April 2024_DA | Page 46

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डॉ . विवेक आर्य

डॉ . आंबेडकर के सवर्ण मार्गदर््षक मास्टर आत्ाराम अमृतसरी

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शताबदी के आरंभ में हमारे देश में न केवल आज़ादी के लिए संघर्ष हुआ अपितु सामाजिक सुधार के लिए भी बडे- बडे आनदोलन हुए । इन सभी सामाजिक आनदालनों में एक था शिक्ा का समान अधिकार । प्तसद् समाज सुधारक सवामी दयानंद द्ारा अमर ग्नथ सतयाथमा प्काश में उदघोि किया गया कि राजा के पुरि से लेकर एक गरीब वयककि का बालक तक नगर से बाहर गुरुकुल में समान भोजन और अनय सुविधायों के साथ उचित शिक्ा प्ापि करे एवं उसका वर्ण उसकी शिक्ा प्ापि करने के पशचाि ही निर्धारित हो और जो अपनी संतान को शिक्ा के लिए न भेजे , उसे राजदंड दिया जाये । इस प्कार एक शुद्र से लेकर एक रिाह्मण तक सभी के बालकों को समान
पररकसथयों में उचित शिक्ा दिलवाना और उसे समाज का एक जिममेदार नागरिक बनाना शिक्ा का मूल उद्ेशय था ।
सवामी दयानंद के कांतिकारी विचारों से प्ेरणा पाकर बड़ोदा नरेश शयाजी राव गायकवाड ने अपने राजय में दलितों के उदार का निशचय किया । आर्यसमाज के सवामी नितयानंद जब बड़ोदा में प्चार करने के लिए पधारे तो महाराज ने अपनी इच्ा सवामी जो को बताई कि मुझे किसी ऐसे वयककि की आवशयकता हैं जो शिक्ा सुधार के कार्य को कर सके । पंडित गुरुदत तवद्याथशी जो सवामी दयानंद के निधन के पशचाि नाकसिक से आकसिक बन गए थे से प्ेरणा पाकर नये नये स्ािक बने आतमाराम अमृतसरी ने अंग्ेजी सरकार की नौकरी न करके सविंरि रूप से कार्य करने का निशचय किया । सवामी नितयानंद के तनददेश पर अधयापक की नौकरी
छोड कर उनहोंने बड़ोदा जाकर दलित विद्यार्थियों को शिक्ा देने का निशचय किया । एक पककी सरकारी नौकरी को छोडकर गुजरात के गांव- गांव में दलितों के उदार के लिए धूल खाने का निर्णय सवामी दयानंद के सच्चा भकि ही कर सकता था ।
आतमाराम जी बड़ोदा नरेश से मिले तो उनको दलित पाठशालाओं को खोलने का विचार महाराज ने बताया और उनहें इन पाठशालाओं का अधीक्क बना दिया गया । मासटर जी सथान तलाशने के लिए निकल पड़े । जैसे ही मासटर आतमाराम जी किसी भी सथान को पसंद करते तो दलित पाठशाला का नाम सुनकर कोई भी किराये के लिए उसे नहीं देता । अंत में विवश होकर मासटर जी ने एक भूत बंगले में पाठशाला सथातपि कर दी । गायकवाड महाराज ने कुछ समय के बाद अपने अधिकारी
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