श्री शिंदे जी को भेजकर पाठशाला का हालचाल पता कराया । शिंदे जी ने आकर कहा कि महाराज ऐसा दृशय देख कर आ रहा हूँ , जिसकी कोई कलपना भी नहीं कर सकता । दलितों में भी अति निम्न समझने वाली जाति के लड़के वेद मंरिो से ईशवर की सिुति कर रहे थे और दलित लड़कियां भोजन पका रही थी जिसे सभी सवणमा-दलित बिना भेदभाव के ग्हण कर रहे थे । सुनकर महाराज को संतोष हुआ । पर यह कार्य ऐसे ही संभव नहीं हो गया । आतमाराम जी सवयं अपने परिवार के साथ किराये पर रहते थे , जैसे ही मकान मालिक को पता चलता की वे दलितों के उतथान में लगे हुए हैं वे उनहें खरी खोटी सुनाते और मकान खाली करा लेते । इस प्कार मासटर जी अतयंि कषट सहने रहे पर अपने मिशन को नहीं छोडा । महाराज के प्ेरणा से मासटर जी ने बड़ौदा राजय में 400 के करीब पाठशालाओं की सथापना की , जिसमें 20 हजार के करीब दलित बच्चे शिक्ा ग्हण करते थे । महाराज ने प्सन्न होकर मासटर जी के समपूणमा राजय की शिक्ा वयसथा का इंसपेकटर बना दिया । मासटर जी जब भी सकूलों के दौरों पर जाते तो सवर्ण जाति के लोग उनका तिरसकार करने में कोई कसर नहीं छोडिे , पर मासटर जी चुपचाप अपने कार्य में लगे रहे । समपूणमा गुजरात में मासटर आतमाराम जी ने न जाने कितने दलितों के जीवन का उदार किया होगा इसका वर्णन करना कठिन हैं । अपने बमबई प्वास के दौरान मासटर जी को दलित महार जाति का स्ािक युवक मिला जो एक पेड के नीचे अपने पिता की असमय मृतयु से परेशान बैठा था । उसे पढने के लियें 25रूपए मासिक की छारिवृति गायकवाड महाराज से मिली थी , जिससे वो स्ािक की पढ़ाई कर सका था । मासटर जी उसकी क़ाबलियत को समझकर उसे अपने साथ ले आये । कुछ समय पशचाि उसने मासटर जी को अपनी आगे पढने की इच्ा बताई । मासटर जी ने उनहें गायकवाड महाराज के बमबई प्वास के दौरान मिलने का आशवासन दिया । महाराज ने 10 मेघावी दलित छारिों को विदेश जाकर पढने के लिए छारिवृति देने की घोषणा
करी थी । उस दलित युवक को छारिवृति प्दान की गयी जिससे वे अमेरिका जाकर आगे की पढाई पूरी कर सके । अमेरिका से आकर उनहें बड़ौदा राजय की 10 वर्ष तक सेवा करने का कार्य करना था । अपनी पढाई पूरी कर वह लगनशील युवक अमेरिका से भारत आ गए और उनहोंने महाराजा की अनुबंध अनुसार नौकरी आरंभ कर दी । पर सवणशों द्ारा दफिर में अलग से पानी रखने , फाइल को दूर से पटक कर टेबल पर डालने आदि से उनका मन खट्टा हो गया । वे आतमाराम जी से इस नौकरी से मुकि करवाने के लिये मिले । आतमाराम जी के कहने पर गायकवाड महाराज ने उनहें 10 वर्ष के अनुबंध से मुकि कर दिया । इस बीच आतमाराम जी के कार्य को सुन कर कोहलापुर नरेश साहू जी महाराज ने उनहें कोलहापुर बुलाकर सममातनि किया और आर्यसमाज को कोलहापुर का कॉलेज चलाने के लिए प्दान कर दिया । आतमाराम जी का कोलहापुर नरेश से आतमीय समबनध सथातपि हो गया ।
आतमाराम जी के अनुरोध पर उन दलित युवक को कोलहापुर नरेश ने इंगलैंड जाकर आगे
की पढाई करने के लिए छारिवृति दी जिससे वे पीएचडी करके देश वापस लौटे । उन दलित युवक को आज के लोग डॉ . आंबेडकर के नाम से जानते हैं जो कालांतर में दलित समाज के सबसे लोक तप्य नेता बने और जिनहोंने दलितों के लिए संघर्ष किया । मौजदा दलित नेता डॉ . आंबेडकर से लेकर पंडिता रमाबाई तक ( जिनहोंने पूने में 1500 के करीब विधवाओं को ईसाई मत में सकममतलि करवा दिया था ) उनसे लेकर जयोतिबा फुले तक ( जिनहोंने सतय शोधक समाज की सथापना की और दलितों की शिक्ा के लिए विद्यालय खोले ) का तो नाम बडे सममान से लेते हैं पर सवर्ण समाज में जनमे और जीवन भर दलितों का जमीनी सिर पर शिक्ा के माधयम से उदार करने वाले मासटर आतमाराम जी अमृतसरी का नाम नहीं लेते । सोचिये अगर मासटर जी के प्यास से और सवामी दयानंद की सभी को शिक्ा देने की जन जागृति न होती तो डॉ . आंबेडकर महार जाति के और दलित युवकों की तरह एक साधारण से वयककि ही रह जाते । मासटर जी के उपकार के लिए दलित समाज को सदा उनका ऋणी रहेगा । �
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