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है । इसी तरह अनुसूचित जनजातियों के लिए एक ‘ राषट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ’ की सथापना , जिसका प्ावधान भारतीय संविधान के अनुच्ेद 338 ए में किया गया है । यह दोनों आयोग एक संवैधानिक आयोग हैं जो भारतीय संविधान के अनुच्ेद में उपबंधित या वर्णित है । इसी को मद्ेनजर रखते हुए पहला अनुसूचित जाति आयोग भारतीय संविधान संशोधन 89 के तहत 2004 में सूरज भान की अधयक्िा में गठित किया गया और अनुसूचित जनजाति आयोग के प्थम अधयक् कुूंवर सिंह बनाए गए ।
अनय संरक्ण और सुरक्ातमक उपबंध में ‘ नागरिक अधिकार संरक्ण अधिनियम- 1955 ’( The protection of civil right act-1955 ) और ‘ अनुसूचित जाति और
जनजाति ( अतयाचार निवारण ) अधिनियम-1989 ’ ( Scheduled Caste and Scheduled Tribe ( Prevention of Atrocities ) act-1989 ) प्मुख हैं । नागरिक संरक्ण अधिकार अधिनियम जिसे पहले असपृशयिा ( अपराध ) अधिनियम भी कहा गया था और जिसे सविंरि भारत में असपृशयिा खतम करने और असपृशयिा को असंवैधानिक घोषित करने के लिया लाया गया और इसके द्ारा असपृशयिा को अपराध करार दिया गया और इसका प्चार-प्सार करने वालों को दंड का भागीदार भी माना जायेगा । वहीं अनुसूचित जाति और जनजाति ( अतयाचार ) निवारण अधिनियम अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदसयों के विरुद किए गए अपराधों
के निवारण के लिए लाया गया , यह अधिनियम ऐसे अपराधों के संबंध में मुकदमा चलाने , पीड़ित वयककियों को राहत और पुनर्वास का प्ावधान भी करता है ।
इसके साथ ही साथ भारतीय संविधान के अनय अनुच्ेद में भी अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए सुरक्ातमक और संरक्णातमक उपाय अथवा उपबंध किए गए हैं । अनुच्ेद-15 जो भेदभाव को वयाखयातयि करता है और भेदभाव से संवैधानिक सुरक्ा प्दान करता है । अनुच्ेद-17 असपृशयिा को खतम करने की बात करता है । अनुच्ेद-46 अनुसूचित जातियों और समाज के कमजोर विशों के शैतक्क और आर्थिक हितों को समर्थन देने और सभी प्कार के अनयाय और शोषण से मुककि की वकालत ।
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