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डा . आंबेडकर और दलित चिन्तन
धममेंद्र मिश्ा
सं सवयं उनके हाथों ही होगा । उनके
विधान निर्माता डा . भीम राव आंबेडकर का मत था कि दलित जातियों का उदार
अधिकारों की रक्ा के लिए कानूनी वयवसथा जरूरी है । इसके साथ राजनीतिक सत्ा भी उनके हाथों में आ जाएगी । इस विषय में डा . आंबेडकर और महातमा गांधी के बीच मतभेद था । इसे दूर करने के लिए दोनों के मधय 24 सितमबर 1932 को एक समझौता हुआ । पूना में मीटिंग होने के कारण इसे पूना पैकट कहा गया । इस पैकट से दलित वर्ग के लिए शिक्ा प्ापि करने का रासिा साफ हो गया । उनके लिए सरकारी सेवाओं के दरवाजे खुल गए । उनहें वोट देने का अधिकार मिल गया । दलित प्तिनिधियों को चुनने का अधिकार चुनाव क्ेरि के सभी मतदाताओं को दिया गया । इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि दलित हिनदू समाज के अंग बन गए । पूना पैकट में दलितों को केवल दस वर्ष के लिए आरक्ण दिया गया था । डा . आंबेडकर भी आरक्ण की वैसाखी को अधिक समय तक मानयिा देना नहीं चाहते थे । वह चाहते थे कि दलित सवयं अपनी योगयिा के आधार पर समाज में अपना सथान बनाएं ।
डा . आंबेडकर ने दलितों के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए । उनहोंने अनेक तशक्ण संसथानों एवं छारिावासों की सथापना की । उनके प्यासों से ही 29 अप्ैल 1947 को छुआ्टूि को कानूनी रूप से सदा के लिए समापि कर दिया गया । कानून मंरिी के रूप में उनहोंने हिनदू कोड बिल पारित करवाया । इस प्कार उनहोंने हिनदू
महिलाओं पर जो उपकार किया उसे भुलाया नहीं जा सकता ।
डा . आंबेडकर के चिंतन में समाजवाद औैर काकनि के सूरि मौजूद थे । डा . आंबेडकर ने सर्वहारा की तानाशाही का विरोध किया , समाजवादी वयवसथा का नहीं । वह राजय के नियंरिण में नई समाज वयवसथा के लिए ऐसी आर्थिक वयवसथा सथातपि करना चाहते थे , जिसमें संपतत् का समान वितरण , ककृति पर राजय
का सवातमतव हो , सामूहिक ककृति की वयवसथा हो और बीमा का राषट्रीकरण हो । वह राजनीतिक काकनि से पहले सामाजिक काकनि का समर्थन करते थे और भारतीय समाज की जड़ ताकतों दारा धर्म के नाम पर समता , सविंरििा , बंधुता के हनन की वर्णवादी गाथाओं का अंत करके ऐसा समता मूलक समाज चाहते थे , जहां किसी के प्ति भेदभाव न हो ।
वर्तमान समय में गरीबी की रेखा से नीचे
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