज में आनुपातिक मूलर के ऋणपत्र जारी किए जाएं ।
डा. आंबेडकर के अनुसार, भारत में छमोटिी जमोतें इसलिए समसरा नहीं हैं ्रोंकि वह छमोटिी हैं बषलक यह इसलिए समसरा हैं ्रोंकि वह सामाजिक अर्थवरवसथा की आवशरकताओं से मेल नहीं खाती । जमोतों के खंडित हमोते जाने और छमोटिे-छमोटिे टिुकड़ों में बंटिने की समसरा का एक ही इलाज है कि जमीनों की चकबंदी की जाए । 15 मार्च, 1928 कमो डा. आंबेडकर ने बंबई विधान मंडल में‘ वतन’ विधेयक प्रसतुत किया । विरासत में प्रापत छमोटिी-छमोटिी‘ इनाम भूमियों’ के कारण वतनदार महारों की आर्थिक षसथवत दयनीय हमो गई थी । इस विधेयक कमो कई सालों तक लंबित रखा गया और अंतत: उसे बलॉमबे इंफीरियर विलेज सवनेन्टस एक्ट 1939 के रूप में पारित किया गया । डा. आंबेडकर ने 7 सितंबर, 1937 कमो बंबई विधानमंडल में‘ खमोटिी प्रथा’ के उनमूलन के लिए विधेयक प्रसतुत किया । इस विधेयक के माधरम से वह बटिाईदारों कमो जमीन का मालिकाना हक दिलवाना चाहते थे और खमोटिी प्रथा के सथान पर रैयतवारी प्रथा लागू करना चाहते थे । डा. आंबेडकर भारत के ऐसे पहले नेता थे, जिनहोंने खेतिहर बटिाईदारों कमो गुलामी से मु्त करने के लिए विधेयक प्रसतुत किया । डा. आंबेडकर के अनुसार हर तरह के श्रमिकों-चाहे वह औद्योगिक हों या खेतिहर-कमो एक-सी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए, जिनमें प्रमोविडेंड फंड, वनरमोजक का दायितव, मुआवजा, सवास्थर बीमा और पेंशन शामिल हैं ।
डा. आंबेडकर के अनुसार जाति का एक आर्थिक पषि भी है और जातिप्रथा के उनमूलन के लिए, भारतीय गांवों की आर्थिक संरचना का पुनर्गठन आवशरक है । भारत की जनसंखरा का लगभग 70 प्रतिशत कृषि पर निर्भर है और गांवों
में रहता है, जहां जातिवाद और सांप्रदायिकता का बमोलबाला है । इसलिए उनहोंने संविधान सभा कमो संबमोवधत करते हुए कहा कि मेरा मानना है कि ग्ामीण गणतंत्र भारत का विनाश कर देंगे । गांव, सथानीयता की नाली और अज्ानता, संकीर्ण समोच और सांप्रदायिकता के अड्ों के अलावा ्रा हैं? मुझे प्रसन्नता है कि संविधान के मसविदे में गांव की जगह वरष्त कमो इकाई बनाया गया है । उनकी यह मानरता थी कि अगर गांवों कमो उनकी बुराईयों से मु्त किया जाना है तमो कृषि षिेत्र में आधुनिक परिवर्तन लाने होंगे । उनका कहना था कि गांव की वर्तमान वरवसथा न केवल जातिप्रथा की पमोषक है, वरन कृषि के विकास में भी बाधक है । इसलिए कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण, जातिप्रथा की रीढ़ तोड़ देगा और कृषि उतपादन कमो बढ़ावा देगा, जिससे उद्योगों के लिए‘ विपणन रमोगर अतिशेष’ उपलबध हमो सकेगा । इसके साथ ही डा. आंबेडकर का मानना था कि बौद्धिक और सांसकृवतक जीवन कमो बढ़ावा देने के लिए तेजी से औद्योगीकरण आवशरक है ।
भारत में‘ दमित वगगों’ कमो आर्थिक सवतंत्रता उपलबध नहीं थी । उनके पास न तमो जमीन थी, न सामाजिक हैसियत, न वरापार- वरवसाय में हिससेदारी और ना ही सरकारी नलौकरियों में प्रतिनिधितव । इसलिए आंबेडकर ने उद्योग के षिेत्र में‘ राजर समाजवाद’ की वकालत की और कृषि भूमि पर राजर के मालिकाना हक और सामूहिक खेती पर ज़ोर दिया । उनका यह दृढ़ मत था कि भूमिहीन श्रमिकों की समसरा का निदान चकबंदी या बटिाईदारों कमो भूमि पर मालिकाना हक देने मात्र से नहीं हमोगा । केवल खेतों पर सामूहिक सवावमतव से यह समसरा हल हमो सकती है । सामूहिक खेती का ववतिपमोषण राजर द्ारा किया जाना चाहिए । राजर द्ारा खेती के लिए पानी, भारवाही पशु, उपकरण, खाद, बीज इतरावद उपलबध कराए जाने चाहिए । राजर कमो खेती करने वालमो से उपयु्त शुलक वसूलने का अधिकार हमोना चाहिए । मूलभूत और महतवपूर्ण उद्योगों पर राजर का मालिकाना हक हमोना चाहिए और उनहें राजर द्ारा संचालित किया
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