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भारत में इस्ातमक र्ासन थोपना चाहती है कांग्ेस
संजय र्तवाररी
जब तलाक की शिकार शाहबानो को सुप्ीम कोर्ट ने गुजारा भत्ा देने का आदेश दिया था , तब राजीव गांधी की कांग्ेस सरकार ने यह कहते हुए आदेश को पलट दिया था कि वह समाज सुधार का काम करने के लिए राजनीति में नहीं हैं । वह राजनीति करते हैं और शासन की जवाबदेही उनके ऊपर है । वह उसी पर धयान देते हैं । लेकिन लगभग चार दशक बाद अगर 2024 में कांग्ेस का घोषणापरि देखें तो समझ में आता है कि कांग्ेस ने राजनीति छोडकर अपने आपको पूरी तरह समाज सुधार के काम में ही झोंक दिया है । उसके घोषणा परि में जो कुछ है , वह सब कुछ एससी , एसटी , ओबीसी और अलपसंखयक इसी के आसपास सिमटा हुआ है । हां , महिला और नौजवान की बात भी की गई है ,
लेकिन वह महिला और नौजवान किस जाति और धर्म के होंगें , कांग्ेस का रुझान उधर भी दिखता है ।
असल में कांग्ेस की यह जातिवादी और मुकसलम तुषटीकरण वाली सोच उसकी अपनी नहीं है । बीते दो तीन दशक में जब से कांग्ेस पर कमयुतनसट बुतदजीवियों का प्भाव बढ़ा है , तबसे कांग्ेस पर कमयुतनसट विचारधारा की छाप और गहरी हो गई है । कांग्ेस भले ही समाज सुधार और विचारधारा वाली राजनीति से दूर रही हो लेकिन अब कांग्ेस के राजनीतिक एजंडे में समाज सुधार और विचारधारा वाली राजनीति ही बची है । कांग्ेस के इकलौते वैचारिक मार्गदर्शक राहुल गांधी जिस ' विचारधारा वाली राजनीति ' की बात करते हैं , वह कुछ और नहीं बकलक वही मरी हुई कमयुतनसट विचारधारा है
जिसने भारत में अपनी जमीन खो दी है ।
कांग्ेस के कूंधे पर बेताल की तरह सवार कमयुतनसट बुतदजीवी अपनी उसी ' मरी हुई विचारधारा ' को फिर से कांग्ेस के नाम पर जिनदा करना चाहते हैं । सिर्फ राहुल गांधी के भाषणों में ही नहीं , बकलक अब कांग्ेस के घोषणापरि में भी उसकी झलक साफ साफ दिखाई दे रही है । कांग्ेस ने अपने घोषणा परि को जिस तरह से ' जातिवादी ' और ' सांप्दायिक ' सवरूप दिया है , वह कुछ और नहीं बकलक कमयुतनसट बुतदजीवियों का वही पुराना एजंडा है , जिसे कमयुतनसट पार्टियां पूरा करते करते इतनी अलोकतप्य हुईं कि भारत की राजनीति में गर्त में चली गईं । मसलन कांग्ेस ने अपने घोषणा परि में दो हिससे किए हैं । पहला हिससा वह एससी / एसटी , ओबीसी नामक
राजनीतिक विशीकरण है जो बहुसंखयक हिनदू है । दूसरा हिससा वह अलपसंखयक वर्ग है जिसमें मुखय रूप से मुकसलम और ईसाई हैं । कांग्ेस अपने पूरे घोषणापरि में प्मुख रूप से इनहीं दोनों के बारे में बात करती है । ऊपरी तौर पर इसे सामाजिक नयाय जैसा कुछ कहकर इसका प्चार किया जाता है , लेकिन इस वर्ग विभाजन का लक्य कुछ और है । इसका बुनियादी लक्य बहुसंखयक हिनदुओं को विशों में विभाजित करके उनके बीच आंतरिक टकराव पैदा करना है और अलपसंखयक के नाम पर मुकसलम तुषटीकरण को जारी रखना है ।
कांग्ेस आज जिस किसम के सेकुलरिजम के रासिे पर चल रही है इसे कमयुतनसटों ने गढा है । लेकिन जब आप इसका परीक्ण करते हैं तो
44 vizSy 2024