April 2024_DA | Page 18

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वयवहार का विशलेिण करने वाले इस प्श्न का उत्र नहीं में ही देंगे । कारण यह है कि सविंरििा के बाद अगर धयान दिया जाए तो देश के विभिन्न हिससों में दलित कलयाण और विकास की मांग को लेकर कई दलित नेता सामने तो आए , पर सत्ा मिलने के बाद जब उनके सामने दलित समाज के वासितवक कलयाण और विकास समबनधी उपयोगी कदम उठाने की बारी आयी तो अधिकतर नेता दलित समाज को अपने वादों की दम पर भ्रमित करने और काम निकलने की मानसिकता में ही जीते रहे । दलित समाज के लिए ऐसे तमाम नेता शायद ही कुछ सकारातमक कदम उठाने में सफल रहे होंगे कयोंकि उनके
तमाम दावों के बावजूद दलित समाज आज भी अपने विकास और कलयाण की राह देख रहा है ।
आज देश का सामाजिक वातावरण सामानय नहीं है । जाति , धर्म और संप्दाय के साथ क्ेरिीयता में बंटा आम आदमी राषट्रभाव से अलग होकर सवतहि तक सिमिट कर रह गया है । दूषित राजनीतिक एवं आर्थिक चिंतन के मधय सांस्कृतिक चिंतन लगभग समापि हो चुका है । हिनदू समाज में जातिगत भेद और दलित जातियों के साथ अनय जातियों के लोगों के मानस में सथातपि अवयवहारिक एवं अवैज्ञानिक िरय , हिनदू समाज के सामाजिक सौषिव की दिशा में भारी अवरोध है । दुर्भागय से दलित वर्ग के साथ सामाजिक
हीनता उनकी नियति बना हुआ है । इसलिए यह विचार करना ही होगा कि हिनदू समाज के इस बड़े एवं अभिन्न हिससे को किस प्कार सामाजिक शककि प्दान करके उनकी सभी समसयाओं का समाधान किया जा सकता है ?
सविंरििा के इतने विशों के बाद आज भारत की कसथति बिलकुल विपरीत है । अब यह देश एक आणविक समपन्न महाशककि के रूप में विशवमंच पर सथातपि है । इसके बावजूद यदा- कदा देश की छवि को क्ति पहुंचाने के लिए योजनाबद रूप से तमरया एवं भ्रमातमक विषयों एवं दलित समाज की समसयाओं के माधयम से अधिक दुषप्चार किया जा रहा है और दलित
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