April 2024_DA | Page 42

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प्बल समर्थक थे , लेकिन कांग्ेस इसका विरोध कर रही थी । उनहोंने संविधान सभा में कहा था , ” मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि समान नागरिक संहिता का इतना विरोध कयों हो रहा है ? यह सवाल कयों पूछा जा रहा है कि भारत जैसे देश के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना संभव है ?’’ उनहोंने कहा समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून होगा जो हर धर्म के लोगों के लिए समान होगा और उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा । इस कानून में परिवार , विवाह , संपतत् और मूलभूत नागरिक अधिकार के मामलों में बराबरी होगी । राजय का यह कर्तवय होगा कि वह लोगों के वयककििि अधिकार को सुतनकशचि करेगा और समुदाय के नाम पर उनका हनन नहीं होगा ।
अनुच्ेद-370 का प्रबल विरोध
भारतीय संविधान के अनुच्ेद-370 जिसमें कशमीर को कई विशेष अधिकार दिए गए थे , उसके विरुद भी डा . आंबेडकर ने काफी मुखर होकर अपने विचार रखे थे । उनहोंने अनुच्ेद-370 के बारे में शेख अबदुलला को लिखे परि में कहा था , ” आप चाहते हैं कि भारत जममू-कशमीर की सीमा की सुरक्ा करे , यहां सडकों का निर्माण करे , अनाज की सपलाई करे साथ ही कशमीर के लोगों को भारत के लोगों के समान अधिकार मिले । आप अपनी मांगों के बाद चाहते हैं कि भारत सरकार को कशमीर में सीमित अधिकार ही मिलने चाहिए । ऐसे प्सिाव को भारत के साथ विशवासघात होगा जिसे भारत का कानून मंरिी होने के नाते मैं कतई सवीकार नहीं करुंगा ।" गौरतलब है कि जिस दिन यह अनुच्ेद बहस के लिए आया था , उस दिन डा . आंबेडकर ने इस बहस में हिससा नहीं लिया ना ही उनहोंने इस अनुच्ेद से संबंधित किसी भी सवाल का जवाब दिया ।
राष्ट्रवाद की अवधारणा का समर्थन
राषट्रीय सवयं सेवक संघ और डा . आंबेडकर के बीच वैचारिक सामय यह भी है कि दोनों
अखंड राषट्रवाद के पक्धर रहे । डा . आंबेडकर समपूणमा वांगमय के खंड 5 में लिखा है , ” डा . आंबेडकर का दृढ़ मत था कि मैं हिंदुसिान से प्ेम करता हूं । मैं जीऊूंिा तो हिंदुसिान के लिए और मरूूंगा तो हिंदुसिान के लिए । मेरे शरीर का प्तयेक कण और मेरे जीवन का प्तयेक क्ण
हिंदुसिान के काम आए , इसलिए मेरा जनम हुआ है ।’’
वामपंथ का विरोध
25 नवमबर 1949 को संविधान सभा में बोलते हुआ डा . आंबेडकर ने कहा था , ” वामपंथी इसलिए इस संविधान को नहीं मानेंगे कयोंकि यह संसदीय लोकतंरि के अनुरूप है और वामपंथी संसदीय लोकतंरि को मानते नही हैं ।’’ डा . आंबेडकर के इस एक वकिवय से यह जाहिर होता है कि डा . आंबेडकर जैसा लोकतांतरिक समझ का वयककितव वामपंथियों के प्ति कितना
विरोध रखता होगा !
पंथ निरपेक् राष्ट्र पर समान विचार
डा . आंबेडकर का सपषट मत था कि भारत धर्म निरपेक् राषट्र नहीं होगा , लेकिन कांग्ेस ने
संविधान के मूल प्सिावना में ही संशोधन कर दिया है । इसमें कांग्ेस ने धर्मनिरपेक्िा , समाजवाद और अखंडता शबद को अलग से जोड दिया । जबकि प्सिावना का मूल यह था – ” हम भारत के लोग , भारत को एक समपूणमा प्भुतव-समपन्न लोकतंरिातमक गणराजय के लिए तथा उस के समसि नागरिकों को – सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक नयाय , विचार , अभिवयककि , विशवास , धर्म और उपासना की सविंरििा , प्तिषिा और अवसर की समता प्ापि करने के लिए तथा उन सब में वयककि की गरिमा और राषट्र की एकता सुतनकशचि करने वाली
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