जनमतदन पर विशेष
आर्य समाज आन्ोलन और डा. आंबेडकर
मनममोहन कुमार आर्य
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भीमराव आंबेडकर देश ही नहीं, वरन विशव में एक जाना-माना नाम है । भारत के संविधान के निर्माण में अपना बहुमूलर रमोगदान देने वाले डा. आंबेडकर देश के प्रथम कानून मंत्री भी रहे हैं । डा. आंबेडकर की पृष्ठभूमि एक दलित परिवार से थी । दलित हमोने के कारण उनहें हिनदू वद्जों की उपेषिा एवं पषिपात पूर्ण वरवहार का शिकार हमोना पड़ा । महर्षि दयाननद महाभारत काल के बाद शायद पहले एवं सबसे अधिक प्रभावशाली सुधारक रहे, जिनहोंने वेदादि शासत्रों के आधार पर जनमना जातिवाद आदि कमो वैदिक विचारधारा एवं वसधिानतों के प्रतिककूल वसधि किया था । उनहोंने हिनदू पलौराणिक रिाह्मण वर्ग द्ारा सत्री एवं दलितों से छीने गये वेदों के अधररन के अधिकार कमो न केवल ललौटिाया, अपितु इसके समर्थन में अनेक प्रमाण देने के साथ आपके अनुयायियों द्ारा सथावपत गुरुकुलों एवं अनर वशषिण संसथाओं में दलित विद्ावथ्यरों कमो प्रवेश दिया । उनहें हिनदू पलौराणिक रिाह्मणों से भी अधिक संसकृतज् एवं वेदों का वेदपाठी विद्ान पषणडत बनाया । उनके एवं उनके अनुयायियों के प्रयासों से देश में जनमना जातिवाद की दीवारे कमजमोर हमोकर टिूटिी । इसके साथ ही दलितों सहित सभी वगगों के लमोगों कमो वशषिा एवं समाज में समानता के अधिकार मिले । ईशवरीय ज्ान वेदों के पुनरुधिार सहित सामाजिक समानता और सभी प्रकार के सामाजिक सुधारों का श्रेय भी महर्षि दयाननद एवं उनके द्ारा सथावपत आर्यसमाज कमो ही है ।
14 अप्रैल ' 1891 और मधर प्रदेश का महू सथान भारत के संविधान निर्माता डा. भीमराव
आंबेडकर की जनमवतवथ एवं जनमभूमि है । आर्यसमाज की सथापना के 16 वर्ष बाद और सवामी दयाननद के देहावसान के लगभग आठ वर्ष बाद 14 अप्रैल ' 1891 कमो भारतरत्न डा. आंबेडकर का महू( मधरप्रदेश) में जनम हुआ । यह तमो स्पष्ट ही है कि डा. आंबेडकर के काल में सवामी दयाननद शरीररूप में ववद्मान नहीं थे, पर आर्य सामाजिक आन्दोलन के रूप में उनका यशःशरीर तमो जरूर ववद्मान था । डा. आंबेडकर की ग्नथ समपदा इस बात की साषिी है कि वह सवामी दयाननद द्ारा सथावपत आर्यसमाज तथा उनके अनुयायियों की गतिविष्धियों से अचछी तरह परिचित थे । ततकालीन समय में आर्यसमाज का आन्दोलन अपने पूरे रलौवन पर था, जिसका प्रभाव डा. आंबेडकर और उनके युग पर वनषशचत रूप से पड़ा ।
जैसे सवामी दयाननद गुजराती हमोते हुए भी मूलतः औदीचर तिवारी रिाह्मण माने जाते थे, वैसे ही डा. आंबेडकर भी मधरप्रदेश में जनम
लेने के बावजूद मूलतः तथाकथित शूद्र( महार) कुलमोतपन्न महाराष्ट्रीय के रूप में सुप्रवसधि थे । कालानतर में यह दमोनों विभूतियां राष्ट्रीय ही नहीं, अपितु अनतर्राष्ट्रीय महापुरुष के रूप में भी सुप्रवसधि हुईं । जिस समय महाराष्ट्र में( ततकालीन मुमबई राजर में)‘ रानाडे-फुले युग’ का असत हमो रहा था, उसी समय वहां श्री सयाजीराव गायकवाड़, राजर्षि शाहू महाराज तथा डा. आंबेडकर के युग का उदय हमो रहा था । यह दूसरी पीढ़ी भी अपनी पूर्ववतथी दयाननद-रानाडे- फुले आदि महापुरुषों की कार्यप्रणाली से प्रभावित और प्रेरित रही है । श्री सयाजीराव गायकवाड़ और राजर्षि शाहू महाराज सवामी दयाननद और उनके द्ारा सथावपत‘ आर्यसमाज’ से अधिक प्रभावित थे, तमो डा. आंबेडकर महातमा फुले और उनके द्ारा सथावपत‘ सतर शमोधक समाज’ से । श्री सयाजीराव गायकवाड़ और राजर्षि शाहू महाराज आर्यसमाजी हमोते हुए भी सतर शमोधक समाज के भी सहरमोगी और प्रशंसक रहे, तथा डा. आंबेडकर महातमा फुले के शिष्य हमोते हुए
14 vizSy 2025