April 2025_DA | Page 19

कांग्ेस की सरकारें रही हैं । इसके बावजूद देश में साषिरता की दर, मुषसलम महिला सशक्तकरण, रमोजगार और बुनियादी सुविधाओं में कमोई विशेष प्रगति नहीं हुई और कांग्ेस का मुषसलम प्रेम हकीकत कम चुनावी जरादा साबित हुआ ।
कांग्ेस का वामपंथी जमोड़
कांग्ेस की जातिवादी और मुषसलम तुष्टिीकरण वाली समोच पर हिनदू विरमोधी वामपंथी बुवधिजीवियों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । कांग्ेस के सहरमोगी वाममपंथी बुवधिजीवी अपनी विकृत भारत विरमोधी समोच के साथ वही पुराना एजेंडा चला रहे हैं । अलपसंखरक वर्ग, जिसमें मुखर रूप से मुषसलम और ईसाई है, पर ही कांग्ेस और वामपंथियों की राजनीति केंद्रित है । कांग्ेस ऊपरी तलौर पर इसे सामाजिक नरार जैसा कुछ कहकर प्रचारित करती है, के इसका बुनियादी लक्र बहुसंखरक हिनदुओं कमो वगगों में विभाजित करके उनके बीच आंतरिक टिकराव पैदा करना है और अलपसंखरक के नाम पर मुषसलम तुष्टिीकरण
कमो जारी रखना है । कांग्ेस के सेकुलरवाद की विचारधारा कमो वामपंथियों ने ही गढा है और इसके पीछे भारत में इसलावमक शासन प्रणाली कमो लागू करने का स्पष्ट लक्र है, जिससे मुषसलम अववल दजने के नागरिक बन जाए और जातियों में बंटिा हिनदू अपने वर्ग संघर्ष में उलझा हमोगा । वासतव में यह यह भारत की शासन वरवसथा का इसलामीकरण करने का प्रयास है, जिसका प्ररमोग बंगाल से लेकर केरल तक वामपंथी, कांग्ेस एवं अनर हिनदू विरमोधी दलों द्ारा लगातार किया जा रहा है । हाल के वषगों में इसलामीकरण से जुड़ी जितनी भयावह खबरें बंगाल और केरल से आई हैं, उतनी कहीं से नहीं आईं हैं । केरल में भले ही कांग्ेस के नेता वामपंथी दलों से लड़ रहे हों लेकिन राष्ट्रीय सतर पर वह उनहीं के राजनीतिक एजेंडे कमो पूरा करने का काम भी कर रहे हैं । कांग्ेस का खुल कर कहना हैं कि कांग्ेस यह सुवनषशचत करेगी कि प्रतरेक नागरिक की तरह अलपसंखरकों कमो भी पमोशाक, भमोजन, भाषा और वरष्तगत कानूनों के पसंद की सवतंत्रता हमो ।
डा. आंबेडकर और सामाजिक नयाय
देश की राजनीति में बाबा साहब आंबेडकर कमो प्राय: सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हुए उनहें अपना बताने की कमोवशश कर रहे हैं । दलित वमोटिों की गमोलबंदी जितनी मजबूत हमो रही है, डा. आंबेडकर से राजनीतिक दलों का ममोह उतना ही बढ़ता जा रहा है । डा. आंबेडकर के माधरम से दलित वमोटिों पर कबजा करने की इचछा सबमें दिखाई देती है, परनतु उनकी वासतविक विरासत और विचारों कमो समझने और उसे आगे ले जाने का संकलप कहीं नहीं दिखाई देता । डा. आंबेडकर आधुनिक भारत के सबसे जरादा विचारवान और विद्ान राजनेताओं में से हैं । पिछले सात दशक से अधिक समय में जिन नायकों ने देश कमो बदलने में सबसे अहम भूमिका निभाई है, उनमें डा. आंबेडकर अग्गणर रहे हैं । डा. आंबेडकर सामाजिक नरार के पषिधर थे । वह जिस सामाजिक नरार की अवधारणा का प्रतिपादन करते है, वह नसल भेद, लिंग भेद और षिेत्रीरता के भेद से मु्त है । डा. आंबेडकर एक ओर दलितों की मुक्त और सामाजिक समानता चाहते थे, वहीं दूसरी ओर वह यह भी चाहते थे कि भारत एक मजबूत, शक्तशाली एवं महान् राष्ट्र बने । उनहोंने इन दमोनों दिशाओं के कार्य किया । भारतीय संविधान का प्रमुख सवर और अनुभूति सामाजिक नरार ही है । यहां समाज और नरार के प्रति लचीला रूख अपनाते हुए नरावरक वरवसथा कमो मु्त रखा गया है ताकि सामाजिक पररषसथवतरों, आरमोजनों, संसकृवत समय तथा लक्र के अनुरूप इसमें आवशरक परिवर्तन किए जा सकें । लेकिन डा. आंबेडकर की सामाजिक नरार की अवधारणा कमो कांग्ेस सहित अनर हिनदू विरमोधी दल अपने- अपने अनुसार परिभाषित करके मुषसलम और ईसाई समुदाय कमो बढ़ावा देकर वमोटि बैंक की जमो राजनीति कर रहे हैं, वह राष्ट्र के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है । देखना यह हमोगा कि मुषसलम आरषिण के नाम पर विपषिी दल कब तक संविधान के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे । �
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