पाते हैं कि असल में यह तो सेकुलरिजम है ही नहीं । अगर यह कुछ है तो वह भारत में इसलातमक शासन प्णाली को लागू करने का वादा है जिसमें मुकसलम अववल दजदे के नागरिक होंगे और जातियों में बंटा हिनदू अपने वर्ग संघर्ष में उलझा होगा । असल में यह भारत की शासन वयवसथा का इसलामीकरण करने का प्यास है ,
जिसका प्योग बंगाल से लेकर केरल तक कमयुतनसट पार्टियों ने किया और फेल हुए हैं । अगर मुकसलम समुदाय को सेकुलर वैलयू समझाया गया होता तो केरल कभी आईएसआईएस और पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया जैसे आतंकी संगठनों का गढ नहीं बनता । अगर कमयुतनसट लोग शासन में सेकुलर वैलयू को इतना ही महतव देते तो केरल में इसलातमक युनिवर्सिटी से लेकर इसलातमक बैंतकूंि तक का चलन नहीं बढ़ता ।
हाल के विशों में इसलामीकरण से जुडी जितनी भयावह खबरें बंगाल और केरल से आई हैं , और कहीं से नहीं आईं । यह कैसे हो सकता है कि आप शासन और सोसायटी में सेकुलर वैलयू को महतव देते हों और आपके
राज में संसार की सबसे कट्टरपंथी विचारधारा के लोग पलते-बढ़ते हों ? केरल में भले ही कांग्ेस के नेता राहुल गांधी कमयुतनसट पाटशी से लड रहे हों लेकिन राषट्रीय सिर पर वह उनहीं के राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने का वादा कर रहे हैं । कांग्ेस ने जो घोषणापरि जारी किया है , उसमें बहुत सी ऐसी आपतत्जनक बातें हैं जो बीते दस सालों में कमयुतनसट बुतदजीवी और परिकार सार्वजनिक मंचों से दोहराते रहे हैं । जैसे-अलपसंखयक संरक्ण के नाम पर कांग्ेस ने अपने घोषणापरि में कहा है कि " कांग्ेस यह सुतनकशचि करेगी कि प्तयेक नागरिक की तरह अलपसंखयकों को भी पोशाक , भोजन , भाषा और वयककििि कानूनों के पसंद की सविंरििा हो ।" यह इतना घोर आपतत्जनक वादा है जो न केवल भारत के संविधान पर सवाल उठाता है , बकलक देश के भीतर दो कानून लागू करने की हिमायत भी करता है । कया भारत में अलपसंखयकों को अपनी मजशी से रहने , जीने , भोजन करने , भाषा बोलने पर कोई रोक है ? अगर कांग्ेस का इशारा सिर्फ मुकसलम समुदाय के प्ति है तो कया वह यह कहना चाहती है कि कांग्ेस की सरकार बनी तो वह मुकसलमों के लिए शरीयत सुतनकशचि करेंगे ताकि वह सरकारी अदालतों के समानांतर शरई अदालत चला सकें ?
जहां तक पसंद के भोजन और पहनावे की बात है और इशारा अगर मुकसलम समुदाय की ओर है तो उसका अपनी पसंद का कुछ होता ही नहीं । उसके लिए सबकुछ उसका इसलाम तय करता है कि उसे कया खाना चाहिए , कया पहनना चाहिए , बीवी से शोहबत कैसे करनी चाहिए । और तो और इसलाम अपने फॉलोअर को यहां तक ताकीद करता है कि उनहें पाखाना कैसे जाना चाहिए और पेशाब करने के बाद कया करना चाहिए । एक सच्चे मुसलमान की जिनदिी में उसका अपनी पसंद का कुछ होता ही नहीं । खाना से लेकर पाखाना तक सबकुछ इसलातमक रिवायतें तय करती हैं जिनको मोटे तौर पर शरई सिसटम कहा जाता है । अलपसंखयकों के नाम पर कांग्ेस अगर उनकी पसंद की बात कर ही
रहा है तो सबसे पहले उसे यह सपषट कहना होगा कि कया उनकी अपनी कोई पसंद है भी या नहीं ? फिर खाना पाखाना से अलग वयककििि कानून की सविंरििा की बात करना ही एक देश एक कानून को चुनौती देने जैसा है जो घोर आपतत्जनक है । कया कांग्ेस की सरकार आने पर वह काजियों की नियुककि करेगी जो जजों से अलग मुसलमानों के लिए अपना अलग आदेश जारी करेंगे ?
इसी तरह घोषणापरि में वादा किया गया है कि उनकी सरकार आयेगी तो वह सुतनकशचि करेंगे कि ( मुकसलम ) अलपसंखयकों को बिना किसी भेदभाव के बैंकों से लोन मिल सके । सरकार , अदालत पर सवाल उठाते उठाते कांग्ेस ने बैंकों पर भी सवाल उठा दिया है कि वो मुकसलमों को लोन देने में भेदभाव करते हैं । वित्ीय संगठन जाति धर्म नहीं देखते । वो अपना निवेश और रिटर्न देखते हैं । अगर किसी जाति या समुदाय के लोग लोन लेने के बाद उसे अदा करने में फिसड्ी पाये जाते हैं तो बैंक अपना रिटर्न सुतनकशचि करने के लिए इस जाति या समुदाय से जुडे लोगों को लोन देने में अतिरिकि सावधानी बरतते हैं । यह एक सामानय सी प्ैककटस है । ऐसे में उस जाति या समुदाय पर सवाल उठाने की बजाय बैंतकूंि सिसटम पर ही सवाल उठाने का कया तुक है ?
कांग्ेस का घोषणापरि ऐसे ही आपतत्जनक और विभाजनकारी वादों से भरा पडा है । इसी अनयाय को उनके कमयुतनसट बुतदजीवियों ने ' नयाय ' का नाम दिया है । इसमें अलपसंखयकों के बहाने यह साबित करने का प्यास किया गया है कि मुकसलम समुदाय के साथ भारत में भेदभाव हो रहा है जिसे उनकी सरकार आने पर खतम कर दिया जाएगा । लेकिन इस घोषणापरि को धयान से समझें तो यह कांग्ेस का घोषणापरि है ही नहीं । यह वर्ग विभाजन के जरिए वर्ग संघर्ष की तमन्ना रखनेवाले कमयुतनसटों का घोषणापरि है जिसे कांग्ेस के नाम पर जारी कर दिया गया है । यही कांग्ेस की वह नई विचारधारा है , जिसको बचाने और बढ़ाने के लिए राहुल गांधी मैदान में उतरे हैं । �
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