की । यह भारत में लडतकयों के लिए खुलने वाला पहला विद्यालय था । फुले दमपति ने 1 जनवरी 1848 को पुणे के बुधवार पेठ के भिडेवाडा में लडतकयों के पहले सकूल की शुरुआत की और महज़ 17 साल की उम् में सातवरिीबाई ने इस सकूल में बतौर तशतक्का पढ़ाना शुरू किया । शुरुआत में सकूल में तसि्क 9 लडतकयां पढ़ने के लिए राज़ी हुई . फिर धीरे- धीरे इनकी संखया 25 हो गई I1851 तक दोनों ने मिलकर पूने में 3 ऐसे सकूल खोले जिनमें लडतकयों को शिक्ा दी जाती थी । सकूल के पाठ्यकम में गणित , विज्ञान और समाजशासरि भी शामिल था । इन तीनों सकूलों को मिलाकर छारिों की संखया 150 थी . पढ़ाने का तरीक़ा भी सरकारी सकूलों से अलग था ।
सातवरिीबाई फुले सवयं इस सकूल में लडतकयों को पढ़ाने के लिए जाती थीं । लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था । उनहें लोगों के कडे विरोध का सामना करना पडा । यहां तक कि उनहोंने लोगों द्ारा फेंके जाने वाले पतथरों की मार भी झेली । परनिु उनहोंने हार नहीं मानी । इसके बाद जयोतिबा ने लडतकयों के लिए दो और सकूल खोले और एक सकूल निम्न जाति के बच्चों के लिए खोला । इसके साथ ही विधवाओं की शोचनीय दशा को देखते हुए उनहोंने विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनाया । साथ ही उनहोंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला ताकि कनया शिशु हतया
को रोका जा सके । 28 नवमबर 1890 को महातमा जयोतिबा फुले की मृतयु के बाद उनके अनुयायियों ने सतय शोधक समाज को दूर−दूर तक पहुंचाने का कार्य किया ।
जयोतिबा पर शिवाजी महाराज का बहुत असर था । उनहोंने ही रायिढ़ जाकर पतथर और पतत्यों के ढेर तले दबी शिवाजी महाराज की समाधि को खोजा था और उसकी मरममि करवाई थी । बाद में उनहोंने शिवाजी महाराज पर एक छंदबद जीवनी भी लिखी , जिसे पोवाडा भी कहा जाता है । जातिवाद के साथ साथ जयोतिबा फुले ने विधवा पुनर्विवाह के लिए भी काफी काम किया । उनहोंने गर्भवती कसरियों के लिए एक केयर सेंटर शुरू किया , जिसका नाम था “ बालहतया प्तिबंधक गृह ” I अगला नमबर था विधवाओं को गंजा करने की कुप्था का , जिसका विरोध करते हुए फुले दमपति ने नाइयों की हडिाल कराई और इस प्था के ख़िलाि ज़ोर-शोर से आवाज़ उठाई ।
पिछड़ों और महिलाओं के हक़ में आवाज उठाने के अलावा उनहोंने प्शासनिक सुधारों के समबनध में भी काम किया . साल 1878 की बात है । वायसरॉय लॉर्ड लिटन ने वर्नाकयुलर ऐकट नाम का एक क़ानून पास किया , जिसके तहत प्ेस की आजादी को भंग कर दिया गया था । जयोतिबा का संगठन सतय शोधक समाज दीनबंधु नाम का एक समाचार परि निकालता था । ये अखबार भी इस क़ानून की चपेट में आया । इसके कुछ साल बाद जब लार्ड लिटन पुणे
आनेवाला था , उसके सवािि का भवय आयोजन किया गया । जयोतिबा फुले तब नगरपालिका के सदसय थे । उनहोंने लिटन के सवािि में होने वाले खर्च का भरपूर विरोध कियाा और जब नगरपालिका में ये प्सिाव रखा गया तो इसके खिलाफ वोट करने वालों में फुले एकमारि सदसय थे ।
63 साल तक पिछड़ों और दबे कुचले वर्ग के लिए लगातार आवाज उठाने के बाद 28 नवंबर 1890 को महामना जयोतिबा फुले की मृतयु हो गई । आत़िरी समय में उनहें लकवा मार गया था । जाते जाते भी उनहोंने इस बात का धयान दिया कि वयककि जनम से नहीं कर्म से बढ़ा होता है । अपनी वसीयत में उनहोंने लिखा कि अगर उनका बेटा यशवंत आगे जाकर नालायक हो जाए , या बिगड़ जाए तो उनकी संपतत् किसी पिछड़े तबके के लायक बच्चे को दे दी जाए ।
महातमा फुले ने समाज कार्य करते हुए अनेक पुसिकें भी लिखीं । ये सभी पुसिकें उनके कार्य को गति प्दान करती हैं । इनमें ' तृतीय रत् ', ' रिह्माणंचे कसाब ', ' इशारा ', ' पोवाडा−्रिपति शिवाजी भोंसले यांचा ', असपृशयांची कैफि़यत ' इतयातद प्मुख हैं । जयोतिबा फुले ने अपने कार्य से अनेक लोगों को प्भावित किया । यह प्भाव उनकी मृतयु पययंत भी बना रहा । डॉ . भीमराव अंबेडकर भी उनसे काफी प्भावित हुए और महातमा की ही राह पर चलते हुए उनहोंने दलितों के उतथान के लिए अनेक कार्य किए जिनका प्तयक् परिणाम आज देखा जा सकता है ।
आज भी लोग जयोतिबा के कायशों से प्भावित हो रहे हैं । जयोतिबा ने ' गुलामगिरी ' नाम की भी एक पुसिक लिखी । वर्ष 1873 में प्काशित यह पुसिक आज भी समाज में हो रहे भेदभाव पर खरी उतरती है । हाल ही में हुए अमेरिकी राषट्रपति के भारत दौरे के दौरान पूर्व उपमुखयमंरिी छगन भुजबल ने मुंबई में बराक ओबामा को यह पुसिक भेंट सवरूप दी और उनहें इसका सार बताया । इससे ओबामा भी प्भावित दिखे और भारत से अनमोल भेंट कहकर इस किताब को सवीकार किया । �
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