करना चाहते थे, जिसमें समानता हमो, गरीबी, बेरमोजगारी और महंगाई ख़तम हमो, लमोगों का आर्थिक शमोषण न हमो तथा सामाजिक नरार हमो I सामानरत: ऐसा लग सकता है कि डा. आंबेडकर ने यदि केवल अर्थशासत्र कमो ही अपना करियर बनाया हमोता तमो संभवत: वह अपने समय के दुनिया के दस प्रवसधि अर्थशाषसत्ररों में से एक हमोते । लेकिन डा. आंबेडकर का रमोगदान किसी भी अर्थशासत्री से कहीं जरादा है I डा. आंबेडकर ने अर्थशासत्र के वसधिांतों और शमोधों का भारतीय समाज के संदर्भ में वरावहारिक उपरमोग किया । शमोध का जब तक अनुप्ररमोग( एपलीकेशन) न हमो तब तक उसकी सामाजिक उपरमोवगता संदिगध है I भारतीय समाज वरवसथा कमो आमूल बदलकर डा. आंबेडकर ने अर्थशासत्र के उद्ेशरों कमो वासतविक अर्थ में साकार किया I उनका यह अविसमणथीर रमोगदान उनकी सश्त
सामाजिक-आर्थिक संवेदना और सामाजिक- आर्थिक गहन वैचारिकी का परिणाम हैं राजर समाज में महतवपूर्ण भूमिका निभाता है ।
1923 में बाबा साहब ने ववति आरमोग की चर्चा करते हुए कहा कि पांच वषगों के अंतर पर ववति आरमोग की रिपमोटि्ट आनी चाहिए । भारत में रिजर्व बैंक की सथापना का खाका तैयार करने और प्रसतुत करने का कार्य डा. आंबेडकर ने किया( 1925 Hilton Young Commission) । इसे ररजव्य बैंक आफ इंडिया ने सवीकार किया और अपनी सथापना के 81 वर्ष पूरे हमोने पर बाबा साहब के नाम पर कुछ वस्के भी जारी किए । डा. आंबेडकर ने बड़े उद्योग लगाने की वकालत की, परंतु कृषि कमो समाज के रीढ़ की हड्ी भी माना I औद्योगिक क्रांति पर जमोर देने के साथ-साथ उनका यह भी कहना था कि कृषि कमो अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए ्रोंकि कृषि से ही
देश की बढ़ती जनसंखरा कमो भमोजन और उद्योगों कमो कच्ा माल मिलता हैं । जब देश का तेज़ी से विकास हमोगा, तब कृषि वह नींव हमोगी, जिस पर आधुनिक भारत की इमारत खड़ी की जाएगी I इस लक्र की प्राषपत के लिए डा. आंबेडकर ने कृषि षिेत्र के पुनर्गठन के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने की वकालत की I
डा. आंबेडकर कृषि रमोगर भूमि के राष्ट्रीयकरण के प्रमुख पैरमोकर थे । इस राष्ट्रीयकरण में भू-सवावमरों कमो भूमि के सथान पर आनुपातिक मूलर के ऋणपत्र जारी किए जाए । डा. आंबेडकर राजर कमो यह दायितव सौंपते हैं कि वह लमोगों के आर्थिक जीवन कमो इस प्रकार रमोजनाबधि करे, जिससे उतपादकता का सववोच् बिंदु हासिल हमो जाए और निजी उद्योग के लिए एक भी मांग बंद न हमो I इसके साथ ही संपदा के समान वितरण के लिए भी उपबनध किए जाए । वनरमोवजत ढंग से कृषि षिेत्र में राजकीय सवावमतव प्रसतावित है, जहां सामूहिक तरीके से खेती-बाड़ी की जाए तथा उद्योगों के षिेत्र में राजकीय समाजवाद रूपांतरित रूप भी प्रसतावित है । इसमें कृषि एवं उद्योग के लिए आवशरक पूंजी सुलभ कराने की वरवसथा राजर के कनधों पर स्पष्ट डाली गई है । डा. आंबेडकर का मानना था कि राजर द्ारा पूंजी उपलबध कराए बिना कृषि एवं उद्योगों से बेहतर परिणाम नहीं निकल सकते हैं ।
बाबा साहब डा. आंबेडकर के समपूण्य जीवन की यदि समीषिा की जाए तमो उनकी समोच, उनका जीवन-इस राष्ट्र, इस समाज के लिए ही सदैव समर्पित रहा । उनहोंने आर्थिक ढांचे के लमोकतांत्रिक, समाजवादी, लेकिन वह पूर्णत: दैशिक हमो, इस देश काल परिसथवत के अनुककूल हमो-इस विषय पर भी उनहोंने चिंतन किया I मजदूर के काम के घंटिे, महिला श्रमिक के काम के घंटिे, काम की परिसथवत, उसका परिवेश, उनके बच्ों के साथ निकटिता, मजदूरों कमो जीवन बीमा-जैसी यह सभी रमोजना भारत के आर्थिक ढांचे कमो सश्त करने के लिए बाबा साहब डा. आंबेडकर द्ारा किए गए प्रयास थे ।
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