जनमतदन पर विशेष
Finance of East India Company) नामक उनका एक लेख प्रकाशित हुआ जिसकी काफी सराहना की गई । 1917 में कमोलंबिया यूनिववस्यटिी ने उनहें पीएचडी की उपाधि दी I उनकी पीएचडी थीसिस " The National Dividend of India- A Historical and Analytical Study वासतव में एक ऐतिहासिक शमोध था । 1918 से 1920 तक डा. आंबेडकर बलॉमबे के एक कालेज में राजनीतिक अर्थशासत्र के प्रमोिेसर रहे । एक प्रमोिेसर के रूप में उनहोंने अपने विद्ावथ्यरों कमो भारतीय अर्थवरवसथा की सभी आर्थिक समसराओं से समबंवधत मुद्ों कमो समझाया एवं उनका वरवहारिक समाधान भी बताया I
डा. आंबेडकर की आर्थिक समसरओं के प्रति वरवहारिक समोच थी । वह मानते थे कि भारत के पिछड़ेपन का मुखर कारण भूमि- वरवसथा के बदलाव में देरी है I इसका समाधान लमोकतांत्रिक समाजवाद है, जिससे आर्थिक कार्यषिमता एवं उतपादकता में वृवधि हमोगी तथा ग्ामीण अर्थवरवसथा का कायापलटि संभव हमोगा I आर्थिक समसराओं के प्रति उनके दृषष्टिकमोण की सर्वाधिक महतवपूर्ण विशेषता यह भी थी कि वह अहसतषिेप( Laissez-faire) तथा वैज्ावनक समाजवाद( Scientific Socialism) की निंदा करते थे ।
डा. आंबेडकर ने आर्थिक एवं सामाजिक असमानता पैदा करने वाले पूंजीवादी वरवसथा कमो ख़तम करने की पुरजमोर वकालत की I 1920 में डा. आंबेडकर प्रमोिेसर पद कमो छमोड़कर अपनी पढ़ाई के लिए लनदन स्कूल ऑफ़ इकमोनॉमिक्स चले गए । वहां उनहोंने एमएससी( अर्थशासत्र) की पढ़ाई 1921 में पूरी की I उनकी एमएससी की थीसिस“ वरिवटिश भारत में इमपीरियल ववति के प्रांतीय विकेंद्रीकरण”( Provincial Decentralization of Imperial Finance in British India) कमो लनदन स्कूल ऑफ़ इकमोनॉमिक्स में सवीकृत प्रापत हुई ।
यह वरिवटिश साम्ाजरवाद की ववति वरवसथा पर एकमात्र गहन शमोध था I इस शमोध के माधरम से डा. आंबेडकर ने ववतिीर विकेंद्रीकरण की
अवधारणा का प्रतिपादन किया । उनका मानना था कि ववतिीर विकेंद्रीकरण से सभी प्रांतों कमो लाभ हमोगा I आज के समय में भी उनके शमोध का महतव उतना ही है जितना कि वरिवटिश शासन के दलौरान था । आज भी विकेंद्रीकरण की वकालत करनेवाले बुवधिजीवी केंद्र-राजर ववति बंटिवारे के मामले में राजरों कमो ववति की सवारतिता देने की मांग करते हैं । 1923 में उनहोंने लनदन स्कूल ऑफ़ इकमोनॉमिक्स से ही डीएससी( अर्थशासत्र) की डिग्ी प्रापत की I अपने डीएससी की थीसिस " The Problem of the Rupee- Its origin and its solution ". में उनहोंने रुपए के अवमूलरन की समसरा पर शमोध किया, जमोवक उस समय के शमोधों में सबसे वरवहारिक तथा महतवपूर्ण शमोध था ।
आज भी यह भारतीय अर्थवरवसथा के संदर्भ में प्रासंगिक है I रुपए के अवमूलरन कमो कम करने के लिए डा. आंबेडकर द्ारा सुझाए गए
उपाय आज भी उपादेय हैं । उनका विचार था कि टिकसालों कमो समापत करके भारतीय अर्थवरवसथा के आतंरिक मूलर सतर में गड़बड़ी रमोकना तथा मुद्रासिीवत कमो कम करना संभव है I उनहोंने माना कि समोने कमो मूलर का मानक हमोना चाहिए और मुद्रा की लमोच इसी पर निर्भर हमोनी चाहिए । डा. आंबेडकर द्ारा किए गए शमोध आज के समय के लिए भी उपयु्त हैं I वर्तमान समय में भारतीय अर्थवरवसथा की सभी सामाजिक एवं आर्थिक समसराओं जैसे-गरीबी, बेरमोजगारी, महंगाई, पिछड़ापन, असमानता( वरष्तगत एवं षिेत्रीर), विदेशी मुद्राओं के मुकावले भारतीय मुद्रा( रुपए) का अवमूलरन आदि-आदि से समबंवधत गंभीर विमर्श डा. आंबेडकर के आर्थिक शमोधों में देखे जा सकते हैं I
डा. आंबेडकर भारतीय अर्थवरवसथा कमो एक नरारसंगत अर्थवरवसथा के रूप में सथावपत
12 vizSy 2025