April 2024_DA | Page 40

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के पशचाि अब तक तमाम सियासी जमात डा .

सवतंरििा

बाबासाहब भीमराव रामजी आंबेडकर के नाम का राजनीतिक इसिेमाल करती रही है । यह भी कोशिश होती रही है कि बाबासाहब जैसे विशाल वयककितव को सवामी को सिर्फ ‘ दलित ’ वर्ग के एक नायक के तौर पर सथातपि कर दिया जाए । विशेषकर कांग्ेस पाटशी ने बाबासाहब को उनके कद से नीचा दिखाने की हरदम कोशिश की है । साठ साल सत्ा में रहकर भी कांग्ेस ने बाबासाहब को ‘ भारत रत् ’ सममान नहीं दिया और उनसे पहले जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी को भारत रत् दे दिया । हालांकि 1990 में जब भाजपा समर्थित जनता दल की सरकार बनी तब उनके महापरिर्वाण के 34 वर्ष बाद इस सममान से प्तिकषिि किया गया । दरअसल बाबासाहब के नाम पर कांग्ेस पाटशी , वामपंथी दल समेत कई पार्टियां लगातार राजनीति तो करती रही हैं , लेकिन उनके विचारों और उनके दृकषटकोण का कभी सममान नहीं किया है । इसके साथ ही उनहें लगातार राषट्रीय सवयं सेवक संघ के विचारों का विरोधी बताया जाता रहा है , परनिु कया यही सतय है ? विचारधारा के सिर पर अगर देखें तो यह सपषट है कि कई ऐसे महतवपूर्ण विषय हैं , जिन पर राषट्रीय सवयं सेवक संघ और बाबासाहब आंबेडकर के समान विचार हैं । विचारों की समनता को इस प्कार समझा जा सकता है
धार्मिक आधार पर बंटवारा
डा . आंबेडकर ने अपनी पुसिक ‘ थॉटस ऑन पाकिसिान ’ में कांग्ेस की मुकसलम परसि राजनीति की कडे शबदों में आलोचना की है । उनहोंने मुसलमानों के भारत में रहने पर सवाल

राष्ट्ररीय स्यंसेवक संघ और डा . आंबेडकर

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